शीत युद्ध | 21 Dec 2019
चर्चा में क्यों?
हाल ही में बर्लिन की दीवार गिरने (इसे 9 नवंबर, 1989 को ध्वस्त किया गया था) की 30वीं वर्षगाँठ मनाई गई जो शीत-युद्ध काल की एक प्रमुख घटना थी।
शीत युद्ध (Cold War) क्या है?
- शीत युद्ध द्वितीय विश्व युद्ध के बाद सोवियत संघ एवं उसके आश्रित देशों (पूर्वी यूरोपीय देश) और संयुक्त राज्य अमेरिका एवं उसके सहयोगी देशों (पश्चिमी यूरोपीय देश) के बीच भू-राजनीतिक तनाव की अवधि (1945-1991) को कहा जाता है।
- द्वितीय विश्व युद्ध के बाद विश्व दो महाशक्तियों – सोवियत संघ और संयुक्त राज्य अमेरिका के वर्चस्व वाले दो शक्ति समूहों में विभाजित हो गया था।
- यह पूंजीवादी संयुक्त राज्य अमेरिका और साम्यवादी सोवियत संघ के बीच वैचारिक युद्ध था जिसमें दोनों महाशक्तियाँ अपने-अपने समूह के देशों के साथ संलग्न थीं।
- "शीत" (Cold) शब्द का उपयोग इसलिये किया जाता है क्योंकि दोनों पक्षों के बीच प्रत्यक्ष रूप से बड़े पैमाने पर कोई युद्ध नहीं हुआ था।
- इस शब्द का पहली बार इस्तेमाल अंग्रेज़ी लेखक जॉर्ज ऑरवेल ने 1945 में प्रकाशित अपने एक लेख में किया था।
नोट:
- शीत युद्ध सहयोगी देशों (Allied Countries), जिसमें अमेरिका के नेतृत्व में यू.के., फ्रांस आदि शामिल थे और सोवियत संघ एवं उसके आश्रित देशों (Satellite States) के बीच शुरू हुआ था।
- सोवियत संघ (Soviet Union):
- सोवियत संघ को आधिकारिक तौर पर यूनियन ऑफ सोवियत सोशलिस्ट रिपब्लिक (USSR) के रूप में जाना जाता था।
- यह विश्व का पहला साम्यवादी (Communist) राज्य था जिसकी स्थापना वर्ष 1922 में की गई थी।
शीत युद्ध के कारण:
द्वितीय विश्व युद्ध में सहयोगी देश (अमेरिका, ब्रिटेन और फ्रांस) और सोवियत संघ ने धुरी शक्तियों (Axis Powers) (नाज़ी जर्मनी, जापान, ऑस्ट्रिया) के विरुद्ध साथ मिलकर संघर्ष किया था। लेकिन विभिन्न कारणों से यह युद्धकालीन गठबंधन द्वितीय विश्व युद्ध के बाद साथ नहीं रह सका।
पॉट्सडैम सम्मेलन (Potsdam Conference)
- पॉट्सडैम सम्मेलन का आयोजन वर्ष 1945 में बर्लिन में अमेरिका, ब्रिटेन और सोवियत संघ के बीच निम्नलिखित प्रश्नों पर विचार करने के लिये किया गया था:
- पराजित जर्मनी में तत्काल प्रशासन की स्थापना।
- पोलैंड की सीमाओं का निर्धारण।
- ऑस्ट्रिया का आधिपत्य।
- पूर्वी यूरोप में सोवियत संघ की भूमिका।
- सोवियत संघ चाहता था कि पोलैंड के एक भाग (सोवियत संघ की सीमा से लगा क्षेत्र) को बफर ज़ोन के रूप में बनाए रखा जाए किंतु संयुक्त राज्य अमेरिका और ब्रिटेन इस मांग से सहमत नहीं थे।
