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प्राचीन भारत में श्रेणियाँ न केवल आर्थिक बल्कि सामाजिक रूप से भी महत्त्वपूर्ण संस्थाएँ थी। चर्चा कीजिये।
22 Jun, 2020उत्तर :
ईसा पूर्व छठी सदी में नगर जो कि शासन के मुख्यालय भी थे, महत्त्वपूर्ण बाजार-केंद्रों के रूप में उभरे। नगरों में शिल्पियों और वनिकों ने पेशेवर निकाय के रूप में श्रेणियों का निर्माण किया, जिनमें बुनकर, लिपिक, बढ़ई, कुम्हार, स्वर्णकार, लौहकार, हाथी दाँत से वस्तुओं का निर्माण करने वाले आदि सम्मिलित होते थे। ये श्रेणियाँ न केवल आर्थिक रूप से बल्कि तत्कालीन समय में सामाजिक रूप से भी महत्त्वपूर्ण थी।
श्रेणियों की आर्थिक महत्ता
- शिल्पियों के नगरों के अलग-अलग भागों में रहने से स्थानीयकरण के कारण शिल्पियों में विशेषीकरण आया। विशेषीकरण की इस प्रवृत्ति ने विशेष प्रकार के बाजारों के विकास को प्रेरित किया।
- श्रेणियाँ पहले कच्चा माल खरीदती थी, फिर उनसे वस्तुएं तैयार कर उन्हें बेचती थी। इसके कारण व्यापार में वृद्धि हुई तथा महत्त्वपूर्ण व्यापार केंद्रों का विकास हुआ, जैसे- वाराणसी बुद्ध के युग में महान व्यापार केंद्र था।
- व्यापार वृद्धि के कारण तत्कालीन समय में मुद्रा का भी प्रचलन बढ़ा। सर्वप्रथम इस काल में धातु के सिक्के मिलते हैं, जो आहत सिक्के कहलाते हैं, क्योंकि ये धातु के टुकड़ों पर पेड़, मछली, साँड, हाथी, अर्द्धचंद्र आदि किसी वस्तु की आकृतियों का ठप्पा मारकर बनाए जाते थे।
श्रेणियों की सामाजिक महत्ता
- श्रेणियों ने साथ काम करने की भावना के कारण समाज में सामूहिकता को बढ़ावा दिया, जो आर्थिक के साथ-साथ सामाजिक रूप से अत्यंत महत्त्वपूर्ण थी।
- श्रेणियाँ प्राचीनकाल में बैंकिंग व्यवस्था के रूप में भी काम करती थी। जरूरतमंदों को ऋण प्रदान कर सामाजिक आवश्यकताओं की पूर्ति कर सामाजिक भूमिका का निर्वाह किया गया।
- इन श्रेणियों की अपनी पेशेवर संहिता होती थी। तथा कार्मिकों के कर्त्तव्य व दायित्वों का उल्लेख रहता था। इससे समाज में नैतिक प्रतिमानों के विकास में भी श्रेणियाँ महत्त्वपूर्ण संस्थाएँ थी।
- श्रेणियों द्वारा समाज में परोपकारिता के कार्य, जैसे- तीर्थ स्थानों व जल संसाधनों का संरक्षण एवं गरीबों की सहायता आदि भी किये जाते थे।
- कुछ परिस्थितियों में श्रेणियाँ न्यायिक संस्थाओं के रूप में भी काम करती थी। इसके कारण समाज में लोगों के अधिकारों के सुनिश्चय एवं शांति स्थापना में श्रेणियाँ महत्त्वपूर्ण भूमिका निभाती थी।
उपर्युक्त विवरण से स्पष्ट है कि प्राचीन भारत में श्रेणियाँ निस्संदेह आर्थिक रूप से महत्त्वपूर्ण होने के साथ-साथ सामाजिक रूप से भी महत्त्वपूर्ण संस्थाएँ थी।