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गुप्तकाल में कला और वास्तु के क्षेत्र में हुए विकास की चर्चा कीजिये।
10 Jun, 2020उत्तर :
‘स्वर्ण युग’ के नाम से प्रसिद्ध गुप्तकाल में तत्कालीन शासकों ने कला और वास्तु का संपोषण किया। इस काल में धार्मिक-आर्थिक परिवर्तनों के कारण कला और वास्तु के क्षेत्र में भी नवीन प्रवृत्तियाँ उभरकर आई।
गुप्तकालीन कलाएँ
- उन्नत आर्थिक स्थिति होने के कारण गुप्त शासकों ने अधिक स्वर्ण मुद्राएँ जारी की। ये मुद्राएँ अपने शिल्प और उत्कीर्ण प्रतिमाओं के कारण महत्त्वपूर्ण है, जैसे- समुद्रगुप्त को सिक्के पर वीणा बजाते हुए दिखाना।
- अजंता की चित्रावली गुप्तकालीन बौद्ध कला का उत्कृष्ट उदाहरण है। गौतम बुद्ध और उनके पिछले जन्मों की विभिन्न घटनाओं से संबंधित चित्र सजीव और सहज लगते हैं।
- चूँकि गुप्त राजा हिंदू धर्म के संपोषक थे, इसलिये पहली बार गुप्तकाल में विष्णु, शिव और हिंदू देवताओं की प्रतिमाओं का निर्माण हुआ। कई स्थानों पर हम संपूर्ण देवमंडल पाते हैं। जहाँ मध्य में मुख्य देवता और चारों ओर उसके परिचर व गौण देवता एक ही पट पर विराजमान हैं।
गुप्तकालीन वास्तुकला
- वास्तुकला में गुप्तकाल पिछड़ा हुआ था। वास्तुकला के नाम पर हमें ईंट के बने कुछ मंदिर उत्तर प्रदेश में मिलते हैं, जैसे- कानपुर का भीतरगाँव और झाँसी के देवगढ़ के ईंट के मंदिर विशेष उल्लेखनीय है।
- अशोक द्वारा निर्मित सारनाथ के स्तूप का गुप्तकाल में पुनर्निर्माण किया गया, जिसमें बारीक फूलों की नक्काशी उच्च शिल्प कौशल का उदाहरण है।
- नालंदा के बौद्ध महाविहार में ईंट निर्मित संरचना भी गुप्तकालीन है।
इस प्रकार गुप्तकाल कला एवं वास्तु विकास के लिये महत्त्वपूर्ण समय है। इस समय सामाजिक-धार्मिक प्रवृत्तियाँ बदली हुई दिखाई देती है, अत: कला और स्थापत्य में भी परिवर्तन आना स्वभाविक है, जैसे गुप्त शासक हिंदू धर्म के संपोषक थे, अत: हिंदू देवताओं की प्रतिमाओं और मंदिरों का निर्माण अधिक हुआ तथा बौद्ध धर्म से संबंधित कला एवं वास्तु की विषयवस्तु के सापेक्षिक महत्त्व में कमी दिखाई देती है।