नोएडा शाखा पर IAS GS फाउंडेशन का नया बैच 9 दिसंबर से शुरू:   अभी कॉल करें
ध्यान दें:

पेपर 2


भारतीय राजनीति

संवैधानिक उपचारों का अधिकार एवं महत्त्व

  • 11 Jul 2020
  • 5 min read

संवैधानिक उपचारों का अधिकार स्वयं में कोई अधिकार न होकर अन्य मौलिक अधिकारों का रक्षोपाय है। इसके अंतर्गत व्यक्ति मौलिक अधिकारों के हनन की अवस्था में न्यायालय की शरण ले सकता है। इसलिये डॉ० अंबेडकर ने अनुच्छेद 32 को संविधान का सबसे महत्त्वपूर्ण अनुच्छेद बताया- “एक अनुच्छेद जिसके बिना संविधान अर्थहीन है, यह संविधान की आत्मा और हृदय हैं।”

  • अनुच्छेद 32 का उद्देश्य मूल अधिकारों के संरक्षण हेतु गारंटी, प्रभावी, सुलभ और संक्षेप उपचारों की व्यवस्था है। इसके अंतर्गत केवल मूल अधिकारों की गारंटी दी गई है अन्य अधिकारों की नहीं, जैसे- गैर मूल संवैधानिक अधिकार, असंवैधानिक लौकिक अधिकार आदि।
  • भारतीय संविधान द्वारा सर्वोच्च न्यायालय और उच्च न्यायालय को अधिकारों की रक्षा करने के लिये लेख, निर्देश तथा आदेश जारी करने का अधिकार है।
  • सर्वोच्च न्यायालय (अनुच्छेद 32 के तहत) एवं उच्च न्यायालय (अनुच्छेद 226 के तहत) रिट जारी कर सकते हैं।
  • अनुच्छेद 32 (2) में रिटों की चर्चा की गई है जिससे संवैधानिक उपचारों के अधिकार की महत्ता प्रतिपादित होती हैं
  • बंदी प्रत्यक्षीकरण (Habeas Corpus) रिट-
    • इसके अंतर्गत गिरफ्तारी का आदेश जारी करने वाले अधिकारी को आदेश देता है कि वह बंदी को न्यायाधीश के सामने उपस्थिति दर्ज करें और उसके कैद करने की वजह बताए। न्यायाधीश अगर उन कारणों से असंतुष्ट होता है तो बंदी को छोड़ने का हुक्म जारी कर सकता है।
  • परमादेश (Mandamus) रिट-
    • इसके द्वारा न्यायालय अधिकारी को आदेश देती है कि वह उस कार्य को करें जो उसके क्षेत्र अधिकार के अंतर्गत है।
  • प्रतिषेध (Prohibition) रिट-
    • किसी भी न्यायिक या अर्द्ध-न्यायिक संस्था के विरुद्ध जारी हो सकता है, इसके माध्यम से न्यायालय के न्यायिक अर्द्ध-न्यायिक संस्था को अपने अधिकार क्षेत्र से बाहर निकलकर कार्य करने से रोकती है।
    • प्रतिषेध रिट का मुख्य उद्देश्य किसी अधीनस्थ न्यायालय को अपनी अधिकारिता का अतिक्रमण करने से रोकना है तथा विधायिका, कार्यपालिका या किसी निजी व्यक्ति या निजी संस्था के खिलाफ इसका प्रयोग नहीं होता।
  • उत्प्रेषण (Certiorari) रिट-
    • यह रिट किसी वरिष्ठ न्यायालय द्वारा किसी अधीनस्थ न्यायालय या न्यायिक निकाय जो अपनी अधिकारिता का उल्लंघन कर रहा है, को रोकने के उद्देश्य से जारी की जाती है।
    • प्रतिषेध व उत्प्रेषण में एक अंतर है। प्रतिषेध रिट उस समय जारी की जाती है जब कोई कार्यवाही चल रही हो। इसका मूल उद्देश्य कार्रवाई को रोकना होता है, जबकि उत्प्रेषण रिट कार्रवाई समाप्त होने के बाद निर्णय समाप्ति के उद्देश्य से की जाती है।
  • अधिकार पृच्छा (Qua Warranto) रिट-
    • यह इस कड़ी में अंतिम रिट है जिसका अर्थ ‘आप क्या प्राधिकार है?’ होता है यह अवैधानिक रूप से किसी सार्वजनिक पद पर आसीन व्यक्ति के विरुद्ध जारी किया जाता है।
    • साधारण अवस्था में संवैधानिक उपचारों को निलंबित नहीं किया जाएगा। संसद इनको लागू करने के लिये उचित अधिनियम बनाएगा। आपातकालीन स्थिति में अध्यादेश अथवा अधिनियम के द्वारा भारत या उसके किसी प्रदेश में आवश्यकतानुसार कुछ या सभी मौलिक अधिकारों को निलंबित किया जा सकता है।
  • ये रिटे, अंग्रेजी कानून से लिये गए हैं जहाँ इन्हें ‘विशेषाधिकार रिट’ कहा जाता था। इन्हें राजा द्वारा जारी किया जाता था जिन्हें अब भी ‘न्याय का झरना’ कहा जाता है।

उपरोक्त बिंदुओं से संवैधानिक उपचारों के अधिकार एवं उसकी महत्ता को देखा जा सकता है। संवैधानिक उपचारों का अनुच्छेद नागरिकों के लिहाज से भारतीय संविधान का सबसे महत्त्वपूर्ण हिस्सा है।

close
एसएमएस अलर्ट
Share Page
images-2
images-2
× Snow