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जैन धर्म ने तत्कालीन भारतीय समाज को व्यापक रूप में प्रभावित किया। इस कथन की सहमति के पक्ष में तर्क प्रस्तुत कीजिये।
19 May, 2020उत्तर :
ईसा पूर्व छठी शताब्दी में मध्य गंगा के मैदानों में तत्कालीन सामाजिक संकीर्णता के विरुद्ध प्रतिक्रिया के रूप में जन्मे जैन संप्रदाय ने अपनी समाज सुधार प्रवृत्ति, अपने सिद्धांतों एवं दर्शन से तत्कालीन भारतीय समाज को व्यापक रूप में प्रभावित किया।
- तत्कालीन गंगा घाटी के नवीन विकसित समाज में भौतिक सुख-सुविधाओं एवं भोग विलास की प्रवृत्ति विद्यमान थी। जैन संप्रदाय के तीर्थंकरों ने इसका विरोध किया तथा अपने अनुयायियों को संयमित जीवन के लिये पंचव्रत का सिद्धांत दिया, जैसे- अहिंसा, अपरिग्रह एवं ब्रह्मचर्य।
- जैनियों का मानना है कि संपूर्ण विश्व प्राणवान होता है। अहिंसा जैन धर्म दर्शन का केंद्रबिंदु है। इसी कारण जैन धर्म में युद्ध और कृषि दोनों वर्जित है क्योंकि दोनों में जीवों की हिंसा होती है। इसके परिणामस्वरूप तत्कालीन भारतीय समाज में व्यापार एवं वाणिज्य की व्यापक वृद्धि हुई।
- जैन धर्म में तत्कालीन जन्ममूलक वर्ण व्यवस्था एवं वैदिक कर्मकांडों का विरोध किया गया। जैन तीर्थंकरों ने कर्म के महत्त्व पर बल दिया। महावीर के अनुसार पूर्व जन्म में अर्जित पुण्य या पाप के अनुसार ही किसी का जन्म उच्च या निम्न जाति में होता है।
- महावीर के मत में युद्ध और अच्छे आचरण वाले निम्न जाति के लोग भी मोक्ष पा सकते हैं। उनके अनुसार चांडालों में भी अच्छे गुणों का होना संभव है।
- मोक्ष के लिये जैनियों ने कर्मकांडीय अनुष्ठान की आवश्यकता को नकारा तथा समयक् ज्ञान, सम्यक् ध्यान और सम्यक् जैसे आचरण पर बल दिया।
- जैनियों ने तत्कालीन समाज में विशेषाधिकारों का दावा करने वाले ब्राह्मणों द्वारा संपोषित संस्कृत भाषा का परित्याग किया और धर्मोपदेश के लिये आम लोगों की बोलचाल की प्राकृत भाषा को अपनाया। इस कारण प्राकृत भाषा और साहित्य की समृद्धि हुई।
- जैन लोगों द्वारा प्राचीन भारत की कला को व्यापक रूप में प्रभावित किया गया, जैसे- तीर्थंकरों की पूजा के लिये राजस्थान, कर्नाटक, गुजरात और मध्य प्रदेश में विशाल प्रस्तर प्रतिमाओं का निर्माण करवाया गया।
इस प्रकार जैन दर्शन मानवता को महत्त्व देने वाला उपयोगी दर्शन हैं। अपने समाज एवं धर्म सुधार आंदोलन की प्रवृत्ति के कारण जैन धर्म ने तत्कालीन भारतीय समाज को गहरे स्तर पर प्रभावित किया।