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इतिहास प्रैक्टिस प्रश्न

  • बौद्ध और जैन धार्मिक संप्रदायों से कहीं अधिक सामाजिक सुधार के आंदोलन थे। कारण बताते हुए चर्चा कीजिये।

    18 May, 2020

    उत्तर :

    ईसा-पूर्व छठी शताब्दी के उत्तरार्द्ध में मध्य गंगा के मैदानों में जैन एवं बौद्ध धार्मिक संप्रदायों का जन्म हुआ। दरअसल इनके उद्भव के पीछे तत्कालीन संकीर्ण सामाजिक परिस्थितियाँ ज़िम्मेदार थी, जिनके विरोध स्वरूप इनका सामाजिक सुधार आंदोलन के रूप में उभार हुआ।

    • वैदिकोत्तर काल में समाज में जन्ममूलक वर्ण व्यवस्था तथा उच्च वर्गों को विशेषाधिकार की प्राप्ति का प्रचलन था। इस तरह के वर्ण विभाजन से समाज में तनाव उपस्थित था। जैन और बौद्ध संप्रदायों ने तत्कालीन वर्ण व्यवस्था को कोई महत्त्व नहीं दिया तथा इसके विरुद्ध आंदोलन छेड़ दिया।
    • तत्कालीन समाज में वैदिक कर्मकांडों के अनुसार यज्ञों में पशुओं की अंधाधुंध बलि दी जाती थी। बौद्ध और जैन संप्रदाय इसके विरोध में अहिंसा का उपदेश देते थे। यह तत्कालीन समाज में कृषिमूलक अर्थव्यवस्था के विस्तार के अनुरूप थी।
    • ब्राह्मणों की कानून संबंधी पुस्तक धर्मसूत्र में सूद पर धन देने के कारोबार को निंदनीय मानने के कारण वैश्य समुदाय को समाज में आदर नहीं मिल पाता था। बौद्ध और जैन संप्रदायों द्वारा अहिंसा के उपदेश एवं राजाओं के मध्य होने वाले युद्धों के अंत से व्यापार व  वाणिज्य में खूब उन्नति हुई, साथ ही वैश्यों की सामाजिक प्रतिष्ठा में वृद्धि हुई।
    • बौद्ध और जैन दोनों समुदाय सरल, शुद्ध और संयमित जीवन पद्धति के हिमायती थे। वे निजी संपत्ति के संचय के विरुद्ध कड़ी प्रतिक्रिया देते थे। उन्होंने अपने भिक्षुओं को विलास की वस्तुएँ नहीं छूने का आदेश दिया तथा गंगा घाटी में नवीन जीवन में विकसित भौतिक सुख-सुविधाओं का विरोध किया।

    अंत में यह कहना अधिक उपयुक्त होगा कि जैन और बौद्ध संप्रदाय सामाजिक परिवेश की संकीर्णता के विरुद्ध प्रतिक्रिया के रूप में धार्मिक आवरण में जन्मे समाज सुधार के आंदोलन थे।

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