- इसके साथ ही अमेरिका ने सोवियत संघ को जापान पर गिराए गए परमाणु बम की सटीक प्रकृति के बारे में कोई सूचना नहीं दी थी। इसने सोवियत संघ के अंदर पश्चिमी देशों की मंशा को लेकर एक संदेह पैदा किया जिसने गठबंधन संबंध को कटु बनाया।
ट्रूमैन सिद्धांत (Truman's Doctrine)
- ट्रूमैन सिद्धांत की घोषणा 12 मार्च, 1947 को अमेरिकी राष्ट्रपति हैरी एस. ट्रूमैन द्वारा की गई थी।
- ट्रूमैन सिद्धांत सोवियत संघ के साम्यवादी और साम्राज्यवादी प्रयासों पर नियंत्रण की एक अमेरिकी नीति थी जिसमें दूसरे देशों को आर्थिक सहायता प्रदान करने जैसे विविध उपाय अपनाए गए।
- उदाहरण के लिये अमेरिका ने ग्रीस एवं तुर्की की अर्थव्यवस्था और सेना के समर्थन के लिये वित्तीय सहायता का अनुमोदन किया।
- इतिहासकारों का मानना है कि इसी सिद्धांत की घोषणा से शीत युद्ध के आरंभ की आधिकारिक घोषणा चिह्नित होती है।
आयरन कर्टेन (Iron Curtain)
- द्वितीय विश्व युद्ध के बाद सोवियत संघ द्वारा स्वयं को और उसके आश्रित पूर्वी एवं मध्य यूरोपीय देशों को पश्चिम एवं अन्य गैर-साम्यवादी देशों के साथ खुले संपर्क से अलग रखने के लिये एक राजनीतिक, सैन्य और वैचारिक अवरोध खड़ा किया गया जिसे ‘आयरन कर्टेन’ कहा गया।
- ‘आयरन कर्टेन’ शब्दावली का प्रयोग सर्वप्रथम ब्रिटेन के प्रधानमंत्री विंस्टन चर्चिल द्वारा किया गया था।
- इस आयरन कर्टेन के पूर्व में वे देश थे जो सोवियत संघ से जुड़े थे या उससे प्रभावित थे जबकि पश्चिम में वे देश थे जो अमेरिका और ब्रिटेन के सहयोगी थे या लगभग तटस्थ थे।
शीत युद्ध की महत्त्वपूर्ण घटनाएँ:
बर्लिन की घेराबंदी (Berlin Blockade), 1948
- जैसे ही सोवियत संघ और सहयोगी देशों के बीच तनाव बढ़ा सोवियत संघ ने वर्ष 1948 में बर्लिन की घेराबंदी शुरू कर दी।
- बर्लिन की घेराबंदी सोवियत संघ द्वारा सहयोगी देशों के नियंत्रण वाले बर्लिन क्षेत्र में उनकी गतिशीलता को सीमित करने का एक प्रयास था।
- इसके अतिरिक्त 13 अगस्त, 1961 को जर्मन डेमोक्रेटिक रिपब्लिक (पूर्वी जर्मनी) की साम्यवादी सरकार ने पूर्वी और पश्चिमी बर्लिन के बीच एक काँटेदार बाड़ और कंक्रीट की दीवार (बर्लिन की दीवार) का निर्माण भी शुरू कर दिया।
- इसने मुख्य रूप से पूर्वी बर्लिन से पश्चिमी बर्लिन में बड़े पैमाने पर प्रवसन को रोकने के उद्देश्य को पूरा किया।
- विशेष परिस्थितियों को छोड़कर पूर्वी और पश्चिमी बर्लिन के लोगों को सीमा पार करने की अनुमति नहीं दी गई थी।
- वर्ष 1989 में बर्लिन की दीवार के ध्वस्त होने से पहले तक यह अमेरिका और सोवियत संघ के बीच शीत युद्ध का सबसे महत्त्वपूर्ण प्रतीक या स्मारक बना रहा।
बर्लिन की दीवार का इतिहास
