-
ईसा पूर्व छठी शताब्दी के द्वितीय नगरीकरण के लिये ज़िम्मेदार कारकों की चर्चा कीजिये।
23 Jun, 2020उत्तर :
ईसा पूर्व छठी शताब्दी में मध्य गंगा के मैदानों में नगरीकरण की शुरुआत हुई। ईसा पूर्व 1900 के आसपास हड़प्पा नगरों के अवसान के पश्चात् सीधे लगभग इस समय में ही नगरों के प्रकटीकरण के कारण इसे द्वितीय नगरीकरण कहा जाता है। इस समय कौशांबी, श्रावस्ती, अयोध्या, कपिलवस्तु, वाराणसी, वैशाली, राजगीर और पाटलिपुत्र महत्त्वपूर्ण थे।
द्वितीय नगरीकरण के लिये ज़िम्मेदार कारक:
- लोहे की जानकारी एवं इसके उपयोग ने न सिर्फ गंगा घाटी में आर्यों के प्रसार को सुविधाजनक बनाया, बल्कि उनकी अर्थव्यवस्था को भी क्रांतिकारी रूप से प्रभावित किया। कृषि उत्पादन में अधिशेष के कारण नवीन व्यापारिक वर्गों का उदय हुआ, साथ ही राज्य की आमदनी में भी वृद्धि हुई।
- नवीन व्यापारिक वर्गों एवं शिल्पियों द्वारा निर्मित श्रेणियों द्वारा कच्चा माल खरीदने एवं तैयार माल बेचने तथा शिल्पियों में आए विशेषीकरण के कारण व्यापारिक केंद्रों के रूप में नगरों में वृद्धि हुई। वाराणसी बुद्ध के युग का महान व्यापार केंद्र था।
- मुद्रा के प्रचलन के कारण भी व्यापार एवं व्यापारिक केंद्रों की वृद्धि को बढ़ावा मिला। इस काल में धातु निर्मित आहत सिक्कों (पंचमार्क्ड) के प्रचलन के संकेत मिलते हैं।
- तत्कालीन समय में हुए राजनीतिक परिवर्तनों ने द्वितीय नगरीकरण की शुरुआत को प्रभावित किया। महाजनपदों के उदय के साथ ही राजनीतिक सत्ता या राजधानी केंद्रों के रूप में नगरों का विकास हुआ, जैसे- राजगृह, पाटलिपुत्र, श्रावस्ती, तक्षशिला इत्यादि स्थानों पर राजा या प्रशासकीय वर्ग रहने लगे।
- नगरों के विकास ने सामाजिक संरचना को भी प्रभावित किया। इस समय नगरों के उन्मुक्त तथा वर्ण व्यवस्था रहित वातावरण को देखते हुए लोगों का गाँवों से नगरों की ओर पलायन के कारण भी नगरीकरण की प्रवृत्ति में तेज़ी आई।
- इस समय राजकोष प्रणाली व्यवस्थित हुई। किसानों, शिल्पियों एवं व्यापारियों से करों की वसूली के कारण राज्य के राजकोष में वृद्धि हुई, जिसने नगरों के विकास में महत्त्वपूर्ण योगदान दिया।
इस प्रकार तत्कालीन नगरों के उत्थान में समाज के आर्थिक, सामाजिक, राजनीतिक, व्यावसायिक सभी पक्षों ने संयुक्त रूप से योगदान दिया। इसी कारण अनेक शहर एक ही साथ व्यापारिक, राजनीतिक, धार्मिक व शैक्षणिक केंद्र बन गए। उदाहरणस्वरूप तक्षशिला गांधार की राजधानी थी और व्यापार, धर्म एवं शिक्षा का केंद्र भी था।