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इतिहास प्रैक्टिस प्रश्न

  • पुरालेखीय स्रोतों में राजनीतिक इतिहास की अपेक्षा कला संस्कृति कहीं अधिक सीमा तक प्रतिबिंबित होती है। टिप्पणी कीजिये।

    27 May, 2020

    उत्तर :

    अभिलेख मुहरों, स्तंभों, स्तूपों, चट्टानों, ताम्रपत्रों, मंदिरों तथा सिक्कों पर खुदे मिलते हैं। इनके अध्ययन को पुरालेखशास्त्र कहते हैं। अभिलेख हमें किसी भी समाज की ऐतिहासिक राजनीतिक, प्रशासनिक, सामाजिक, सांस्कृतिक एवं धार्मिक स्थिति को समझने में मदद करते हैं।

    अभिलेखों में प्रतिबिंबित राजनीतिक इतिहास

    • अभिलेखों में शासकों के नाम, पदवी व अन्य जानकारियों का अंकन रहता है। इसके कारण इतिहास का कालक्रमानुमिक पुनर्निर्माण  करने में मदद मिलती है। जैसे- अशोक के अभिलेखों के अध्ययन के बिना मौर्य वंश के बारे में अधिक जानकारी नहीं जुटाई जा सकती।
    • अभिलेखों में विभिन्न राजनीतिक, प्रशासनिक संस्थाओं तथा क्रियाओं का उल्लेख रहता है। इसके कारण किसी वंश/काल की राजनीतिक शासन व्यवस्था को समझा जा सकता है, जैसे- अशोक के अभिलेखों में विभिन्न पदों, पदाधिकारियों एवं उनकी ज़िम्मेदारियों का उल्लेख है।
    • राजनीतिक शासन व्यवस्था के दौरान तत्कालीन आर्थिक व्यवस्था को भी समझा जा सकता है, जैसे- लुंबिनी के स्तंभ अभिलेख में अशोक द्वारा भू-राजस्व कम करने का उल्लेख है।
    • अभिलेखों में राजाओं के युद्धों, वीरता एवं कीर्तियों का वर्णन रहता है। इनका निर्माण प्रशस्ति के रूप में कराया जाता है, जैसे- समुद्रगुप्त की त्याग प्रशस्ति।

    अभिलेखों में प्रतिबिंबित कला एवं संस्कृति

    • तत्कालीन समय में प्रचलित भाषा और लिपि को समझने में अभिलेख सहायता करते हैं। अशोक के अभिलेखों से पता चलता है कि तीसरी सदी ई.पू. प्राकृत सबसे अधिक प्रचलित भाषा थी और ब्राह्मी सर्वाधिक प्रचलित लिपि।
    • इस समय की भौतिक संस्कृति को समझने में अभिलेख मदद करते हैं, जैसे- हड़प्पा काल में स्टेलाइट की बनी मुहरों पर अभिलेखों का उत्कीर्णन किया गया, जबकि मौर्यकाल में अभिलेखों के उत्कीर्णन के लिये पत्थरों व ताम्रपत्रों का उपयोग किया गया।
    • अभिलेख तत्कालीन सामाजिक-सांस्कृतिक जीवन को समझने में भी मदद करते हैं, जैसे- ताम्रपत्र पर उकेरे गए ब्राह्मणों, मंदिरों, भिक्षुओं को दिये गए भूमिदान के अभिलेखों में सांस्कृतिक, सामाजिक, आर्थिक जीवन का उल्लेख।
    • अभिलेखों से तत्कालीन धार्मिक व्यवस्था पर भी प्रकाश पड़ता है। मोरा अभिलेख में भागवत धर्म की स्थिति का पता चलता है।

    इस प्रकार अभिलेखों में राजनीतिक इतिहास व कला संस्कृति दोनों का ही काफी हद तक उल्लेख है। किसी एक की अधिक सीमा कहना संभव नहीं प्रतीत होता क्योंकि राजनीतिक इतिहास काफी हद तक कला संस्कृति और कला संस्कृति बहुत सीमा तक राजनीतिक इतिहास को प्रभावित करती है।

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