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भारतीय विरासत और संस्कृति

“समय मूल्यवान है किंतु सत्य उससे अधिक मूल्यवान है

  • 17 Jun 2017
  • 14 min read

दुनिया में मूल्यवान वही होता है जो या तो दुर्लभ होता है या जिसका कुछ महत्त्व होता है और उसका तो मूल्य और अधिक होता है जिसका ना तो उत्पादन किया जा सकता है और ना ही उसे नियंत्रित किया जा सकता है ‘समय’ उनमें से सबसे प्रमुख है दुनिया में आने वाले प्रत्येक मनुष्य के पास एक निश्चित मात्रा में समय होता है जो उसके जन्म के लेने के समय से ही निरंतर एक नियमित गति से घटता जाता है और जो क्षण व्यक्ति एक बार जी लेता है वह दोबारा उस जीवन में लौटकर नहीं आता अतः समय अत्यंत ही मूल्यवान होता है लेकिन क्या सत्य उससे भी अधिक मूल्यवान होता है इसको जानने के लिए सबसे पहले यह जानना होगा कि वास्तव में सत्य क्या होता है।

सत्य शब्द संस्कृत के सत शब्द से निकला है जिसका अर्थ होता है शास्वत, वास्तविक या यथार्थ सत्य वास्तव में एक नैतिक मूल्य होता है जिस पर मानव समाज टिका होता है, सत्य एक साथ साध्य और साधन दोनों है जिसके द्वारा जिसको प्राप्त करने के लिए प्राचीन काल से लोगों द्वारा प्रयास किया जाता रहा है।

सत्य को अगर हम साधन के रूप में लेते हैं तो यह मनुष्य के प्राकृतिक अधिकारों जैसे स्वतंत्रता समानता आदि को प्राप्त करने का एक माध्यम है क्योंकि वही व्यक्ति अपने हित में स्वतंत्र रूप से विवेकशील निर्णय ले सकता है जिसे वास्तविकता का पूर्ण व सही ज्ञान हो तभी वह व्यक्ति वास्तव में स्वतंत्र माना जाएगा तभी व्यक्ति समाज में अपना उचित स्थान बनाए रख सकता है और तभी वह अपने खिलाफ किए जाने वाले कार्यों के विरुद्ध आवाजा उठा सकता है, साम्यवादी विचारधारा के अनुसार पृथ्वी पर जन्म लेने वाले प्रत्येक मनुष्य का पृथ्वी के प्रत्येक संसाधन पर बराबर का अधिकार होता है लेकिन आज समाज में हमें अत्यधिक असमानता देखने को मिलती है और यह असमानता कुछ लोगों के द्वारा अन्य लोगां के अधिकारों को हड़पकर वह उन्हें उनके प्राकृतिक अधिकारों के बारे में सत्य ना बनाने के कारण बनी हुई है अतः सत्य जानकर ही व्यक्ति धरती पर अपने प्राकृतिक अधिकारों को प्राप्त कर समानता का जीवन जी सकता है।

कहा जाता है कि सत्य के रास्ते पर चलने वाले की ही जीत होती है और इतिहास में इसके अनेकों उदाहरण भी हैं चाहे वह पौराणिक कथाओं में रावण के खिलाफ राम की विजय हो या महाभारत में पांडवों की या वास्तविक जीवन में महात्मा गांधी द्वारा सत्याग्रह के हथियार का प्रयोग कर भारत को आजादी दिलवाना हो सभी जगह सत्य की ही जीत हुई है लेकिन सत्य का रास्ता इतना आसान नहीं है सत्य को एक साधन के रूप में प्रयोग करने वालों को इसके लिए अत्यधिक मूल्य चुकाना पड़ा है जैसे राम को वनवास पांडवों को अपना राज्य व गांधीजी को अंग्रेजों का अमानवीय अत्याचार सहना पड़ा है इसी प्रकार आज भी पाखंड का विरोध करने व सत्य को उद्धाटित करने वाले बुद्धिजीवियों को सत्य की कीमत चुकानी पड़ती है और कई बार यह कीमत उनकी जान होती है अतः सत्य अत्यधिक मूल्यवान होता है इसीलिए शायद साहिर लुधियानवी जी ने कहा है कि-

झूठ तो कातिल ठहरा उसका क्या रोना यहाँ तो सच ने भी इंसान का खून बहाया है

इसके अलावा सत्य केवल इसलिये ही मूल्यवान नहीं होता कि इसके लिये अत्यधिक मूल्य चुकाना पड़ता है बल्कि इसलिये भी मूल्यवान होता है कि स्वयं में एक मूल्य है जिस पर अन्य मूल्य टिके हैं जैसे-विश्वास, ईमानदारी, संवेदनशीलता, दया, अपनत्व और जिन पर टिकी है मानव की मानवता इस प्रकार सत्य एक तरह से मानव के अस्तित्व का आधार है।