- सहयोगी देशों (अमेरिका, यू.के., फ्रांस) और सोवियत संघ ने साथ मिलकर द्वितीय विश्व युद्ध में नाज़ी जर्मनी को पराजित किया था जिसके बाद सोवियत संघ और सहयोगी देशों के बीच जर्मनी के क्षेत्रों के भाग्य का फैसला करने के लिये याल्टा और पोट्सडैम सम्मेलन (1945) आयोजित किये गए थे।
- सम्मेलन में जर्मनी को रूसी, अमेरिकी, ब्रिटिश और फ्रांसीसी प्रभाव वाले क्षेत्रों में विभाजित किया गया था।
- जर्मनी का पूर्वी भाग सोवियत संघ को प्राप्त हुआ, जबकि पश्चिमी भाग संयुक्त राज्य अमेरिका, ग्रेट ब्रिटेन और फ्रांस को मिला।
- राजधानी के रूप में बर्लिन को भी इसी प्रकार पूर्वी और पश्चिमी भाग में विभाजित किया गया था, यद्यपि बर्लिन रूसी हिस्से वाले जर्मन क्षेत्र के मध्य में स्थित था।
- सहयोगी देशों के नियंत्रण वाले क्षेत्रों के आपसी विलय से फेडरल रिपब्लिक ऑफ जर्मनी (FRG) या पश्चिमी जर्मनी का निर्माण हुआ, जबकि सोवियत नियंत्रण वाला क्षेत्र जर्मन डेमोक्रेटिक रिपब्लिक (GDR) या पूर्वी जर्मनी बन गया।
- बर्लिन का विभाजन सोवियत संघ और सहयोगी देशों के बीच विवाद का मुख्य कारण बना क्योंकि पश्चिमी बर्लिन साम्यवादी पूर्वी जर्मनी के अंदर स्थित एक द्वीप बन गया था।
- बर्लिन की दीवार 9 नवंबर, 1989 को ढहा दी गई जिसने शीत युद्ध के प्रतीकात्मक अंत को चिन्हित किया।
मार्शल योजना बनाम कमिनफॉर्म
(The Marshall Plan vs The Cominform)
- मार्शल योजना:
- वर्ष 1947 में अमेरिकी विदेश मंत्री जॉर्ज मार्शल ने यूरोपीय पुनर्निर्माण कार्यक्रम (European Recovery Programme - ERP) का अनावरण किया जिसमें आवश्यकतानुसार आर्थिक और वित्तीय मदद की पेशकश की गई।
- ERP का एक उद्देश्य यूरोप के आर्थिक पुनर्निर्माण को प्रोत्साहन देना था। हालाँकि यह ट्रूमैन सिद्धांत का ही आर्थिक विस्तार था।
- कमिनफॉर्म:
- सोवियत संघ ने मार्शल योजना के संपूर्ण विचार की 'डॉलर साम्राज्यवाद' (Dollar Imperialism) के रूप में भर्त्सना की।
- मार्शल योजना पर सोवियत प्रतिक्रिया के रूप में वर्ष 1947 में कमिनफॉर्म (Communist Information Bureau- Cominform) की नींव पड़ी।
- यह मुख्य रूप से पूर्वी यूरोप के देशों को एक साथ रखने के लिये एक संगठन था।
नाटो बनाम वारसा संधि (NATO vs Warsaw Pact):
- उत्तरी अटलांटिक संधि संगठन (North Atlantic Treaty Organization- NATO)
- सोवियत संघ द्वारा बर्लिन की घेराबंदी ने पश्चिम की सैन्य कमज़ोरी को प्रकट किया था जिससे वे निश्चित तौर पर सैन्य तैयारी करने को प्रेरित हुए।
