निबंध
इस संसार में सम्मान के साथ जीवन व्यतीत करने का सर्वोत्तम तरीका यह है कि हम वो व्यक्ति बनें, जैसा बनने का हम दिखावा करते हैं।
- 21 Apr 2025
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“धोखे से सफल होने की अपेक्षा सम्मान के साथ असफल होना श्रेष्ठ है।”
— सोफोक्लीस
सम्मान मानव समाज में एक अत्यंत प्रतिष्ठित गुण है, जो ईमानदारी, सत्यनिष्ठा तथा अपने मूल्यों के प्रति प्रतिबद्धता का प्रतीक है। यह उद्धरण, "इस संसार में सम्मान के साथ जीवन व्यतीत करने का सर्वोत्तम तरीका यह है कि हम वो व्यक्ति बनें, जैसा बनने का हम दिखावा करते हैं", यह दर्शाता है कि सच्चा सम्मान उन गुणों को वास्तविकता में अपनाने में निहित है, जिनका हम दावा करते हैं। यह विचार विशेष रूप से ऐतिहासिक, पौराणिक एवं आधुनिक व्यक्तित्वों के संदर्भ में प्रासंगिक है, जो अपने कार्यों को अपने आदर्शों के साथ संरेखित करने के महत्त्व को प्रदर्शित करते हैं।
भारत में प्रामाणिकता के माध्यम से सम्मान प्राप्त करने का एक अत्यंत प्रेरणादायक उदाहरण महात्मा गांधी हैं। गांधीजी ने केवल अहिंसा (Non-violence) व सत्य (Truth) का उपदेश ही नहीं दिया, बल्कि इन सिद्धांतों को अपने जीवन के प्रत्येक क्षेत्र में अपनाया। जहाँ अधिकांश नेता केवल आदर्शों की बात करते हैं परंतु स्वयं उन्हें अपनाने में असफल रहते हैं, वहीं गांधीजी ने हर कठिन परिस्थिति में भी अपने विश्वासों के प्रति निष्ठा बनाए रखी। 1930 का उनका नमक सत्याग्रह केवल एक राजनीतिक आंदोलन नहीं था, बल्कि उनकी अहिंसात्मक प्रतिरोध की अडिग प्रतिबद्धता का प्रतीक था। उन्होंने जिन मूल्यों का प्रचार किया, उन्हें आत्मसात कर उन्होंने लाखों लोगों का सम्मान एवं श्रद्धा अर्जित की तथा यह सिद्ध किया कि अपने घोषित आदर्शों के अनुरूप जीवन जीना ही महानता की ओर ले जाता है।
स्वामी विवेकानंद भी "जैसे हम दिखते हैं, वैसे ही बनें" के सिद्धांत पर सम्मानपूर्वक जीवन जीने का एक उत्कृष्ट उदाहरण हैं। श्री रामकृष्ण परमहंस के शिष्य के रूप में उन्होंने वेदांत और मानव सेवा के सिद्धांतों को अपने जीवन में आत्मसात किया। जहाँ अनेक आध्यात्मिक नेता केवल उपदेश देते हैं लेकिन उनका पालन नहीं करते, वहीं स्वामी विवेकानंद ने त्याग एवं सेवा से परिपूर्ण जीवन व्यतीत किया। 1893 में शिकागो में विश्व धर्म महासभा में दिया गया उनका प्रसिद्ध भाषण केवल शब्दों का समूह नहीं था, बल्कि उनके गहराई से अपनाए गए आदर्शों की अभिव्यक्ति थी। उन्होंने रामकृष्ण मिशन की स्थापना कर गरीबों व ज़रूरतमंदों की सेवा के माध्यम से यह सिद्ध किया कि सच्चा सम्मान उन्हीं को प्राप्त होता है जो जिन मूल्यों को मानते हैं, उन्हें अपने जीवन में भी पूरी निष्ठा से अपनाते हैं।
