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कुषाणों और सातवाहनों के मौद्रिक साक्ष्य तत्कालीन इतिहास की पुनर्रचना करने में किस प्रकार मदद करते हैं?
28 May, 2020उत्तर :
सिक्कों के अध्ययन अर्थात् मुद्राशास्त्र के आधार पर सिक्कों पर राजाओं तथा देवताओं के चित्र तथा तिथियों के उल्लेख के कारण राजवंशों के राजनीतिक इतिहास, उनके व्यापारिक प्रचलन समकालीन आर्थिक इतिहास एवं धार्मिक प्रतीकों व लेखों के उत्कीर्णन के कारण तत्कालीन कला और प्रचलित धर्म के बारे में व्यापक ऐतिहासिक निष्कर्ष निकाले जा सकते हैं।
कुषाणकालीन मौद्रिक साक्ष्य एवं तत्कालीन इतिहास की पुनर्रचना
- कुषाण राजाओं द्वारा बड़ी संख्या में शुद्धता में उत्कृष्ट स्तर की स्वर्ण मुद्राएँ जारी की गई। उन्होंने कम मूल्यों वाली तांबे की मुद्रा का भी प्रचलन किया, जिससे तत्कालीन समय में मुद्रा अर्थव्यवस्था के प्रसार एवं व्यापार की उन्नतावस्था का संकेत मिलता है।
- सुदूरवर्ती भागों में मिले इन सिक्कों से साम्राज्य के विस्तार की सीमा के बारे में अंदाजा लगाया जा सकता है। मिले हुए सिक्कों के आधार पर पता चलता है कि कुषाण साम्राज्य की पूर्वी सीमा घाटी और दक्षिणी सीमा मालवा तक विस्तृत थी। मथुरा कुषाण साम्राज्य में महत्त्वपूर्ण शहर था, जिसका पता यहाँ मिले सिक्कों से चलता है।
- कुषाण राजाओं द्वारा जारी किये गए सिक्कों पर शिव, बुद्ध, ग्रीक और रोमन देवताओं के चित्र मिलते हैं, जिससे तत्कालीन राजाओं की धार्मिक सहिष्णुता और उदारता का पता चलता है।
- कुषाणकालीन सिक्के रोमन सिक्कों की नकल थे और इन पर रोमन तथा ग्रीक देवताओं के चित्र थे। इनसे रोम और भारतीय उपमहाद्वीप के बीच राजदूतों का आदान-प्रदान तथा व्यापार के प्रचलन की जानकारी मिलती है।
- नागार्जुनकोंडा के क्षेत्रों में भारी मात्रा में सिक्कों का मिलना तत्कालीन बौद्ध भिक्षुओं-भिक्षुणियों के जीवन में शिथिलता एवं महायान धर्म के विकास की ओर संकेत करता है।
- कुषाण शासन के दौरान उज्जयिनी, कौशांबी, विदिशा, वाराणसी और तक्षशिला के शहरी प्रशासन द्वारा जारी किये हुए सिक्कों का मिलना तत्कालीन शहरी स्थानीय प्रशासन की ओर इशारा करता है।
सातवाहनकालीन मौद्रिक साक्ष्य एवं तत्कालीन इतिहास की पुनर्रचना:
- सिक्कों के सुदूर भागों में मिलने से सातवाहन शासक के विस्तार का पता चलता है। लगता है कि गौतमी पुत्र शातकर्णी का साम्राज्य उत्तर में मालवा से लेकर दक्षिण में कर्नाटक तक विस्तृत था। नासिक में 8000 से अधिक चाँदी के सिक्के मिले हैं, जिन्हें सातवाहन राजा द्वारा फिर से चलाए जाने के चिह्न मिले हैं।
- सातवाहन काल में सिक्कों के ढलाई की तकनीक उन्नत अवस्था में थी। इस काल में लोग रोमन सिक्कों की नकल बना लेते थे।
- सातवाहनों ने अधिकांशतया सीसे, पोटिन, ताँबे एवं काँसे के सिक्के चलाए। जानकारी मिलती है कि इन शासकों ने दक्षिण के खनिज स्रोतों का उपयोग किया।
- भारी संख्या में रोमन और सातवाहन सिक्के पूर्वी दक्कन में गोदावरी-कृष्णा क्षेत्र में साथ-साथ मिले हैं। इससे दोनों के बीच बढ़ते व्यापार का संकेत मिलता है।
- सातवाहन राजा यज्ञश्री शातकर्णी के सिक्कों पर जहाज का चित्र है, जो सातवाहन शासकों के समुद्री व्यापार के प्रति प्रेम का परिचायक है।
अंत में मुद्राशास्त्र के अध्ययन द्वारा हमें कुषाण एवं सातवाहन काल के सामाजिक, आर्थिक एवं राजनीतिक इतिहास के बारे में विस्तृत जानकारी मिलती है।