- परिणामस्वरूप वर्ष 1948 में मुख्य रूप से पश्चिमी यूरोप के देशों ने युद्ध के मामले में सैन्य सहयोग का वादा करते हुए ब्रुसेल्स रक्षा संधि (Brussels Defence Treaty) पर हस्ताक्षर किये।
- बाद में ब्रुसेल्स रक्षा संधि में अमेरिका, कनाडा, पुर्तगाल, डेनमार्क, आइसलैंड, इटली और नॉर्वे भी शामिल हो गए तथा अप्रैल 1949 में नाटो (NATO) का गठन हुआ।
- नाटो देश इनमें से किसी एक पर भी हमले को सभी देशों पर हमले के रूप में देखने और अपने सैन्य बलों को एक संयुक्त कमान के तहत रखने पर सहमत हुए।
- वारसा संधि (Warsaw Pact)
- नाटो में पश्चिम जर्मनी के शामिल होने के तुरंत बाद ही सोवियत संघ और उसके आश्रित राज्यों के बीच वारसा संधि (The Warsaw Pact, 1955) पर हस्ताक्षर किये गए।
- यह एक पारस्परिक रक्षा समझौता था जिसे पश्चिमी देशों ने पश्चिमी जर्मनी की नाटो सदस्यता के विरुद्ध सोवियत प्रतिक्रिया के रूप में देखा था।
अंतरिक्ष में प्रतिस्पर्द्धा (Space Race)
- शीत युद्ध की प्रतिद्वंद्विता में अंतरिक्ष अन्वेषण का एक और नाटकीय क्षेत्र के रूप में उभार हुआ।
- वर्ष 1957 में सोवियत संघ ने स्पुतनिक I (Sputnik I) का प्रक्षेपण किया, यह विश्व का पहला मानव निर्मित कृत्रिम उपग्रह था जिसे पृथ्वी की कक्षा में स्थापित किया गया।
- वर्ष 1958 में अमेरिका ने एक्सप्लोरर I (Explorer I) नामक अपना पहला उपग्रह प्रक्षेपित किया।
- इस अंतरिक्ष प्रतिस्पर्द्धा में अंततः जीत अमेरिका की हुई जब इसने वर्ष 1969 में सफलतापूर्वक चंद्रमा की सतह पर पहला मानव (नील आर्मस्ट्रांग) भेजा।
हथियारों की प्रतिस्पर्द्धा
- सोवियत संघ पर अमेरिकी नियंत्रण रणनीति ने संयुक्त राज्य अमेरिका को वृहत पैमाने पर हथियारों का संग्रहकर्त्ता बना दिया और प्रतिक्रिया में सोवियत संघ ने भी यही किया।
- वृहत पैमाने पर परमाणु हथियारों का विकास हुआ और विश्व ने परमाणु युग में प्रवेश किया।
क्यूबा मिसाइल संकट, 1962
- क्यूबा भी तब इस शीत युद्ध में शामिल हो गया जब अमेरिका ने वर्ष 1961 में क्यूबा के साथ अपने राजनयिक संबंध तोड़ लिये और सोवियत संघ ने क्यूबा की आर्थिक सहायता में वृद्धि कर दी।
- वर्ष 1961 में अमेरिका ने क्यूबा में ‘बे ऑफ पिग्स’ (Bay of Pigs) आक्रमण की योजना बनाई जिसका उद्देश्य सोवियत समर्थित फिदेल कास्त्रो की सत्ता को उखाड़ फेंकना था किंतु अमेरिका का यह अभियान विफल रहा।
- इस घटना के बाद फिदेल कास्त्रो ने सोवियत संघ से सैन्य मदद की अपील की जिस पर सोवियत संघ ने क्यूबा में परमाणु मिसाइल लान्चर स्थापित करने का निर्णय लिया जिसका उद्देश्य अमेरिका को लक्ष्य बनाना था।
