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गुप्तकाल में भूमि अनुदान पत्रों में आदानी को क्या विशेषाधिकार दिये जाते थे? तत्कालीन सामाजिक-राजनीतिक एकीकरण या विघटन में इन भूमि अनुदान पत्रों ने कहाँ तक भूमिका निभाई?
12 Jun, 2020उत्तर :
सातवाहन शासकों ने दक्कन में भूमि अनुदान प्रथा का आरंभ किया, जिसे गुप्त शासकों द्वारा मध्य भारत में सामान्य परिपाटी के रूप में चलाया गया। पुरोहितों एवं धर्माचार्यों को प्रदान किये गए इन भूमि अनुदान पत्रों में कुछ विशेष अधिकारों का उल्लेख किया जाता था, जिन्होंने आगे चलकर तत्कालीन सामाजिक-राजनीतिक परिवेश को व्यापक रूप में प्रभावित किया।
भूमि अनुदान-पत्रों में उल्लेखित विशेषाधिकार
- ब्राह्मणों को दान की गई यह भूमि कर मुक्त होती थी तथा उन्हें सभी प्रकार के कर उगाहने का विशेषाधिकार दिया जाता था।
- अनुदानित ग्रामों में राजा के अधिकारियों और अमलों को प्रवेश नहीं करने का उल्लेख रहता था।
- इन अनुदान पत्रों में अनुदानभोगियों को वहाँ के अपराधियों को सजा देने का भी अधिकार था।
सामाजिक-राजनीतिक एकीकरण में भूमिका
- प्रशासन संबंधी काम उन सामंतों और अनुदानभोगियों के हाथों ही संपन्न हो जाने के कारण मौर्यों की भाँति गुप्तों को अधिक अधिकारी वर्ग रखने की आवश्यकता नहीं रही।
- मध्य भारत के जनजातीय इलाकों में ब्राह्मण अनुदानभोगियों ने कृषि तकनीक एवं आयुर्वेद का प्रचार किया तथा बहुत सारी परती जमीन को आजाद कराया, जिससे कृषि उत्पादन में वृद्धि हुई।
- भूमि अनुदानों से सुदूर दक्षिण और सुदूर पूर्व में सभ्यता का प्रसार हुआ; हालाँकि इस दिशा में कुछ काम व्यापारियों ने तथा जैनों और बौद्धों ने पहले भी कर रखा था।
- भूमि अनुदानों से जनजातीय किसान भारी संख्या में ब्राह्मण समाज में आ गए, जिन्हें शूद्र वर्ग में रखा गया। इसलिये पूर्व मध्यकाल के ग्रंथों में शूद्रों को किसान कहा जाने लगा।
सामाजिक-राजनीतिक विघटन में भूमिका
- ब्राह्मणों को बड़े पैमाने पर ग्राम अनुदानों के कारण ब्राह्मणों की श्रेष्ठता गुप्तकाल में बनी रही तथा वे वर्णव्यवस्था के परम प्रतिपालक हो गए। इसके कारण ब्राह्मणों ने खूब धन संचय किया तथा विशेषाधिकार अर्जित किये; जिसके कारण समाज में सामाजिक और धार्मिक विभेद में वृद्धि हुई।
- गुप्तकाल में ग्राम अनुदान परंपरा से सामाजिक स्तरीकरण में भी वृद्धि हुई, क्योंकि अब बहुत से जनजातीय लोगों के ब्राह्मण समाज में प्रवेश से जातियों की संख्या में वृद्धि हुई।
- सामाजिक स्तरीकरण में वृद्धि एवं सामाजिक विभेद के कारण तत्कालीन समाज में अस्पृश्यता एवं छूआछूत की समस्या प्रबल हो गई। चीनी यात्री फाह्यान ने लिखा है कि चंडाल गाँव के बाहर ही बसते थे और जब कभी वे नगर में प्रवेश करते, उच्च वर्ग के लोग उनसे दूरी रखते थे, क्योंकि वे मानते थे कि चांडालों से सड़क अपवित्र हो जाती है।
- भूमि अनुदानों से गुप्त काल में सामंती व्यवस्था का उदय हुआ और सामंती शासकों ने सर उठाकर गुप्त साम्राज्य को दुर्बल बना दिया। गुप्त सम्राटों की ओर से उत्तरी बंगाल में नियुक्त शासनाध्यक्षों ने और दक्षिण-पूर्व बंगाल के उनके सामंतों ने स्वयं को स्वतंत्र बनाना शुरू कर दिया। ये लोग स्वाधिकारपूर्वक भूमि अनुदान पत्र जारी करने लगे। परिणामस्वरूप व्यापार और वाणिज्य से होने वाली आय से गुप्त शासकों को हाथ धोना पड़ा और वे आर्थिक रूप से पंगु हो गए, जिसने गुप्त साम्राज्य को पतन की ओर धकेल दिया।
- भूमि अनुदानों से खासकर विकसित क्षेत्रों में, स्वतंत्र वैश्य किसानों की स्थिति गिर गई और गुप्तकाल के पश्चात् वैश्य एवं शूद्र सामाजिक तथा धार्मिक दोनों पहलुओं में परस्पर निकट आ गए। वैश्यों की स्थिति बिगड़ने से वर्ण-व्यवस्था में परिवर्तन हुआ और तत्कालीन समाज में अव्यवस्था उत्पन्न हुई।
- भूमि अनुदान परंपरा से विकसित सामंती ढाँचे में भूस्वामियों और योद्धाओं के वर्ग की स्त्रियों की दशा बिगड़ गई, जैसे- पूर्व मध्यकाल में राजस्थान में सती प्रथा जोरों से चल पड़ी।
अंत में गुप्तकालीन भूमि अनुदान पत्रों में उल्लेखित विशेषाधिकारों ने तत्कालीन समाज में सामंती व्यवस्था एवं राजनीतिक विकेंद्रीकरण को जन्म दिया। समाज में शांति व्यवस्था बनाए रखने एवं प्रशासनिक तथा वित्तीय समस्याओं के समाधान के माध्यम से इसने कुछ मामलों में सामाजिक-राजनीतिक एकीकरण में कुछ भूमिका अवश्य निभाई। फिर भी अधिकांश मामलों में यह राजनीतिक-सामाजिक विघटन का ही कारण बना, क्योंकि इसके कारण स्वतंत्र शासकों का जन्म एवं उनकी शक्तियों में वृद्धि तथा सामाजिक व्यवस्था में असंतुलन और सामाजिक विभेद जैसी समस्याएँ उत्पन्न हुई।