मूल्य वे नहीं जो मानवता है बल्कि वे हैं जैसा मानवता को होना चाहिये | 04 Mar 2024

लोगों को उनके मानवाधिकारों से वंचित करना उनकी मानवता को ही चुनौती देना है।

— नेल्सन मंडेला

मूल्यों में वे सिद्धांत, विश्वास एवं आकांक्षाएँ शामिल होती हैं जिन्हें हम प्रिय मानते हैं, तथा जिन्हें एक साथ मिलाकर एक समृद्ध और जटिल ताना-बाना बनाया जाता है। हमारे कार्यों तथा निर्णयों को सम्मानजनक या वांछनीय माने जाने वाली दिशा में निर्देशित करने के लिये, ये आदर्श नैतिक मानदंडों के रूप में कार्य करते हैं। यद्यपि विभिन्न संस्कृतियों, धर्मों एवं समाजों के मूल्यों में महत्त्वपूर्ण भिन्नता हो सकती है, फिर भी ईमानदारी, करुणा तथा न्याय जैसे कुछ सार्वभौमिक सिद्धांत भौगोलिक और वैचारिक सीमाओं से परे होते हैं, तथा मानवता के जटिल ताने-बाने में एक सामान्य सूत्र से बंधे होते हैं।

संपूर्ण इतिहास में, मानवता ने सांस्कृतिक, सामाजिक एवं तकनीकी प्रगति द्वारा आकारित मूल्यों का एक गतिशील विकास देखा है। प्राचीन सभ्यताएँ साहस और बुद्धिमत्ता जैसे गुणों का सम्मान करती थीं, जबकि आधुनिक समाज समानता, मानवाधिकार एवं पर्यावरणीय प्रबंधन पर अधिक ज़ोर देते हैं। विकास की यह प्रक्रिया मानवता की नैतिक उन्नति और सामाजिक सुधार की सतत् खोज का प्रतिबिंब है।

मूल्य सामाजिक मानदंडों, संस्थानों एवं सामूहिक व्यवहार को आकार देने में महत्त्वपूर्ण भूमिका निभाते हैं। वे उस आधार के रूप में कार्य करते हैं जिस पर कानून एवं नीतियाँ बनाई जाती हैं और संस्थाएँ स्थापित की जाती हैं। उदाहरण के लिये, न्याय का मूल्य कानूनी प्रणालियों का आधार है, जो समाज के सभी सदस्यों के लिये निष्पक्षता एवं समानता सुनिश्चित करता है। सहानुभूति का गुण भी इसी प्रकार कार्य करता है, यह करुणा एवं एकता को प्रोत्साहित करता है, जिसके परिणामस्वरूप ऐसे कानून निर्मित होते हैं जो सामाजिक अन्याय से संघर्ष करते हैं और समावेशिता को बढ़ावा देते हैं।

हम करुणा और मानवीय सहानुभूति के साथ अंतराल को पाटते हैं, और साथ ही एक दूसरे को सांत्वना एवं सहायता प्रदान करके आश्वस्त करते हैं कि हम अकेले नहीं हैं। सहानुभूति नीतियों को रूपांतरित करती है, उनमें ज़रूरतमंदों की देखभाल करने तथा मतभेदों को दूर करने की भावना भरविकसित करती है।

समावेशिता, जो मानवता का एक अनिवार्य घटक है, सभी का उत्साहपूर्वक स्वागत करती है, तथा एक जीवंत समुदाय को बढ़ावा देती है, जहाँ सभी व्यक्तियों को पूर्ण रूप से भाग लेने के लिये प्रोत्साहित किया जाता है। समावेशिता के सिद्धांत को अपनाने से यह सुनिश्चित होता है कि कोई भी व्यक्ति अलग-थलग महसूस न करे, क्योंकि इससे बाधाएँ टूट जाती हैं और सभी को भागीदारी के लिये ईमानदारी से निमंत्रण दिया जाता है। यह समावेशी दृष्टिकोण मानवता के सार को प्रतिबिंबित करता है, सभी के लिये विविधता,सम्मान एवं समान अवसरों के महत्त्व पर ज़ोर देता है।

