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भारत संघ में राज्यों के बीच जल विवाद

  • 26 Aug 2024
  • 13 min read

धरती, वायु, भूमि एवं जल हमारे पूर्वजों से मिली विरासत नहीं अपितु हमारे बच्चों से मिला हुआ ऋण है इसलिये हमें ये तत्त्व उसी प्रकार उन्‍हें सौंपने हैं जिस प्रकार वे हमें मिले थे।

 —महात्मा गांधी

जीविका, कृषि और औद्योगिक गतिविधियों के लिये जल एक महत्त्वपूर्ण संसाधन है। भारत जैसे संघात्मक परिवेश  में, जहाँ संसाधनों का असंगत वितरण है, राज्यों के बीच जल विवाद एक महत्त्वपूर्ण मुद्दा बन गया है। संघीय ढाँचे में संघीय और राज्य सरकारों के बीच अधिकारों के विभाजन के कारण जल संसाधनों के प्रबंधन और वितरण पर विवाद उत्पन्न हुए हैं, जिसका प्रभाव घरेलू उपयोग, कृषि और क्षेत्रीय विकास पर पड़ा है। ये विवाद प्रायः विभिन्न  राज्यों की भिन्न-भिन्न जल आवश्यकताओं, जलवायु परिस्थितियों और विकासात्मक प्राथमिकताओं के कारण उत्पन्न होते हैं। जल प्रबंधन के लिये एकीकृत दृष्टिकोण के अभाव से यह संघर्ष बढ़ते हैं, जिससे लंबे समय तक चलने वाली विधिक कार्यवाही और राजनीतिक तनाव उत्पन्न होते हैं। जल का न्यायोचित वितरण सुनिश्चित करने, क्षेत्रीय सहयोग को बढ़ावा देने और संपूर्ण देश में सतत् विकास को बढ़ावा देने हेतु इन विवादों का प्रभावी समाधान करना अत्यावश्यक है।

भारत में जल प्रबंधन नीतियाँ प्रथमतः औपनिवेशिक काल में बनाई गई थीं और तभी से जल को लेकर विवाद होते रहे हैं। जल संसाधन प्रबंधन को केंद्रीकृत करने हेतु अंग्रेज़ों ने कई ऐसी नीतियाँ बनाई, जिसमें क्षेत्रीय आवश्यकताओं की उपेक्षा की गई और राज्यों के बीच संघर्ष की स्थिति उत्पन्न हुई। स्वतंत्रता प्रश्चात् भी ये संघर्ष जारी रहे क्योंकि जनसंख्या में वृद्धि और कृषि संबंधी मांगों के दृष्टिगत राज्यों ने जल संसाधनों पर नियंत्रण करने का प्रयास किया।

भारत में जल संसाधन प्रबंधन पर संवाद कई प्रमुख जल विवादों से प्रभावित रहा है। कावेरी जल विवाद कर्नाटक, तमिलनाडु, केरल और पुद्दुचेरी के सर्वविदित जल विवादों में से एक है। यह विवाद 19वीं सदी से जारी है किंतु यह मामला अधिक गंभीर स्वतंत्रता के बाद हुआ। कई समझौतों और अधिकरणों के निर्णयों से विवाद का समाधान करने का प्रयास किया गया किंतु नदी के जल का आवंटन विवादास्पद रहा है। कावेरी जल विवाद अधिकरण (CWDT) ने कई पंचाट जारी किये किंतु कार्यान्वयन और अनुपालन को लेकर मतभेद के कारण यह मुद्दा वर्तमान में भी अनिर्णीत है।

महाराष्ट्र, तेलंगाना, आंध्र प्रदेश और छत्तीसगढ़ द्वारा साझा की जाने वाली गोदावरी नदी भी विवाद का एक स्रोत रही है। सिंचाई और पेयजल हेतु जल का बँटवारा एक प्रमुख मुद्दा रहा है, जो नदी के मौसमी परिवर्तिता के कारण और अधिक गंभीर हो गया है।

रावी और ब्यास जल विवाद का संबंध पंजाब, हरियाणा और राजस्थान से है। पूर्व में किये गए समझौतों और वर्तमान समय की आवश्यकताओं के परिणामस्वरुप नदी जल के बँटवारे को लेकर अमूमन मतभेद होते रहे हैं और यह विशेषकर सूखे की स्थिति के दौरान होता है।

