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मौर्यकालीन कला अपने आप में अनोखी होने के साथ-साथ विदेशी कलाओं से प्रभावित थी।
06 Jun, 2020उत्तर :
ईसा पूर्व तीसरी शताब्दी तक भारत के बहुत बड़े हिस्से पर प्रभुत्व जमाने वाले मौर्य साम्राज्य ने सर्वप्रथम भारत में बौद्ध और जैन धर्म की श्रमण परंपरा को संरक्षण दिया। इस समय धार्मिक पद्धति के नवीन आयामों के समावेश होने और पूजा के अनेक रूप विद्यमान होने से तत्कालीन विशिष्ट मौर्यकला एवं स्थापत्य का विकास हुआ।
- मौर्यकाल में अशोक द्वारा विशाल एकाश्मक स्तंभों का निर्माण करवाया गया। इन स्तंभों पर उत्कीर्ण अभिलेखों तथा स्तंभों की चोटी पर साँड, शेर, हाथी जैसी उकेरी गई आकृतियों से उत्कीर्णकर्त्ता कलाकार के कौशल का स्पष्ट पता चलता है। बिहार में लौरिया-नंदनगढ़ एवं रामपुरवा तथा उत्तरप्रदेश का सारनाथ स्तंभ इसके प्रमुख उदाहरण है।
- मौर्यकाल में ही पहली बार खड़ी मुद्रा में विशाल यक्ष-यक्षिणी की मूर्ति बनाई गई। दीदारगंज, पटना में बनी यक्षिणी की प्रतिमा मानव रूपाकृति के चित्रण में निपुणता और संवेदनशीलता के कारण विशेष उल्लेखनीय है। इस प्रतिमा की सतह चिकनी है।
- मौर्यकालीन शैलकृत प्रतिमाओं का भी विशिष्ट महत्त्व है। ओडिशा में धौली स्थल पर चट्टान काटकर बनाए गए विशाल हाथी की आकृति की मूर्तिकला रेखांकन सुंदरता का उत्कृष्ट उदाहरण है।
- इस समय बौद्ध धर्म की लोकप्रियता के कारण भगवान बुद्ध के स्मृति चिह्नों पर स्तूपों का निर्माण करवाया गया। उदाहरणस्वरूप साँची का महान स्तूप आशोक के शासनकाल में ईंटों से बनाया गया और बाद में इसे पत्थर से भी ढक दिया गया।
- मौर्यों द्वारा बौद्ध और जैन श्रमण परंपरा को आश्रय देने के कारण इस समय विहारों का निर्माण हुआ, जो शैलकृत वास्तुकला का उत्कृष्ट उदाहरण है। बिहार में जारबार की पहाड़ियों में लोमस ऋषि की शैलकृत गुफा जैसा उदाहरण पूर्ववर्ती काल में नहीं देखा जा सकता।
चूँकि मौर्य राजवंश के प्रथम तीन शासकों, चंद्रगुप्त, बिंदुसार और अशोक के समय ईरान के एकैमेनियन और ग्रीक-मकदूनियाई शासकों में मित्रतापूर्ण संबंध थे। अत: इन क्षेत्रों की कलाओं का प्रभाव भी मौर्यकालीन कला पर दिखाई देता है, जैसे-
- स्तंभों पर राज्यदिशों एवं घोषणाओं का उत्कीर्णन पश्चिमी एकैमेनियन साम्राज्य में प्रचलित था।
- पॅलिशदार सतह और शीर्ष पर जानवरों के उत्कीर्णन की परंपरा एकैमेनियन ईरानी स्तंभों से प्रभावित था।
- अशोक द्वारा उत्तरी-पश्चिमी भारत में उपयोग की गई खरोष्ठी लिपि भी ईरानी है।
- दीदारगंज की यक्षिणी की मूर्ति की सतह चिकनी है। इतिहासकारों का मानना है कि यह विशेषता ग्रीक-बैक्ट्रियाई मूर्तिकला से प्रभावित है।
- मौर्यकाल में यक्ष-यक्षिणी की खड़ी विशाल मूर्ति निर्माण की परंपरा भी ग्रीक-बैक्ट्रियाई परंपरा से प्रभावित है। भारत में इससे पहले इस प्रकार की मूर्ति निर्माण को नहीं देखा जा सकता, जबकि यह ग्रीक में पहले भी प्रचलित थी।
इस प्रकार मौर्यकाल में कई कलाओं ने भारत में पहली बार जन्म लिया और परवर्ती काल की कलाओं के लिये रास्ता प्रदान किया, जबकि इस काल में कुछ कलाओं पर विदेशी प्रभाव भी देखने को मिलता है।