एक बार सत्य के पराजित होने या अनुपस्थित होने से मानवता और यहाँ तक की मानव के अस्तित्व पर भी सवाल खड़ा हो सकता है।

वही अगर हम सत्य को यदि एक साथ के रूप में मानते हैं तो भी इसे जानने के लिए सदियों से विभिन्न विद्वानों ने अनेकानेक प्रयास किए हैं सत्य की खोज के लिये महात्मा बुद्ध, महावीर जयंती ऐसे लोगों ने अपना राज-पाठ त्यागकर संयासियों का जीवन बिताया महात्मा बुद्ध के शब्दों में-

‘तीन चीजें कभी नहीं छिपाए जा सकती हैं-सत्य, ईश्वर और ज्ञान।’

इसी प्रकार बहुत से विद्वानों ने इस धरती व संसार को मोह माया मानते तथा इसे क्षणिकवाद उठा मानते हैं यह जीवन का वास्तविक लक्ष्य सत चित आनंद को प्राप्त करना मानते हैं क्योंकि धरती पर मनुष्य का वास्तविक लक्ष्य भौतिक सुख-सुविधाओं को प्राप्त करने से नहीं बल्कि उस परमात्मा को प्राप्त करने में है जो प्रत्येक मनुष्य का अंतिम लक्ष्य है इसलिए कहा गया है कि

सांच बराबर तप नहीं झूठ बराबर आप, 
जाके हिरदे सांच है ताके हिरदे आप

महात्मा गांधी वह इमैनुअल कांट जैसे विद्वान जीवन तो लॉजिकल एप्रोच के तहत सत्य के साथ कभी समझौता नहीं करने को आदर्श स्थिति मानते हैं और यह कहते हैं कि सत्य के रास्ते पर चलना ही वास्तव में वास्तविक लक्ष्य है इसीलिये गांधी जी कहते हैं कि -

‘सत्य ही ईश्वर है’

हाँ यह अलग बात है कि कई बार सत्य के रास्ते पर चलने वालों को अत्यधिक कठिनाइयों का सामना करना पड़ता है तथा वांछित लक्ष्य प्राप्त होने में देर लगती है लेकिन यह सत्य है कि विजय हमेशा सत्य की ही होती है लेकिन यह भी सही है कि भगवान के घर देर है लेकिन अंधेर नहीं।

इस प्रकार हम देखते हैं कि जहाँ सत्य को प्राप्त करने के लिए अत्यधिक मूल्य चुकाना पड़ता है वहीं सत्य को प्राप्त कर लेने से हम अपने लक्ष्यों को आसानी से प्राप्त कर लेते हैं जिससे मानवता का आधार मजबूत होता है और मानवमात्र पर विश्वास टिका रहता है क्योंकि जहाँ सत्य नहीं होता वहाँ अराकता और अन्याय अपना मुँह उठाते हैं और शायद इसीलिये भारत सरकार ने अपना राष्ट्रीय आदर्श वाक्य सत्यमेव जयते रखा है तथा भारतीय नागरिकों को सत्य जानने के लिये सूचना का अधिकार अधिनियम पारित कर सत्य की प्राप्ति हेतु एक महत्त्वपूर्ण हथियार मुहैया करवाया है क्योंकि धरती पर समय तो प्राकृतिक रूप से सबको बराबर मिला है वही धरती पर प्राकृतिक अधिकार भी बराबर ही मिले हैं लेकिन समय के साथ ही झूठ का सहारा लेकर व्यक्ति क्यों उसके प्राकृतिक अधिकारों से वंचित किया जाता रहा है जिसे सत्य के माध्यम से ही वह दुबारा प्राप्त कर सकता है अन्यथा धरती पर उसे मिला अधिकार वह प्राप्त नहीं कर पाएगा और बिना अधिकारों के उसका जीवन निरर्थक ही रहेगा इसीलिये किसी ने कहा है कि जीवन लंबा नहीं महान होना चाहिए

लेकिन क्या उपयुक्त विवेचन से यह मान लें कि सत्य समय से अधिक मूल्यवान होता है नहीं समय का भी बराबर महत्त्व होता क्योंकि जीवन में प्रत्येक क्रिया या वस्तु का एक निश्चित समय होता है वह वस्तु या क्रिया उसी समय मूल्यवान होती है जब समय उपयुक्त होता है अगर वह चीज समय पर ना मिले तुम वह कितनी भी ज़रूरी क्यों न हो हमारे लिए निरर्थक होती है जैसे कृषकों के लिए यह कहा गया है कि

समय चूकि पुनि का पछिताने का वर्षा जब कृषि सुखाने

अतः वर्षा का मूल्य उसी समय है जब वह समय पर अतः यह समय ही है जो किसी का मूल्य निर्धारित करता है इसी प्रकार उस न्याय को न्याय नहीं माना जाता जो समय पर ना मिले जिसके लिए एक महत्त्वपूर्ण कहावत प्रचलित है कि Justice delayed is justice denied.

