तापमान व्युत्क्रमण और इसका अर्थव्यवस्था पर प्रभाव | 30 Jul 2020
भूमिका
पृथ्वी लघु तरंगों के रूप में सूर्य से सूर्यातप प्राप्त करती है जिसका अवशोषण कर धरातल गर्म होता है।
- पृथ्वी द्वारा सूर्यातप से प्राप्त ऊष्मा का विकिरण दीर्घ तरंगों के रूप में किया जाता है जिससे पृथ्वी का वायुमंडल गर्म होता है
- सामान्यत: क्षोभमडल में ऊपर की ओर जाने पर तापमान में कमी आती है।
क्या है तापमान का व्युत्क्रमण?
- ध्यातव्य है कि सामान्य परिस्थितियों में क्षोभमंडल में सतह से ऊपर की ओर जाने पर तापमान में कमी आती है जो 5º सेटीग्रेड प्रति किलोमीटर पर होती है।
- तापमान में होने वाली इस कमी को ‘सामान्य ताप ह्रास दर’ कहते हैं।
- परंतु जब विशेष परिस्थितियों में कालिक एवं स्थानीय रूप से क्षोभमंडल में ऊपर की ओर जाने पर तापमान में कमी के स्थान पर वृद्धि होती है तो इस स्थिति को तापमान व्युत्क्रमण/प्रतिलोमन कहते हैं।
- इस क्रिया के फलस्वरूप नीचे की वायु परत अपेक्षाकृत ठंडी तथा इसके ऊपर गर्म वायु की परत स्थापित हो जाती है।
- अधिक ऊँचाई पर होने वाला तापमान व्युत्क्रमण अपेक्षाकृत अधिक स्थाई होता है क्योंकि पार्थिव विकिरण द्वारा ऊपर की वायु को गर्म करने में अधिक समय लगता है।
- जबकि धरातलपर होने वाला तापमान व्युत्क्रमण अल्पकालिक होता है।
- तापीय व्युत्क्रमण के कारण वायुमंडल में स्थिरता आती है।
- तापीय व्युत्क्रमण ध्रुवीय प्रदेशों, मध्य अक्षांशों के हिमाच्छादित भागों तथा घाटियों में अधिक होता है।
तापमान व्युत्क्रमण के लिये आदर्श दशाएँ
- राते ठंडी तथा लंबी होनी चाहिये ताकि पार्थिव विकिरण की मात्रा सौर्य विकिरण से अधिक हो।
- आकाश स्वच्छ एवं मेघरहित होना चाहिये जिससे कि पार्थिव विकिरण द्वारा ऊष्मा का ह्रास तीव्र दर से तथा बिना किसी रुकावट के हो सके।
- सतह के समीप हवा शुष्क होनी चाहिये जिससे कि पार्थिव विकिरण का अवशोषण न हो अथवा न्यूनतम अवशोषण हो।
- ज्ञात हो कि जलवाष्प युक्त आर्द्र हवा पार्थिव विकिरण का अधिक अवशोषण करती है।
- वायुमंडल के शांत एवं स्थिर होने के साथ-साथ पवनों का संचार मंद होना चाहिये क्योंकि पवन संचरण अधिक होने के कारण तापमान की मिलावट एवं स्थानांतरण होने लगता है।
- धरातल हिम आच्छादित होना चाहिये।
तापमान व्युत्क्रमण के प्रभाव
- बादलों के रूप में वर्षा एवं दृश्यता के निर्धारण में तापमान व्युत्क्रमण महत्त्वपूर्ण भूमिका निभाता है।
- व्युत्क्रमण नीचे की परतों से ऊपर की ओर हवा की गति को सीमित करता है जिससे संवहन सीमित ऊँचाई तक ही सम्पादित होता है।
- प्रतिलोमन के कारण संवहनीय बादल वर्षा कराने हेतु पर्याप्त उँचाई, धूल एवं धुएं के बिना नीचे की ओर संचित होने लगते हैं।
- प्रतिलोमन के कारण दैनिक तापांतर भी प्रभावित होता है।
तापीय प्रतिलोमन के प्रकार
- तापमान व्युत्क्रमण को मुख्यत: तीन वर्गों में विभाजित किया जाता है।
- अप्रवाही प्रतिलोमन
- अभिवहनीय प्रतिलोमन
- यांत्रिक प्रतिलोमन
अप्रवाही प्रतिलोमन : इसे पुन: दो भागों धरातलीय प्रतिलोमन तथा उच्च वायुमंडलीय प्रतिलोमन में विभाजित किया जाता है।
धरातलीय प्रतिलोमन
- यह सतह के निकट संपन्न होता है।
- रात्रि के समय बिना किसी रुकावट के तीव्र दर से पार्थिव विकिरण की क्रिया के कारण धरातल ठंडा हो जाता हे।
- वस्तुत: ठंडे धरातल के संपर्क में आने वाली वायु ठंडी हो जाती है, जबकि उसके ठीक ऊपर ऊष्मा का कम ह्रास होने के कारण गर्म वायु की परत बन जाती है।
- ध्यातव्य है कि धरातलीय प्रतिलोमन विषुवत रेखीय क्षेत्रों में अल्पकालिक होता है तथा विषुवत रेखा से ध्रुवों की ओर जाने पर इसकी अवधि बढ़ती जाती है।
उच्च वायुमंडलीय प्रतिलोमन
- गौरतलब है कि वायुमंडल में ओज़ोन गैस की परत पाई जाती है।
