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गुप्तोत्तर या आरंभिक मध्यकाल में कश्मीर के मंदिर स्थापत्य का विवरण प्रस्तुत कीजिये।
01 Jun, 2020उत्तर :
गांधार कला के प्रमुख स्थलों, जैसे- पेशावर, तक्षशिला, पश्चिमोत्तर सीमा प्रांत के निकट होने के कारण कश्मीर की कला पर गांधार शैली का प्रभाव पड़ा एवं पाँचवीं शताब्दी तक यहाँ बौद्ध कला परंपराएँ हावी रही। गुप्तोत्तर आरंभिक मध्यकाल में यहाँ हिंदू मंदिर स्थापत्य कला की अपनी एक विशिष्ट पहचान विकसित हुई जो कश्मीर की भौगोलिक एवं जलवायविक परिस्थितियों के अनुरूप थी।
कारकोटा काल
1. पंडेरनाथ के मंदिर
- आठवीं और नौवीं शताब्दी में निर्मित ये मंदिर हिंदू देवस्थान है और भगवान शिव को समर्पित है।
- कश्मीर में देवालय के पास जलाशय होने की परंपरा के कारण यह जलाशय के बीच में स्थित एक वेदी पर निर्मित है।
- कश्मीर की वर्षों पुरानी परंपरा के अनुरूप यह मंदिर लकड़ी द्वारा निर्मित है।
- हिमपात का मुकाबला करने के लिये इसकी छत चोटीदार बनाई गई है और ढाल बाहर की ओर रखी गई है।
- गुप्तोत्तरकालीन प्रचुर गहरे उत्कीर्णन की सौंदर्य शैली के विपरीत यह मंदिर बहुत कम अलंकृत है। हाथियों की कतार का बना आधार तल और द्वार पर बने अलंकरण ही इस मंदिर की सजावट है।
2. मार्तंड का सूर्य मंदिर
- परिहासपुरा में ललितादित्य द्वारा निर्मित यह मंदिर भगवान सूर्य को समर्पित है।
- पर्वतों की तलहटी में करेवा निक्षेपों पर उपस्थिति इसे भव्यता प्रदान करती है।
- मंदिर में सही ढंग से गर्भगृह, अंतराल और बंद मंडप का निर्माण किया गया है।
- मंदिर में सूर्य, शिव, विष्णु, पार्वती, गंगा, यमुना आदि देवी-देवताओं की 37 आकृतियाँ निर्मित हैं।
उत्पल शासन काल
1. राजा अवंतिवर्मन द्वारा निर्मित मंदिर
- राजा अवंतिवर्मन ने अवंतिपुरा को अपनी राजधानी के रूप में स्थापित किया और वहाँ अवंतीश्वर और अवंतीस्वामिन मंदिरों का निर्माण किया जो क्रमश: भगवान शिव और विष्णु को समर्पित थे।
- अवंतीस्वामिन मंदिर में मार्तंड मंदिर की योजना का दोहराव है। अवंतीश्वर मंदिर पंचायतन शैली में बना हुआ है, जिसके केंद्र में मुख्य मंदिर है और चारों कोनों पर चार सहायक वेदियाँ हैं।
2. राजा शंकरवर्मन का शासनकाल
- राजा शंकरवर्मन ने अपनी राजधानी शंकरपत्तनम स्थानांतरित की और वहाँ सुंगधेशा और शंकर गौरीशा नामक दो मंदिरों का निर्माण करवाया।
- पूर्व में वर्णित मंदिरों की ही निर्माण योजना का इसमें पालन किया गया, लेकिन सामग्री, अलंकरण और पॉलिश में ये उनसे बेहतर दिखते हैं।
आने वाले वर्षों में निरंतर युद्धों और कमजोर राजाओं के कारण मंदिर निर्माण गतिविधियों में धीरे-धीरे कमी आई। 10वीं सदी की शुरुआत होते-होते इस शैली का अंत हो गया। कुछ छोटे मंदिरों का निर्माण अवश्य हुआ, लेकिन उनकी कोई उल्लेखनीय वास्तुकला नहीं रही।