भारतीय संविधान संघ और राज्य की सरकारों के बीच शक्तियों के विभाजन के माध्यम से जल संसाधन प्रबंधन के लिये एक रूपरेखा प्रदान करता है। संविधान में जल को राज्य विषय के रूप में सूचीबद्ध किया गया है, जिसका अर्थ है कि राज्यों को अपने क्षेत्रों के भीतर जल संसाधनों पर प्राथमिक अधिकार है। हालाँकि, कई नदियों की अंतर-राज्यीय प्रकृति के लिये एक समन्वित दृष्टिकोण की आवश्यकता होती है।

अंतरराज्यिक नदी जल विवाद अधिनियम, 1956 में राज्यों के बीच होने वाले अंतर्राज्यीय नदियों के जल से संबंधित विवादों के न्यायनिर्णयन का प्रावधान किया गया है। इसमें उक्त प्रकार के विवादों का समाधान करने के लिये अधिकरणों की स्थापना की रूपरेखा निर्धारित की गई। विवाद समाधान की दक्षता में सुधार करने के लिये अधिनियम में संशोधन किया गया है।

भारत की राष्ट्रीय जल नीति जल प्रबंधन के सिद्धांतों को रेखांकित करती है और इसका उद्देश्य इसका न्यायसंगत वितरण सुनिश्चित करना है। इसमें जल संसाधन प्रबंधन हेतु एकीकृत दृष्टिकोण की आवश्यकता पर ज़ोर दिया गया है और राज्यों के बीच सहयोग को प्रोत्साहित किया गया है।

राष्ट्रीय जल संसाधन परिषद को राष्ट्रीय स्तर पर जल संसाधन प्रबंधन नीतियों के समन्वय का कार्य सौंपा गया है,  जिसकी अध्यक्षता प्रधानमंत्री करते हैं। यह अंतरराज्यिक विवादों को सुलझाने और जल प्रबंधन के लिये राष्ट्रीय रणनीति विकसित करने में भूमिका निभाती है।

भारत में जल विवादों का समाधान अनेकों चुनौतियों से जटिल बन गया है। जनसंख्या में तीव्र वृद्धि और शहरीकरण के कारण जल की मांग में वृद्धि हुई है, जिससे मौजूदा संसाधनों पर दबाव बढ़ रहा है और राज्यों के बीच संघर्ष की स्थिति अधिक गंभीर हो रही है। वर्षा के प्रतिरूप में परिवर्तिता और जलवायु परिवर्तन के प्रभाव से जल की कमी की समस्याएँ बढ़ रही हैं, जिससे जल संसाधनों का प्रबंधन करना और इनका न्यायसंगत आवंटन करना कठिन हो रहा है। अकुशल जल प्रबंधन पद्धतियाँ और अपर्याप्त बुनियादी ढाँचा इस समस्या को और अधिक जटिल बनाती हैं। जल-बँटवारे के समझौतों के अपर्याप्त ताल-मेल और बुनियादी ढाँचे में निवेश के अभाव के कारण ये विवाद हो सकते हैं। जल विवाद प्रायः राजनीतिक और सामाजिक कारकों से प्रभावित होते हैं। राज्य सरकारें जल विवादों  का उपयोग राजनीतिक लाभ के लिये करती हैं, जिससे विवादों की समाधान प्रक्रिया और अधिक जटिल हो जाती है।

विवादों को सुलझाने में मौजूदा कानूनों और ढाँचों में संशोधन करना उन्हें और अधिक प्रभावी बना सकता है। अधिकरण के पंचाटों और समझौतों का यथासमय क्रियान्वयन सुनिश्चित करना महत्त्वपूर्ण है। जल संसाधनों के डेटा संग्रह में सुधार और शोध से इसकी उपलब्धता एवं आवश्यकताओं के संबंध में सटीक जानकारी प्राप्त की जा सकती है, जिससे अधिक सूचित निर्णय लेना सुकर होगा। राज्यों के बीच संवाद और सहयोग को प्रोत्साहित करने से अधिक मैत्रीपूर्ण समाधान किये जा सकते हैं। बहु-राज्य समझौते और संयुक्त प्रबंधन निकाय जल उपयोग के समन्वय में मदद कर सकते हैं। जल के भंडारण, वितरण और संरक्षण के लिये बुनियादी ढाँचे का विकास और इसके अनुरक्षण से विवाद की स्थिति में सुधार किया जा सकता है। जल संरक्षण के बारे में लोगों को अधिक जागरूक करने और जल प्रबंधन में स्थानीय समुदायों को शामिल करके अधिक संधारणीय कार्यप्रणाली अपनाई जा सकती है और संघर्षों को कम किया जा सकता है।