झांसी की वीरांगना रानी लक्ष्मीबाई ने कर्म के माध्यम से सम्मान को जीने का एक अद्वितीय उदाहरण प्रस्तुत किया है। उन्हें केवल उनके शब्दों के लिये नहीं, बल्कि 1857 के स्वतंत्रता संग्राम के दौरान ब्रिटिशों के विरुद्ध उनके निर्भीक संघर्ष के लिये भी याद किया जाता है। जबकि कई नेता उपनिवेशवादी दबावों के सामने झुक गए, रानी लक्ष्मीबाई ने साहस एवं देशभक्ति के उन आदर्शों को जीकर दिखाया, जिनका वे समर्थन करती थीं। उनका प्रसिद्ध उद्घोष "मैं अपनी झांसी नहीं दूंगी (I will not give up my Jhansi)"- केवल एक भावनात्मक वक्तव्य नहीं था, बल्कि एक ऐसा संकल्प था जिसे उन्होंने अपनी अंतिम साँस तक निभाया। उनका जीवन यह दर्शाता है कि सच्चा सम्मान केवल अपने घोषित मूल्यों के प्रति अडिग निष्ठा से ही प्राप्त होता है।
डॉ. बी.आर. अंबेडकर का जीवन प्रामाणिकता एवं ईमानदारी की शक्ति का सजीव प्रमाण है। भारतीय संविधान के शिल्पकार और दलित अधिकारों के प्रबल समर्थक के रूप में उन्होंने केवल सामाजिक समानता का समर्थन ही नहीं किया, बल्कि उसे अपने जीवन में पूरी तरह अपनाया। घोर भेदभाव का सामना करने के बावजूद उन्होंने शिक्षा प्राप्त की तथा हाशिये पर रह रहे समाज के उत्थान हेतु निरंतर संघर्ष किया। जहाँ कई लोग समानता की बात करते हुए भी व्यवहार में जातीय भेदभाव को बनाए रखते थे, वहीं अंबेडकर कभी भी इस दोहरेपन के भागी नहीं बने। 1956 में बौद्ध धर्म अपनाना उनके द्वारा प्रचारित समानता व तर्कवाद के आदर्शों को पूरी तरह से अपनाने की दिशा में एक निर्णायक कदम था। उनका जीवन यह सिद्ध करता है कि सच्चा सम्मान तब प्राप्त होता है जब व्यक्ति अपने आदर्शों एवं कर्मों के बीच पूर्ण सामंजस्य स्थापित करता है।
डॉ. ए.पी.जे. अब्दुल कलाम, भारत के "मिसाइल मैन" और पूर्व राष्ट्रपति, ने विनम्रता एवं सेवा के माध्यम से सम्मान का उदाहरण प्रस्तुत किया। अपनी वैज्ञानिक प्रतिभा व उच्च राजनीतिक पद के बावजूद, वे हमेशा जनता के साथ गहरे संबंध में रहे। जहाँ कई नेता व्यक्तिगत लाभ के लिये शक्ति का उपयोग करते हैं, वहीं कलाम ने अपने पद का उपयोग युवाओं को प्रेरित करने और उन्हें शिक्षा देने के लिये किया। उन्होंने एक सामान्य जीवन व्यतीत करते हुए देश के लिये निरंतर कार्य किया तथा यह सिद्ध किया कि सच्चा सम्मान वास्तविक सेवा एवं विनम्रता में निहित है।
सम्मान एक मौलिक मूल्य है जिसे पूरे इतिहास में सम्मानित किया गया है। यह नैतिक सत्यनिष्ठा, ईमानदारी एवं नैतिक सिद्धांतों के प्रति प्रतिबद्धता का प्रतीक है। ईमानदारी, जो सम्मान से गहरे रूप से संबंधित है, का अर्थ है अपने कार्यों, शब्दों और विश्वासों में सत्य तथा निरंतरता बनाए रखना। सम्मान के साथ जीवन व्यतीत करने के लिये, केवल सार्वजनिक रूप से सम्मानजनक व्यवहार करना पर्याप्त नहीं है, बल्कि इन मूल्यों को निजी जीवन में भी आत्मसात करना आवश्यक है। इसका तात्पर्य यह है कि अगर हम स्वयं को दयालु, न्यायप्रिय या महान रूप में प्रस्तुत करते हैं, तो हमें इन गुणों को सच्चे मन से अपनाने का प्रयास करना चाहिये, न कि केवल सामाजिक स्वीकृति के लिये इनका दिखावा करना चाहिये।
