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आरंभिक भारतीय कला और संस्कृति के विकास में ‘अनेकता में एकता’ लाने में भारतीय भौगोलिक ढाँचे का महत्त्वपूर्ण योगदान है। विवेचना कीजिये।
19 Jun, 2020उत्तर :
प्राकृतिक रूपों तथा मानवीय प्रयासों से बने मार्गों के माध्यम से आंतरिक एवं बाहरी क्षेत्रों से निरंतर आदान-प्रदान के कारण भारतीय उपमहाद्वीप के भौगोलिक क्षेत्रों का अस्तित्व हमेशा पृथक् इकाइयों के रूप में ना होकर एकीकृत रूप में रहा है। इसी एकीकृत विशेषता ने प्रारंभिक भारतीय कला और संस्कृति को व्यापक रूप में प्रभावित किया है।
- ईसा की पहली शताब्दी के आसपास व्यापारियों ने दक्षिण-पश्चिमी मानसून के सहारे पश्चिम एशिया एवं भूमध्यसागरीय क्षेत्रों से भारत आना और उत्तर-पूर्वी मानसून के साथ पश्चिम की ओर लौटना शुरू किया। मानसून के ज्ञान के फलस्वरूप भारत के पश्चिम एशिया, भूमध्यसागरीय क्षेत्र एवं दक्षिण-पूर्व एशिया से सांस्कृतिक संपर्क स्थापित हुए।
- उत्तरी-पश्चिमी भाग में स्थित पर्वत शृंखलाओं में खैबर, बोलन और गोसल जैसे दर्रों की उपस्थिति के कारण ईरान, अफगानिस्तान एवं मध्य एशिया से अनेक हमलावरों के भारत में प्रवेश से भारत और मध्य एशिया के मध्य मज़बूत सांस्कृतिक संबंध कायम हुए। इससे भारत में कला-संस्कृति के क्षेत्र में नवीन तत्त्वों का समावेश हुआ, जैसे- पश्चिमोत्तर भारत में विदेशी प्रभाव वाली गांधार मूर्तिकला का विकास।
- प्राचीनकाल में ही नदियाँ आवागमन का प्रमुख साधन होने के कारण भारतीय उपमहाद्वीप के विभिन्न भागों में कला एवं संस्कृति के प्रसार का माध्यम रही है। अशोक द्वारा स्थापित प्रस्तर स्तंभ नावों के माध्यम से ही देश के विभिन्न भागों में पहुँचाए गए।
- भिन्न-भिन्न प्रकार की भौगोलिक विशेषताओं के कारण प्रत्येक प्रदेश धीरे-धीरे एक सांस्कृतिक इकाई का रूप धारण करने लगा। इसके कारण उनकी अपनी-अपनी पृथक् भाषा और जीवन पद्धति का विकास हुआ। भारतीय आर्य भाषा बोलने वालों का दक्षिण की ओर तथा द्रविड़ भाषी लोगों का उत्तर की ओर आवागमन के कारण भाषाओं का खूब आदान-प्रदान हुआ।
- संसाधनों की स्थानीय उपलब्धता ने भी भारतीय कला और संस्कृति को व्यापक रूप से प्रभावित किया, दक्षिण भारत में पठारी क्षेत्र होने के कारण प्रस्तर मंदिरों व मूर्तियों का निर्माण हुआ। कालांतर में इन दोनों प्रकार की कलाओं का आदान-प्रदान हुआ, जैसे- दक्षिण भारतीय मंदिर स्थापत्य में लकड़ी का प्रयोग एवं उत्तर भारत की वास्तुकला में लाल बलुआ पत्थरों की प्रधानता।
- खनिजों की उपलब्धता एवं उनके निकट बसाव के कारण भारतीय उपमहाद्वीप में भिन्न-भिन्न समाजों व संस्कृतियों का निर्माण हुआ, जैसे- उत्तर पश्चिमी भारत में कांस्ययुगीन सभ्यता, राजस्थान एवं मध्य प्रदेश के ताम्र खादानों के पास ताम्रपाषाण सभ्यता एवं उत्तरी मैदान में लौहयुगीन सभ्यता।
- ‘प्लेसर्स’ निक्षेपों तथा कोलार की खानों से एवं मध्य एशिया और रोमन साम्राज्य से प्राप्त स्वर्ण द्वारा ईसा की आरंभिक पाँच शताब्दियों में स्वर्ण मुद्राओं का नियमित प्रचलन हुआ। इसी प्रकार रोम से व्यापार एवं ईरान तथा अफगानिस्तान से आयात के माध्यम से प्राप्त चांदी से निर्मित छठी ई. पूर्व में पंच मार्क्ड सिक्कों (आहत सिक्कों) का प्रचलन हुआ।
इस प्रकार विविधता उपमहाद्वीप की महत्त्वपूर्ण भौगोलिक विशेषता है। इससे भारतीय कला संस्कृति के विकास को दो स्तरों पर प्रभावित किया है। पहला, पृथक् भौगोलिक विशेषताओं के कारण पृथक् सांस्कृतिक प्रदेशों के रूप में विकास और दूसरा, प्राकृतिक तथा मानवीय संपर्कों के कारण इन सांस्कृतिक प्रदेशों की कला व संस्कृतियों के मिश्रण से ‘अनेकता में एकता’ स्थापना करने का प्रयास।