इसके अलावा समय अपने आप में भी मूल्यवान होता है हाँ यह अलग बात है कि किसी के लिए कम मूल्यवान होता है और किसी के लिए अधिक मूल्यवान होता है जैसे किसी विद्यार्थी के लिए उसका परीक्षाओं के दौरान का समय अत्यधिक मूल्यवान होता है क्योंकि यह समय उसके पूरे जीवन की दिशा निर्धारित करता है और उस दौरान व्यर्थ में समय व्यतीत करने वाले विद्यार्थी जीवन भर पछताते रहते हैं जबकि इस समय का सदुपयोग कर अध्ययन करने वालों को सफलता मिलती है जबकि वह एक साधारण आदमी के लिए वह समय इतना मूल्यवान नहीं होगा हालाँकि दोनों के लिए समय घटने का दर एक ही होगा।

इसी प्रकार कई बार ऐसी परिस्थति आती है जब आपको सत्य से समझौता करना पड़ता है जैसे किसी अंधे को अंधा या लंगड़े को लंगड़ा कहना तो सत्य है लेकिन यह सही नहीं है इसी प्रकार यदि कोई चोर आपके पास छुपे हुए व्यक्ति को उन हथियारबंद व्यक्तियों के पास भेज देना भले ही सत्य का रास्ता चुनना हो लेकिन यह नैतिक रूप से कहीं भी सही नहीं होगा।

इसके अलावा समय कितना मूल्यवान होता है इसका पता आप किससे लगा सकते हैं कि आपके द्वारा जी लिए गए किसी भी छिड़को को आप दुनिया की कोई भी कीमत देकर वापस नहीं प्राप्त कर सकते अतः समय केवल मूल्यवान ही नहीं यह अनमोल भी होता है इसीलिए कहा गया है-

काल करे सो आज कर, आज करे सो अब पल में परलय होएगी बहुरि करोगे कब।

नियतिवादी विचारक तो यहाँ तक मानते हैं कि हर घटना का समय निश्चित है ना तो उसे कोई आगे कर सकता है और ना ही कोई पीछे कर सकता है हर व्यक्ति सिर्फ एक मशीन की तरह कार्य करता है इसी को व्यक्त करते हुए वक्त फिल्म का यह गाना याद आता है

वक्त से दिन और रात, वक्त से कल और आज
वक्त की हर शै गुलाम वक्त का हर शै पे राज

लेकिन कई बार ऐसी परिस्थितियाँ आती हैं जब हम यह चाहते हैं यह समय जल्द-से-जल्द गुजर जाए और बहुत उदासी के समय या किसी असाध्य पीड़ा से ग्रसित व्यक्ति का समय जब बीमारी घातक हो और सारे इलाज के माध्यम अपनाने के बावजूद भी वह ठीक ना हो तो व्यक्ति के लिए वह समय जल्द-से-जल्द गुजर जाना अच्छा होता है।

इस प्रकार उपरोक्त विश्लेषण से यह निष्कर्ष निकाला जा सकता है किस समय और सत्य दोनों एक-दूसरे के साथ से अपना मूल्य प्राप्त करते हैं, लेकिन सत्य साध्य और साधन दोनों रूप में मूल्यवान होता है। यह ज़रूरी होता है कि समय कितना भी लगे लेकिन सत्य उद्धाटित होना ही चाहिए और सत्य का ही बोलबाला होना चाहिए। अतः समय और सत्य दोनों अत्यधिक मूल्यवान होते हैं एक बार समय से तो समझौता किया जा सकता है, लेकिन सत्य से समझौता नहीं किया जा सकता क्योंकि समय व्यक्ति को मिला एक ऐसा कोश है जिसका समाप्त होना तो निश्चित है लेकिन यदि उसके सही मूल्य को समझकर उसे सही जगह निवेश किया जाए तो आपके जीवन में मिला यह थोड़ा सा ही समय उस पूरे युग को मूल्यवान बना देता है। जबकि सत्य ऐसा मूल्य है जो पूरी मानव जाति को वास्तविक मानवतावादी मान बनाती है। शायद इसीलिये किसी ने कहा है कि-

लहू में हरकतें मुँह में जुबान डालेंगे,
जो सच्चे लोग हैं वो मुर्दों में जान डालेंगे।

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