नेल्सन मंडेला, जो 27 वर्षों तक कारावास में रहने के बावजूद, न्याय एवं समानता के प्रति अपनी प्रतिबद्धता को बनाए रखते थे। अपनी रिहाई के बाद, उन्होंने प्रतिशोध की जगह सुलह व एकता का मार्ग चुना, जिससे दक्षिण अफ्रीका को लोकतंत्र की ओर अग्रसर किया। उनके कार्यों ने यह सिद्ध किया कि सम्मान तब मिलता है जब व्यक्ति अपनी मूल्यों के प्रति दृढ़ रहता है, भले ही उसके पास अन्यथा करने की शक्ति हो।
द्वितीय विश्व युद्ध के दौरान, प्रतिकूल परिस्थितियों के बावजूद, विंस्टन चर्चिल ने नाज़ी जर्मनी के समक्ष आत्मसमर्पण से मना कर अपार सम्मान का परिचय दिया। उनकी दृढ़ नेतृत्व क्षमता एवं सत्य के प्रति प्रतिबद्धता, कठिनाइयों के बावजूद, ब्रिटेन और सहयोगियों को विजय की ओर अग्रसर करने में सहायक सिद्ध हुई। उन्होंने कभी स्वार्थ की भावना नहीं रखी, बल्कि अपने नैतिक सिद्धांतों के प्रति अडिग रहे।
अमेरिकी गृहयुद्ध के समय अब्राहम लिंकन का नेतृत्व उनके सम्मान और ईमानदारी का स्पष्ट उदाहरण था। उन्होंने दासप्रथा को समाप्त करने तथा संघ को एकजुट रखने के प्रति अपनी प्रतिबद्धता को अंत तक बनाए रखा, भले ही उन्हें तीव्र राजनीतिक एवं सामाजिक विरोध का सामना करना पड़ा। नैतिक मूल्यों से समझौता न करने की उनकी दृढ़ता ने 'इमांसिपेशन प्रोक्लेमेशन' (दासमुक्ति घोषणा-पत्र) के रूप में साकार हुई, जिसने अंततः एक अधिक न्यायपूर्ण समाज की स्थापना की दिशा में महत्त्वपूर्ण कदम उठाया।
मलाला यूसुफज़ई पर तालिबान द्वारा क्रूर हमला उस समय हुआ जब उन्होंने लड़कियों की शिक्षा के पक्ष में आवाज़ उठाई, एक ऐसा मूल अधिकार जिसे आज भी विश्व के कई हिस्सों में अस्वीकार किया जाता है। लेकिन भय या मौन धारण करने के बजाय, पहले से कहीं अधिक साहस एवं दृढ़ता के साथ सामने आईं। उन्होंने अपनी पीड़ा को शक्ति में बदलते हुए लाखों वंचित बच्चों की शिक्षा के अधिकार के लिये वैश्विक मंच पर आवाज़ उठाई। जीवन को खतरे में डालने वाले हमलों व निरंतर विरोध के बावजूद, उन्होंने अपने लक्ष्य से कभी विचलित नहीं हुईं। उनका यह संघर्ष स्पष्ट करता है कि सच्चा सम्मान केवल साहस में नहीं, बल्कि अन्याय के विरुद्ध अडिग खड़े रहने में निहित होता है। उनके अदम्य साहस एवं निःस्वार्थ समर्पण के लिये उन्हें नोबेल शांति पुरस्कार से सम्मानित किया गया तथा वह यह पुरस्कार प्राप्त करने वाली सबसे कम उम्र की व्यक्ति बनीं। आज भी वह वैश्विक स्तर पर शिक्षा और मानवाधिकारों की प्रबल पक्षधर हैं, यह प्रमाणित करते हुए कि सम्मान केवल व्यक्तिगत गौरव नहीं, बल्कि अपने प्रभाव का उपयोग सामूहिक कल्याण के लिये करने में भी है।