कर्नाटक और तमिलनाडु के बीच विवादों को सुलझाने में कावेरी जल विवाद अधिकरण की अहम भूमिका रही है। सर्वोच्च न्यायालय के हस्तक्षेप से उसके निर्णयों का समय पर क्रियान्वयन सुनिश्चित हुआ। राष्ट्रीय जल सूचना विज्ञान केंद्र (NWIC) जल संसाधन संबंधी डेटा एकत्र करता है और उसका विश्लेषण करता है, जिससे बेहतर निर्णय लेने और विवाद समाधान में सहायता मिलती है। नर्मदा नियंत्रण प्राधिकरण मध्य प्रदेश, गुजरात, महाराष्ट्र और राजस्थान के बीच सहयोग को सुगम बनाता है, जिससे नर्मदा नदी के जल का न्यायसंगत वितरण सुनिश्चित होता है। भाखड़ा ब्यास प्रबंधन बोर्ड (BBMB) पंजाब, हरियाणा, राजस्थान और हिमाचल प्रदेश को शामिल करते हुए सतलुज और ब्यास नदियों के जल संसाधनों का प्रबंधन करता है। नर्मदा नदी पर निर्मित सरदार सरोवर बाँध से  जल के भंडारण और वितरण में सुधार हुआ है, जिससे कई राज्य लाभान्वित हुए और संघर्ष की स्थिति में भी सुधार हुआ। जल शक्ति अभियान भारत सरकार द्वारा जल संरक्षण को बढ़ावा देने और जल प्रबंधन में स्थानीय समुदायों को शामिल करने का अभियान है।

राज्यों के बीच जल विवाद से भारत संघ के विविधतापूर्ण और जनाकीर्ण परिवेश में सहभाजी संसाधनों के प्रबंधन की जटिलताएँ उजागर होती हैं। यद्यपि पूर्व में किये गए समझौते और विधिक ढाँचे इसके समाधान का आधार हैं किंतु जनसंख्या में वृद्धि, जलवायु में परिवर्तन और राजनीतिक कारकों जैसी वर्तमान की चुनौतियों से यह प्रक्रिया जातिक हो गई है। इन विवादों का समाधान करने और न्यायसंगत जल वितरण सुनिश्चित करने के लिये एक व्यापक दृष्टिकोण जिसमें विधिक तंत्र को सुदृढ़ करना, बुनियादी ढाँचे में सुधार करना और राज्यों के बीच सहयोग को बढ़ावा देना शामिल है, आवश्यक है। भारत के सतत् विकास और इसके राज्यों के बीच सामंजस्य बनाए रखने के दृष्टिगत जल संसाधनों का प्रभावी प्रबंधन महत्त्वपूर्ण है। इसके अतिरिक्त, जल संरक्षण और प्रबंधन की उन्नत तकनीकों जैसे कृषि में ड्रिप सिंचाई और वर्षा जल संचयन से, जल की कमी को एक सीमा तक कम किया जा सकता है। जल संरक्षण प्रयासों में जन जागरूकता अभियान और सामुदायिक भागीदारी भी महत्त्वपूर्ण है। परंपरागत ज्ञान और आधुनिक प्रथाओं का एकीकरण करके, भारत जल प्रबंधन की स्थिति स्थापक प्रणाली विकसित कर सकता है जिससे वर्तमान और भविष्य दोनों की चुनौतियों का समाधान संभव होगा। इस समग्र दृष्टिकोण से न केवल संघर्षों का समाधान होगा अपितु जल संसाधनों की दीर्घकालिक संधारणीयता भी सुनिश्चित होगी।

कुएँ के निर्जल होने पर ही हम जल का मूल्य समझ पाएँगे।

—बेंजामिन फ्रैंकलिन

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