मानवता को मूल्यों के साथ गहराई से जुड़ा होना चाहिये, क्योंकि वे व्यक्तिगत व्यवहार, मार्गदर्शक विकल्पों और अंतःक्रियाओं पर गहरा प्रभाव डालते हैं। सत्यनिष्ठा एवं उत्तरदायित्व जैसे मूल्यों के प्रति व्यक्ति की प्रतिबद्धता, पेशेवर प्रयासों से लेकर व्यक्तिगत संबंधों तक, जीवन के विभिन्न पहलुओं में उनके नैतिक आचरण को आकार देती है। इसके अतिरिक्त, मूल्य सामाजिक सामंजस्य के लिये उत्प्रेरक का कार्य करते हैं, तथा समुदायों के बीच अपनेपन और पारस्परिक सम्मान की भावना को पोषित करते हैं।

ये मूल्य न केवल सामाजिक मानदंडों और आकांक्षाओं को प्रतिबिंबित करते हैं, बल्कि एक नैतिक अनिवार्यता भी रखते हैं: उन सिद्धांतों को बनाए रखने का दायित्व जो लोक कल्याण को बढ़ावा देते हैं और मानव गरिमा की रक्षा भी करते हैं। यह नैतिक अनिवार्यता व्यक्तियों एवं संस्थाओं को अन्याय का सामना करने, दमनकारी प्रणालियों को चुनौती देने तथा सकारात्मक परिवर्तन की वकालत करने के लिये प्रेरित करती है। यह अधिक न्यायपूर्ण, दयालु और सतत् विश्व के लिये निरंतर प्रयास के मानवता के अंतर्निहित कर्तव्य पर प्रकाश डालता है।

कार्रवाई के लिये एक सौम्य आह्वान, जो लोगों और संगठनों को अन्याय का सामना करने के लिये प्रेरित करता है, हमारे अंतर्मन में गूंजता है। न्याय, निष्क्रिय होने के स्थान पर, हमारे भीतर एक ज्वाला प्रज्वलित करता है, जो हमें अपनी आवाज़ और कार्यों से समाज में व्याप्त अंतराल को भरने के लिये बाध्य करता है। मानवता का नैतिक पक्ष हमें निष्पक्षता से युक्त भविष्य की ओर ले जाता है, तथा हमें हाशिए पर एवं ज़रूरतमंद लोगों को उठाने तथा अपनी साझा ज़िम्मेदारियों का सम्मान करने का आग्रह करता है। करुणा, हमारी मानवता की आधारशिला है, घावों को भरती है तथा सीमाओं, विश्वासों एवं समयावधियों से परे संबंध को बढ़ावा देती है।

मानवता को क्या होना चाहिये, स्थिरता स्वयं को एक आवश्यक सूत्र के रूप में दर्शाती है, जो एक समृद्ध बेल की तरह हमारे जीवन में बुनी गई है, जो मानव जाति के सार का सार है। यह हमसे ग्रह के साथ दयालुता से पेश आने, इसके संसाधनों को नष्ट करने के स्थान पर उनकी रक्षा करने, तथा इसका दुरुपयोग करने के स्थान पर इसके संरक्षण का आह्वान करता है। ग्रह के संरक्षक के रूप में हमारी विरासत पत्थर की स्मारकों में नहीं बल्कि उस सद्भाव में अंकित है जिसे हम संरक्षित रखते हैं, तथा एक ऐसे विश्व का निर्माण करते हैं जहाँ गरिमा धूप वाले घास के मैदान में खिलने वाले जंगली फूलों की तरह खिलती है।

हम अपने दैनिक जीवन में न्याय, करुणा और प्रबंधन को अपनाते हुए अपने मूल मूल्यों को शामिल करें। ये मूल्य मार्गदर्शक सितारों की तरह कार्य करते हैं, जो हमें एक ऐसे विश्व की ओर ले जाते हैं जहाँ गरिमा पनपती है, जो मानवता के सार को प्रतिध्वनित करती है।