- वस्तुत: ओज़ोन गैस सूर्य से आने वाले पराबैंगनी विकिरण को अवशोषित कर तापमान में वृद्धि कर देती है।
- इस प्रकार ओज़ोन परत के दोनों ओर अपेक्षाकृत कम तापमान हो जाता है जिससे तापीय व्युत्क्रमण की स्थिति उत्पन्न होती है।
अभिवहनीय व्युत्क्रमण
- इसमें वायुमंडल का अस्थिर होना तथा पवनों में क्षैतिज संचार आवश्यकता होता है।
- यह निम्नलिखित रूपों में होता है।
- शीतोष्ण चक्रवातों के शीत वाताग्र में ठंडी हवा सक्रिय होकर गर्म हवा को ऊपर की ओर धकेलती है।
- इसके परिणामस्वरूप ठंडी वायु के ऊपर गर्म वायु की परत स्थापित होकर व्युत्क्रमण की स्थिति उत्पन्न होती है।
- जब भी गर्म वायु ठंडी वायु के क्षेत्र में अथवा ठंडी वायु गर्म वायु के क्षेत्र में प्रवेश करती है
- तब ठंडी वायु स्वभावत: भारी होने के कारण हमेशा: नीचे बैठने तथा गर्म वायु स्वभावत: हल्की होने के कारण ऊपर की ओर उठने की कोशिश करती है।
- इस प्रकार तापमान व्युत्क्रमण की स्थिति बनने लगती है।
- गर्म वायु के गतिशील होने पर महाद्वीपों पर जहां शीत ऋतु के समय यह प्रतिलोमन होता है, वहीं महासागरीय सतह पर गर्मियों के समय ऐसा होता है। उसी प्रकार ठंडी वायु के सक्रिय होने पर ठीक इसके विपरीत स्थिति होती है।
- ध्यातव्य है कि दो विपरीत स्वभाव की (ठंडी एवं गर्म) जलधाराओं के मिलने से भी तापमान व्युत्क्रमण होता है।
- पर्वतीय घाटियों में पार्थिव विकिरण एवं अभिवहन के कारण घाटी प्रतिलोमन की स्थिति उत्पन्न हो जाती है।
- ठंडी रातों में घाटियों के ऊपरी भागों में अधिक विकिरण के कारण तापमान कम हो जाता है तथा यहाँ की सतह के संपर्क में आने वाली वायु ठंडी हो जाती है।
- इसके ठीक विपरीत घाटियों में नीचे की ओर कम विकिरण के कारण वायु अपेक्षाकृत गर्म एवं हल्की रहती है।
- इस प्रकार ऊपर की ठंडी एवं भारी वायु घाटियों में नीचे बैठकर गर्म एवं हल्की वायु को ऊपर की ओर धकेलती है, फलस्वरूप तापमान व्युत्क्रमण की स्थिति उत्पन्न हो जाती है।
यांत्रिक व्युत्क्रमण
- यह अभिवहनीय व्युत्क्रमण का ही एक प्रकार है।
- इस प्रकार का व्युत्क्रमण वायुमंडल में वायु के ऊपर अथवा नीचे गति करने के कारण होता है।
- कभी-कभी गर्म वायु तेज़ी से ऊपर की ओर उठती है जिससे ठंडी व भारी वायु नीचे बैठने लगती है। इसके परिणामस्वरूप तापीय व्युत्क्रमण की स्थिति बनती है।
- इसके अलावा जब वायु नीचे की ओर गतिशील होती है तो संपीडन के कारण वह धीरे-धीरे गर्म होने लगती है। इस क्रिया के लगातार लंबे समय तक जारी रहने पर मध्य मार्ग में ही वायु की गर्म परत का विकास हो जाता है।
- इस प्रकार तापमान व्युत्क्रमण प्रारंभ हो जाता है।
तापमान व्युत्क्रमण का अर्थव्यवस्था पर प्रभाव
- तापमान व्युत्क्रमण प्रत्यक्ष/अप्रत्यक्ष रूप से मानवीय आर्थिक गतिविधियों को प्रभावित करता है।
- ठंडी कोहरे की स्थिति उत्पन्न होती है इससे सामान्य जनजीवन के साथ-साथ आर्थिक गतिविधियाँ भी प्रभावित होती है।
- वस्तुत: यह (कोहरा) दृश्यता को कम करता है जिसके कारण वायुयानों, जलयानों के साथ दुर्घटनाएँ घटने के साथ-साथ सड़क एवं रेल दुर्घटनाएँ भी होती है जिससे आर्थिक क्षति होती है।
- इसके अलावा क्षेत्र विशेष में फसलों एवं फलों की खेती हेतु कोहरा लाभकारी भी होता है। यथा यमन की पहाड़ियों पर सूर्य की तेज़ धूप से कोहरा फसल का बचाव करता है।
- यदि नीचे की ठंडी वायु का तापमान अधिक कम हो जाए तो पाले के कारण फसलों एवं फलों के बागानों को भारी नुकसान होता है जो आर्थिक रूप से हानिकारक है।
- घाटियों में नीचे की ओर पाला पड़ना सामान्य बात है।
- तापमान व्युत्क्रमण के कारण वायुमंडल में स्थिरता उत्पन्न होने से प्रतिचक्रवातीय दशाओं के कारण वर्षा की संभावना कम होती है।
- हिमालयी क्षेत्र में घाटी तापमान व्युत्क्रमण के कारण सेब के बागानों को काफी नुकसान होता है जिससे आर्थिक क्षति होती है।