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लेखन परंपरा की अनुपस्थिति के बावजूद ताम्रपाषाणिक मृदभांड तत्कालीन लोगों की जीवनशैली और संस्कृति के बारे में आकर्षक अंतर्दृष्टि प्रदान करते हैं। आलोचनात्मक टिप्पणी कीजिये।
23 May, 2020उत्तर :
नवपाषाण युग की समाप्ति के पश्चात् ईसा पूर्व दूसरी सहस्त्राब्दी के पास ताम्र व पत्थर के उपकरणों के प्रयोग वाली ताम्रपाषाण संस्कृति को उसके भौगोलिक स्थलों के नाम से अधिक जाना जाता है, जैसे- अहार, बनास, रंगपुर, कयथा, मालवा एवं जोखे संस्कृति। चित्रित काले एवं लाल मृदभांड इस संस्कृति की प्रमुख विशेषता है। चूँकि प्रागैतिहासिक काल में लेखन परंपरा का अभाव था; इस कारण ये मृदभांड तत्कालीन लोगों की जीवन शैली और संस्कृति के बारे में आकर्षक अंतर्दृष्टि प्रदान करते हैं।
- मृदभांड निर्माण की प्रक्रिया इस काल में अच्छी तरह से स्थापित सिरेमिक उद्योग की ओर इशारा करती है।
- यहाँ के स्थलों से चाक पर निर्मित एवं अच्छी तरह से पके हुए, उल्टे पकाए गए और हस्तनिर्मित मृदभांडों का मिलना संकेत करता है कि इस काल में मृदभांडों के निर्माण में तकनीकी उन्नयन हो चुका था।
- मृदभांडों पर की गई चित्रकारी में विभिन्न रंगों के प्रयोग से पता चलता है कि तत्कालीन लोगों को चट्टानों से विभिन्न प्रकार के रंगों के निर्माण की जानकारी तो थी ही, साथ ही उनमें सौंदर्यात्मक अभिरुचि भी विद्यमान थी।
- विभिन्न आकार-प्रकार के मृदभांडों का मिलना भी उनकी जीवन शैली की ओर इशारा करता है, जैसे- बड़े आकार के मृदभांडों का उपयोग अनाज संग्रहण एवं जार (पतली गर्दन वाले मृदभांड) का उपयोग संभवत: पानी संग्रहण के लिये किया जाता रहा होगा।
- यह संस्कृति हड़प्पा सभ्यता से भी प्रभावित थी। इस संस्कृति के मृदभांडों की चमकदार सतह पर हड़प्पा मृदभांडों का प्रभाव आसानी से देखा जा सकता है। प्रभास एवं रंगपुर संस्कृति से इस प्रकार के मृदभांड मिले हैं।
- ताम्रपाषाण स्थलों से बाहर की ओर इन मृदभांडों का मिलना इस बात की ओर संकेत करता है कि संभवत: जोरवे संस्कृति के लोग व्यापार में संलग्न रहे होंगे।
- यहाँ लोगों को दफनाने की प्रक्रिया में लाशों के साथ विभिन्न प्रकार के मृदभांड रखे जाते थे। इससे पता चलता है कि ये लोग पुनर्जन्म में विश्वास करते थे। विभिन्न प्रकार के बर्तनों के मिलने से इस संस्कृति में विद्यमान सामाजिक असमानताओं का अंदाजा लगाया जा सकता है।
- ताम्रपाषाणिक मृदभांडों की चित्रित विषयवस्तु से भी इस समाज की संस्कृति एवं लोगों की जीवनशैली के बारे में पता चलता है, जैसे-
- मृदभांडों पर सूर्य और मातृदेवी का अंकन उनके धार्मिक विश्वास की ओर इशारा करता है।
- पशु-पक्षियों का तीरों के साथ चित्रण और मछलियों का अंकन से अंदाजा लगाया जा सकता है कि तत्कालीन समाज में लोग शिकार एवं मत्स्यपालन की क्रियाओं में संलग्न थे।
- पशुओं का पालन भी इस समाज में विद्यमान था। यहाँ के मृदभांडों पर मवेशी के साथ कुत्तों का चित्रण मिला है।
- मृदभांडों पर नाव की आकृतियों से अनुमान लगाया जा सकता है कि अधिक दूरी के व्यापार के लिये ये लोग नावों का उपयोग करते होंगे।
- मृदभांडों पर ज्यामितीय अलंकरणों का होना इनकी उन्नत सौंदर्यात्मक समझ की ओर इशारा करती है।
तत्कालीन जीवनशैली और संस्कृति को समझने में ऐतिहासिक स्रोतों के रूप में इन मृदभांडों के प्रयोग की कुछ सीमाएँ भी है। इनसे हमें केवल उस समय की ‘भौतिक संस्कृति’ का पता चलता है। ये ताम्रपाषाणिक संस्कृति की संपूर्ण तस्वीर प्रस्तुत नहीं करते, क्योंकि इन मृदभांडों एवं इन पर चित्रित आकृतियों से तत्कालीन धार्मिक विश्वास एवं अन्य रुचियों के बारे में केवल अनुमान ही लगाया जा सकता है। इनकी कई आधार पर अनेक प्रकार की व्याख्याएँ हुई है। किस व्याख्या को सही माना जाए, यह दुविधा की स्थिति है।
अंत में ताम्रपाषाणिक मृदभांड तत्कालीन लोगों की जीवनशैली और संस्कृति के बारे में आकर्षक अंतर्दृष्टि प्रदान करते हैं। फिर भी इनका अध्ययन इस काल के अन्य पुरातात्विक साक्ष्यों, जैसे- विभिन्न प्रकार के उपकरणों, अधिवास प्रतिरूप एवं अंतिम संस्कार की प्रक्रियाओं के साक्ष्यों के साथ मिलाकर किया जाना अधिक उपयोगी होगा।