मूल्य केवल हमारे समाज के प्रतिबिंब नहीं हैं, वे लक्ष्य हैं जो हमें अपना सर्वश्रेष्ठ प्राप्त करने के लिये प्रेरित करते हैं। वे हमें स्वार्थ से परे जाकर सत्य, ज्ञान और दयालुता के लिये प्रयास करने हेतु प्रोत्साहित करते हैं। हालाँकि इन आदर्शों तक पहुँचना चुनौतीपूर्ण हो सकता है, लेकिन वे जीवन को उद्देश्य देते हैं, और साथ ही प्रगति और नवाचार को बढ़ावा देते हैं। उद्देश्य हमें आगे बढ़ाता है, नवप्रवर्तन को प्रेरित करता है और हमें हमारे लक्ष्यों को प्राप्त करने में सहायता प्रदान करता है। हम वर्तमान को भविष्य से जोड़ते हैं, यह समझते हुए कि प्रगति एक सामूहिक प्रयास है, जो एक पीढ़ी से दूसरी पीढ़ी तक हस्तांतरित होती है।

संकट के समय, जैसे महामारी, प्राकृतिक आपदाएँ या सामाजिक उथल-पुथल के दौरान, अनिश्चितता एवं प्रतिकूल परिस्थितियों के बीच मार्गदर्शक प्रकाशस्तंभ के रूप में मूल्यों का महत्त्व बढ़ जाता है। उदाहरण के लिये, COVID-19 महामारी ने वैश्विक चुनौतियों का सामना करने एवं सामूहिक लचीलेपन को बढ़ावा देने में एकजुटता, लचीलापन और करुणा जैसे मूल्यों के महत्त्व को रेखांकित किया।

संकट के समय में, जब अंधेरा मंडराता है और अनिश्चितता बढ़ती है,तब मूल्य अटूट प्रकाशस्तंभ के रूप में चमकते हैं। वे केवल अमूर्त विचार नहीं हैं; वे तूफानों और अज्ञात रास्तों से हमारा मार्गदर्शन करने वाले सितारे हैं।

एक समूह के रूप में एकजुट होने से हम अकेलेपन की दूरियों को दूर कर सकते हैं, ठीक वैसे ही जैसे कई हाथों से बनाया गया पुल। इस एकता में शक्ति एवं लचीलेपन की प्रतिध्वनि करती आवाज़ों का सामंजस्य पाया जा सकता है। हम स्वीकार करते हैं कि डर, सीमाएँ या विचारधाराएँ हमें हमारी साझा मानवता से अलग नहीं कर सकतीं। हम एक साथ खड़े हैं।

लचीलापन, एक परिवर्तनकारी ऊर्जा है जो मानव जाति के सार से उत्पन्न होती है। यह राख से उभरने वाले फीनिक्स की तरह है। यह थके हुए को हिम्मत देता है, हमें चुनौतियों से बचने के स्थान पर उनका सामना करने के लिये प्रेरित करता है। आशा से प्रेरित होकर, हम अपने पंखों को सुधारते हैं और एक बार फिर ऊँची उड़ान भरते हैं, यह समझते हुए कि लचीलापन केवल एक व्यक्तिगत प्रयास नहीं है बल्कि दृढ़ता से बनी एक सामूहिक शक्ति है।

करुणा, मानवता के लिये आवश्यक एक अन्य आधारशिला है, जो एक सुखदायक वर्षा के समान है जो हमारी आत्मा को तृप्त कर देती है। यह उन गुमनाम नायकों में व्याप्त होता है जो हमारी सहायता करते हैं - नर्सें, शिक्षक और पड़ोसी। हम डर के कारण नहीं, बल्कि एकता के कारण अपने हाथ बढ़ाते हैं, यह पहचानते हुए कि करुणा कमज़ोरी का प्रतीक नहीं है, बल्कि साहस का स्रोत है।

उथल-पुथल के बीच, हम आगे बढ़ने के अपने रास्ते को पहचानते हैं, अपने नैतिक दिशा-निर्देश को उन मूल्यों के साथ संरेखित करते हैं जो परिभाषित करते हैं कि मानवता को क्या होना चाहिये। कोविड-19 महामारी एक निर्णायक क्षण के रूप में सामने आई है, जो हमारी सामूहिक चेतना पर इन सबकों को अंकित करती है, हमारे कार्यों और निर्णयों को निर्देशित करने में मूल्यों की अनिवार्यता को रेखांकित करती है।