मैरी क्यूरी, जो एक प्रतिभाशाली भौतिक विज्ञानी और रसायनशास्त्री थीं, पोलैंड में जन्मीं तथा बाद में फ्राँसीसी नागरिक बनीं। उन्होंने विज्ञान जैसे पुरुष-प्रधान क्षेत्र में एक महिला होने के बावजूद अपार संघर्षों को पार करते हुए अद्वितीय सफलता प्राप्त की। उस दौर में जब महिलाओं के लिये उच्च शिक्षा एवं वैज्ञानिक अनुसंधान में भाग लेना अत्यंत कठिन था, उन्होंने अडिग दृढ़ता के साथ प्रयास जारी रखा तथा सामाजिक प्रतिबंधों को तोड़ते हुए इतिहास की कुछ सबसे क्रांतिकारी खोजें कीं। रेडियोधर्मिता, एक शब्द जिसे उन्होंने स्वयं गढ़ा, पर उनके कार्य ने रेडियम और पोलोनियम जैसे तत्त्वों की खोज को आधार बनाया, जिससे विज्ञान एवं चिकित्सा दोनों क्षेत्रों में एक नई क्रांति आई। अपने असाधारण अनुसंधानों के बावजूद मैरी क्यूरी ने कभी भी व्यक्तिगत लाभ या खोजों पर एकाधिकार का प्रयास नहीं किया। उन्होंने अपने अनुसंधान का पेटेंट करवाने से मना कर दिया क्योंकि उनका विश्वास था कि वैज्ञानिक प्रगति का उद्देश्य मानवता की सेवा होना चाहिये, न कि लाभ अर्जित करना। उनके इस निःस्वार्थ निर्णय ने विश्वभर के वैज्ञानिकों एवं चिकित्सा विशेषज्ञों को जीवन रक्षक अनुप्रयोग विकसित करने में सक्षम बनाया, विशेष रूप से कैंसर के उपचार के लिये रेडियोथेरेपी के क्षेत्र में। उनका सम्मान केवल उनकी बौद्धिक क्षमता में नहीं था, बल्कि मानवता की भलाई के प्रति उनकी गहरी प्रतिबद्धता में था, जहाँ उन्होंने धन या व्यक्तिगत पहचान की अपेक्षा ज्ञान तथा मानवीय प्रगति को प्राथमिकता दी। मैरी क्यूरी का जीवन इस बात का उदाहरण है कि सच्चा सम्मान तब प्राप्त होता है जब व्यक्ति अपने ज्ञान एवं उपलब्धियों का उपयोग व्यक्तिगत हित की बजाय समष्टि के कल्याण के लिये करता है।
सम्मान केवल एक अवधारणा नहीं, बल्कि एक ऐसा मार्गदर्शक सिद्धांत है जो उन लोगों के जीवन को आकार देता है जो इसे प्रामाणिकता और ईमानदारी के साथ जीते हैं। ऐतिहासिक, राजनीतिक एवं सामाजिक व्यक्तित्वों के उदाहरण यह स्पष्ट करते हैं कि सच्चा सम्मान तब प्राप्त होता है जब व्यक्ति अपने कार्यों को अपने मूल्यों के अनुरूप बनाता है, भले ही उसे इसके लिये कठिन परिस्थितियों का सामना क्यों न करना पड़े। नेतृत्व, साहस, सेवा या बौद्धिक योगदान के माध्यम से इन महान व्यक्तियों ने यह सिद्ध किया है कि सम्मान अर्जित किया जाता है, सत्य और धर्म के प्रति अटूट निष्ठा के माध्यम से। उनकी जीवन यात्रा व योगदान हमें यह शाश्वत संदेश देते हैं कि सम्मान के साथ जीवन जीने के लिये केवल सद्गुणों का प्रचार पर्याप्त नहीं होता, बल्कि आवश्यक होता है कि उन गुणों को जीवन के प्रत्येक क्षेत्र में ईमानदारी से जिया जाए।
"गरिमा इस बात में नहीं है कि आपके पास सम्मान हैं, बल्कि इस बात में है कि आप उनके योग्य हैं।"
-अरस्तू