- क्यूबा मिसाइल संकट ने दोनों महाशक्तियों को परमाणु युद्ध के कगार पर पहुँचा दिया था। हालाँकि कूटनीतिक प्रयासों से इस संकट को टालने में सफलता मिली।
शीत युद्ध का अंत
वर्ष 1991 में कई कारणों से सोवियत संघ का विघटन हो गया जिसने शीत युद्ध की समाप्ति को चिह्नित किया क्योंकि दो महाशक्तियों में से एक अब कमज़ोर पड़ गया था।
सोवियत संघ के विघटन के कारण
- सैन्य कारण
- अंतरिक्ष और हथियारों की प्रतिस्पर्द्धा में सैन्य आवश्यकताओं को पूरा करने में सोवियत संघ के संसाधनों का बड़ा नुकसान हुआ था।
- मिखाइल गोर्बाचेव की नीतियाँ
- मृतप्राय होती सोवियत अर्थव्यवस्था में सुधार के लिये गोर्बाचेव ने ‘ग्लासनोस्त’(Openness) और ‘पेरेस्त्रोइका’ (Restructuring) नीतियों को अपनाया।
- ग्लासनोस्त का उद्देश्य राजनीतिक परिदृश्य का उदारीकरण था।
- पेरेस्त्रोइका का उद्देश्य सरकार द्वारा संचालित उद्योगों के स्थान पर अर्द्ध-मुक्त बाज़ार नीतियों को प्रस्तुत करना था।
- इसने विभिन्न मंत्रालयों को अधिक स्वतंत्रता से कार्य करने की अनुमति दी और कई बाज़ार अनुकूल सुधारों की शुरुआत हुई।
- इन कदमों ने साम्यवादी विचार में किसी पुनर्जागरण का प्रवेश कराने के बजाय संपूर्ण सोवियत तंत्र की आलोचना का मार्ग खोल दिया।
- राज्य ने मीडिया और सार्वजनिक क्षेत्र दोनों के ऊपर अपना नियंत्रण खो दिया तथा पूरे सोवियत संघ में लोकतांत्रिक सुधार आंदोलनों ने गति पकड़ ली।
- इसके साथ ही बदहाल होती अर्थव्यवस्था, गरीबी, बेरोज़गारी आदि के कारण जनता में असंतोष बढ़ रहा था और वे पश्चिमी विचारधारा एवं जीवनशैली की ओर आकर्षित हो रहे थे।
- मृतप्राय होती सोवियत अर्थव्यवस्था में सुधार के लिये गोर्बाचेव ने ‘ग्लासनोस्त’(Openness) और ‘पेरेस्त्रोइका’ (Restructuring) नीतियों को अपनाया।
- अफगानिस्तान का युद्ध
- सोवियत-अफगान युद्ध (1979-89) सोवियत संघ के विघटन का एक अन्य महत्त्वपूर्ण कारण था क्योंकि इसने सोवियत संघ के आर्थिक और सैन्य संसाधनों को काफी क्षति पहुंचाई थी।
निष्कर्ष
शीत युद्ध की समाप्ति ने अमेरिका की जीत को प्रतिबिंबित किया और द्विध्रुवीय विश्व व्यवस्था एकध्रुवीय विश्व व्यवस्था में बदल गई।
हालाँकि पिछले एक दशक में विश्व के सबसे शक्तिशाली देश के रूप में अमेरिका की स्थिति में तेज़ी से अस्थिरता आई है। अफ़गानिस्तान और इराक पर अमेरिकी आक्रमण, गैर-पारंपरिक सुरक्षा खतरे, वैश्विक आर्थिक अस्थिरता, धार्मिक कट्टरवाद के प्रसार के साथ ही नई आर्थिक शक्तियों (जैसे-जापान, ऑस्ट्रेलिया, भारत, चीन आदि) के उदय ने विश्व को अधिक बहुध्रुवीय छवि प्रदान की है और इसके साथ ही पश्चिम के पतन एवं पूर्व के उदय का पूर्वानुमान लगाया जा रहा है।