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मृण्मूर्तियाँ एवं मुहरें हड़प्पाई लोगों की धार्मिक प्रथाओं पर प्रचुर प्रकाश डालती है। विवेचन करें।
12 May, 2020उत्तर :
हड़प्पाई लोग शिल्प एवं तकनीक के बारे में जानकारी और इससे संबंधित बेहतर कौशल रखते थे। इस सभ्यता में कांसे तथा पत्थर की मूर्तियों के साथ-साथ मृण्मूर्तियों (टेराकोटा) एवं मुहरों का निर्माण हुआ, जो तत्कालीन समाज की सामाजिक-आर्थिक स्थिति के साथ-साथ उस समय के धार्मिक विश्वासों पर भी प्रकाश डालती है।
- सिंधु घाटी क्षेत्र से मातृदेवी की कई मृण्मूर्तियाँ प्राप्त हुई है। प्रतीत होता है कि सिंधु समाज में मातृदेवी की पूजा की जाती थी। कालीबंगा और लोथल से मिली मातृदेवी की मृण्मूर्तियाँ विशेष उल्लेखनीय है।
- एक मृण्यमूर्ति में स्त्री के गर्भ से निकलता पौधा दिखाया गया है, जो संभवत: पृथ्वी देवी की प्रतिमा है। मालूम होता है कि हड़प्पाई लोग धरती को उर्वरता की देवी समझते थे और इसकी पूजा उसी तरह करते थे जिस तरह मिस्र के लोग नील नदी की देवी आइरिस की पूजा करते थे।
- मिट्टी की मूर्तियों में कुछ दाड़ी-मूँछ वाले पुरुषों की छोटी-छोटी मूर्तियाँ मिली है, जो देवताओं की प्रतिमाएं प्रतीत होती हैं।
- सिंधु समाज में संभवत: एक सींग वाला देवता महत्त्वपूर्ण था। एक जगह से एक सींग वाले देवता का मिट्टी का बना मुखौटा मिला है।
मुहरें:
- एक मुहर पर तीन सींग वाले तथा आसन लगाए ध्यान मुद्रा में बैठे योगी का चित्रण है। पशुपति महादेव का रूप बताए जाने वाले इस देवता के चित्र के चारों ओर एक हाथी, एक बाघ और एक गैंडा है। आसन के नीचे एक भैंसा है तथा पाँवों पर दो हिरण हैं। संभवत: सिंधु समाज में पशुपति महादेव का प्रमुख थान था।
- सिंधु समाज के लोग वृक्ष पूजा भी करते थे। एक मुहर पर पीपल की डालों के बीच विराजमान देवता चित्रित है।
- हड़प्पाई लोग पशु-पूजा भी करते थे। मुहरों पर कई पशु अंकित है, जिनमें एक सींग वाला जानवर (यूनिफॉर्म) एवं कूबड़ वाला साँड प्रमुख है।
इस प्रकार मृण्मूर्तियाँ एवं मुहरें तत्कालीन समाज की उत्कृष्ट कलाकृतियाँ हैं, जो शिल्प एवं तकनीक के साथ-साथ उस समय की धार्मिक प्रथाओं पर प्रचुर प्रकाश डालती है।