अपने अंतर्निहित महत्त्वके बावजूद, मूल्यों को वर्तमान की जटिल और परस्पर संबद्ध विश्व में प्राय: विकराल चुनौतियों का सामना करना पड़ता है। भौतिकवाद, व्यक्तिवाद तथा नैतिक सापेक्षवाद की शाक्तियाँ पारंपरिक मूल्यों एवं नैतिक मानदंडों को नष्ट कर सकती हैं, जिससे सामाजिक मतभेद और नैतिक भ्रम उत्पन्न हो सकता है। इसके अतिरिक्त, वैचारिक संघर्ष एवं सांस्कृतिक विभाजन कुछ मूल्यों की सार्वभौमिक स्वीकृति में बाधा उत्पन्न कर सकते हैं, तथा अन्याय और असमानता को बढ़ावा दे सकते हैं।

भौतिक संपदा एवं संपत्ति की आकांक्षाएँ असंतोष की भावना की ओर ले जाती है। इसे संबोधित करने के लिये, व्यक्ति भौतिक संचय के स्थान पर कृतज्ञता, उदारता और उद्देश्यपूर्ण जीवन जैसे मूल्यों को प्राथमिकता दे सकते हैं। समाज ऐसी नीतियों और पहलों को बढ़ावा दे सकता है जो विशुद्ध आर्थिक संकेतकों के स्थान पर कल्याण के साथ-साथ सफलता के समग्र उपायों पर ज़ोर देती हों।

जबकि व्यक्तित्व महत्त्वपूर्ण है, व्यक्तिगत स्वायत्तता पर अत्यधिक ध्यान सामाजिक विखंडन और अलगाव को जन्म दे सकता है। समुदायिक भावना के साथ व्यक्तित्व को संतुलित करने के लिये सहानुभूति, सहयोग एवं सामाजिक उत्तरदायित्व को बढ़ावा देना आवश्यक है। यह उन पहलों के माध्यम से प्राप्त किया जा सकता है जो समावेशिता, सहानुभूति निर्माण एवं सामुदायिक सहभागिता को बढ़ावा देते हैं।

गहरी जड़ें जमा चुके वैचारिक विभाजन समाज की प्रगति और सहयोग में बाधा उत्पन्न सकते हैं। सामान्य आधार ढूंढने और इन विभाजनों को पाटने के लिये सक्रिय रूप से सुनने, सहानुभूति और रचनात्मक वार्ता में शामिल होने की इच्छा की आवश्यकता होती है। न्याय, करुणा एवं मानवीय गरिमा के प्रति सम्मान जैसे साझा मूल्यों पर ज़ोर देने से आपसी समझ और मेल-मिलाप को बढ़ावा देने में सहायता प्राप्त हो सकती है।

"मूल्य वे नहीं जो मानवता है बल्कि वे हैं जैसा मानवता को होना चाहिये" कथन एक शक्तिशाली दृष्टिकोण प्रदान करता है जिसके माध्यम से हमारी सामूहिक एवं व्यक्तिगत यात्रा की जाँच की जा सकती है। यह मानव प्रकृति की जटिलताओं को पहचानता है और साथ ही हमारे व्यक्तिगत एवं सामाजिक विकास के लिये मार्गदर्शक सिद्धांतों के रूप में मूल्यों की परिवर्तनकारी शक्ति को उजागर करता है। इस सतत् प्रक्रिया को अपनाना, उन मूल्यों द्वारा निर्देशित जिन्हें हम प्रिय मानते हैं, अंततः यह परिभाषित नहीं करता कि हम कौन हैं, बल्कि यह कि हम क्या बनना चाहते हैं - एक ऐसा समुदाय जो अधिक न्यायपूर्ण, दयालु एवं समतापूर्ण विश्व के निर्माण की ओर प्रयास कर रहा है। वास्तविकता एवं आदर्श के बीच के अंतर को पहचानकर और साथ ही इस अंतराल की समाप्ति हेतु निरंतर प्रयास करके, हम मानवता की एक समृद्ध चित्रपट निर्मित कर सकते हैं, एक ऐसा चित्रपट जो अपनी पूर्ण क्षमता तक पहुँचने के लिये निरंतर रूपांतरित होता रहता है

प्रेम और करुणा आवश्यकताएँ हैं, विलासिता नहीं। इनके बिना मानवता जीवित नहीं रह सकती।

— दलाई लामा