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200 ई. पूर्व से 300 ई. तक का समय मध्य एशिया से संपर्क के कारण भारतीय सामाजिक-धार्मिक इतिहास में महत्त्वपूर्ण स्थान रखता है। विश्लेषण कीजिये।
08 Jun, 2020उत्तर :
200 ई. पूर्व के आस-पास से ही पश्चिमोत्तर भारत में मौर्यों के स्थान पर मध्य एशिया से आए कई राजवंशों ने अपना शासन जमाया। ये राजवंश हिंद-यूनानी, शक, पल्लव और कुषाण थे। मध्य एशिया से संपर्क के फलस्वरूप तत्कालीन भारतीय सामाजिक और धार्मिक संरचना में कई नवीन तत्त्वों के समावेश होने के कारण यह समय भारतीय इतिहास में महत्त्वपूर्ण स्थान रखता है।
भारतीय सामाजिक विकास में योगदान
- भारतीय समाज से इन विदेशियों का आत्मसात हुआ और वे शनै: शनै: भारतीय बन गए। वे अंतत: अपनी पहचान खो बैठे।
- कुषाणों ने भारतीय समाज को लाल-पॉलिशदार मृदभांड, ईंटों के कुएँ व फुहारों तथा टोंटियों वाले पात्रों से अवगत कराया।
- शकों और कुषाणों ने भारतीय समाज में अश्वारोह की परंपरा चलाई तथा लगाम और जीन का प्रयोग प्रचलित किया।
- शकों और कुषाणों ने भारतीय समाज में पगड़ी, ट्यूनिक, पायजामा और लंबे कोट का भी प्रचलन शुरू किया। अफगानी और पंजाबी लोग आज भी पगड़ी पहनते हैं।
- कुषाणों ने रेशम मार्ग पर नियंत्रण कर व्यापार में वृद्धि की, सोने के सिक्के चलाए तथा खेती को बढ़ावा दिया। इनसे तत्कालीन भारतीय समाज का खूब विकास हुआ।
- कुषाण काल में विभिन्न शैलियों और प्रशिक्षित राजमिस्त्रियों तथा अन्य कारीगरों को एकत्रित करने से तत्कालीन भारत में गांधार व मथुरा कलाओं का विकास हुआ।
- विदेशियों के साथ संपर्क ने तत्कालीन भारतीय समाज में साहित्य और विद्या को भी समृद्ध किया, जैसे- विदेशी राजाओं द्वारा संस्कृत साहित्य का संरक्षण एवं संपोषण, कुषाणों द्वारा अश्वघोष जैसे महान साहित्यकारों का संरक्षण, बौद्ध अवदानों की रचना आदि।
- मौर्योत्तर काल में भारतीय समाज में यूनानियों से संपर्क के फलस्वरूप खगोल और ज्योतिषशास्त्र में खूब प्रगति हुई।
मध्य एशिया से सपंर्क एवं धार्मिक विकास
- इस समय कई विदेशी शासक विष्णु के उपासक बन गए। यूनानी राजदूत हिलियोदोरस ने मध्य प्रदेश स्थित विदिशा में ईसा पूर्व लगभग दूसरी सदी के मध्य पशुदेव की अराधना के लिये एक स्तंभ खड़ा किया।
- कई विदेशी शासकों ने बौद्ध धर्म को अपनाया, जैसे- यूनानी राजा मिनांदर नागसेन से प्रश्नोत्तर के पश्चात् बौद्ध हो गया।
- कुषाण शासक शिव और बुद्ध दोनों के उपासक हैं और तद्नुसार कुषाण मुद्राओं पर हम इन दोनों देवताओं के चित्र पाते हैं।
- इस काल में मध्य एशिया से भारी संख्या में नए-नए लोगों के आगमन और नगरों में व्यापारियों एवं शिल्पियों के जमाव से बौद्ध भिक्षुओं और भिक्षुणियों का अनुशासन शिथिल हो गया और बौद्ध धर्म के नवीन रूप महायान का विकास हुआ।
उपर्युक्त विवरण से स्पष्ट है कि 500 वर्षों की इस मौर्योत्तर काल की अवधि में मध्य एशिया से संपर्क के परिणामस्वरूप भारतीय सामाजिक एवं धार्मिक संरचना में कई नवीन तत्त्वों का समावेश हुआ तथा साथ ही पूर्व प्रचलित कई सामाजिक-धार्मिक नियमों का रूप परिवर्तित हुआ। इस कारण यह ऐतिहासिक अवधि तत्कालीन भारतीय सामाजिक-धार्मिक इतिहास की पुनर्रचना में अत्यंत महत्त्वपूर्ण स्थान रखती है।