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निबंध

भविष्य के साम्राज्य, मस्तिष्क के साम्राज्य होंगे

  • 11 Oct 2024
  • 9 min read

“शिक्षा की जड़ें कड़वी होती हैं लेकिन फल मीठा होता है”  -

— अरस्तू

यह कथन भावी विकास और प्रगति की दिशा में एक गहन दृष्टिकोण प्रस्तुत करता है। अतीत में साम्राज्यों की शक्ति भौतिक संसाधनों और सैन्य ताकत पर निर्भर करती थी। लेकिन वर्तमान समय में और आने वाले भविष्य में, ज्ञान, सूचना एवं विचारों की शक्ति सबसे महत्त्वपूर्ण होने वाली है। मस्तिष्क, अर्थात मानव की बौद्धिक क्षमता और नवाचार शक्ति, भविष्य के साम्राज्यों को संचालित करेगी।

इस निबंध में, हम इस कथन के विभिन्न आयामों का विश्लेषण करेंगे और समझने की कोशिश करेंगे कि कैसे वैचारिक शक्ति भविष्य के साम्राज्यों को आकार देगी। इसके साथ ही हम यह भी देखेंगे कि किस प्रकार भारत और विश्व के अन्य राष्ट्र इस दिशा में अपने कदम बढ़ा रहे हैं तथा यह दृष्टिकोण भविष्य की दिशा में किस तरह की संभावनाएँ प्रस्तुत करता है।

विगत कुछ दशकों में, विश्व ने एक अभूतपूर्व परिवर्तन देखा है। यह परिवर्तन सूचना एवं संचार प्रौद्योगिकी के क्षेत्र में हुआ है। पूर्व में जहाँ साम्राज्य भौतिक संसाधनों, भूमि और सैन्य ताकत के आधार पर स्थापित होते थे, वहीं वर्तमान में, ज्ञान तथा सूचना का महत्त्व अधिक हो गया है। इंटरनेट, कृत्रिम बुद्धिमत्ता (AI) और डेटा विश्लेषण जैसी प्रौद्योगिकियों ने यह सुनिश्चित किया है कि भविष्य के समाज एवं अर्थव्यवस्थाएँ मस्तिष्क अर्थात विचारों तथा नवाचारों पर आधारित होंगी।

वर्तमान वैश्विक अर्थव्यवस्था में वे राष्ट्र और संगठन आगे बढ़ रहे हैं जो ज्ञान तथा नवाचार को प्राथमिकता दे रहे हैं। उदाहरण के लिये, गूगल, एप्पल, माइक्रोसॉफ्ट जैसी तकनीकी कंपनियाँ केवल भौतिक उत्पादों पर आधारित नहीं हैं, बल्कि उन्होंने नवाचार और विचारों का उपयोग करके वैश्विक बाज़ार में वर्चस्व स्थापित किया है।

21वीं सदी की प्रमुख विशेषता यह है कि ज्ञान और विचारों की शक्ति ने आर्थिक एवं सामाजिक विकास के सभी पहलुओं को प्रभावित किया है। शिक्षा, अनुसंधान और नवाचार ने उन समाजों को सक्षम बनाया है जो बौद्धिक संसाधनों का उपयोग करते हैं। जैसे-जैसे प्रौद्योगिकी और विज्ञान का विकास हो रहा है, वैसे-वैसे ज्ञान आधारित उद्योगों का महत्त्व बढ़ता जा रहा है।

भारत जैसे विकासशील देशों के लिये भी यह अवसर है कि वे वैचारिक विकास पर ध्यान केंद्रित करें। भारत में IT उद्योग एवं स्टार्टअप संस्कृति का विकास इस दिशा में महत्त्वपूर्ण कदम हैं। "डिजिटल इंडिया" और "मेक इन इंडिया" जैसी पहलें इस बात का प्रमाण हैं कि भारत भी वैचारिक शक्ति को पहचान कर उसे बढ़ावा देने की दिशा में काम कर रहा है।

भविष्य में कृत्रिम बुद्धिमत्ता (AI) और मशीन लर्निंग का महत्त्व और भी बढ़ जाएगा। वर्तमान में सबसे बड़ी तकनीकी प्रगति AI के क्षेत्र में हो रही है। AI और मशीन लर्निंग का प्रयोग चिकित्सा, शिक्षा, कृषि तथा उद्योगों में किया जा रहा है। यह तकनीकें न केवल कार्यकुशलता को बढ़ाती हैं, बल्कि नए समाधानों और नवाचारों के लिये भी मार्ग प्रदर्शित करती हैं।

 AI का सबसे बड़ा लाभ यह है कि यह व्यापक रूप में डेटा का विश्लेषण कर सकती है और उससे नवीन ज्ञान एवं विचार उत्पन्न कर सकती है। इसलिये, वैचारिक शक्ति न केवल मानव मस्तिष्क तक सीमित रहेगी, बल्कि AI और डेटा विश्लेषण जैसी तकनीकों के माध्यम से भी इसका उपयोग किया जाएगा।  

भारत एक युवा देश है, जहाँ विश्व की सबसे बड़ी युवा जनसंख्या है। यह एक महत्त्वपूर्ण संसाधन है, जिसे यदि समुचित शिक्षा एवं कौशल विकास के माध्यम से प्रशिक्षित किया जाए, तो यह भविष्य के मस्तिष्क आधारित साम्राज्य में महत्त्वपूर्ण भूमिका निभा सकती है।

भारत में उच्च शिक्षा संबंधी सुधार एवं अनुसंधान के क्षेत्र को प्रोत्साहित करने की आवश्यकता है। साथ ही, नवाचार और स्टार्टअप को प्रोत्साहित करने के लिये अधिक संसाधनों का निवेश किया जाना चाहिये। भारत सरकार की "स्टार्टअप इंडिया" और "आत्मनिर्भर भारत" जैसी पहलें इस दिशा में महत्त्वपूर्ण कदम हैं।

विश्व स्तर पर देखा जाए तो, अमेरिका, चीन और यूरोपीय संघ जैसे विकसित राष्ट्र ज्ञान आधारित विकास के क्षेत्र में तेज़ी से आगे बढ़ रहे हैं। अमेरिका की सिलिकॉन वैली तकनीकी नवाचार का केंद्र है, जबकि चीन भी AI और 5G तकनीक के क्षेत्र में महत्त्वपूर्ण प्रगति कर रहा है।

चीन ने अपने "मेड इन चाइना 2025" कार्यक्रम के तहत अपने तकनीकी उद्योगों को उन्नत करने का लक्ष्य रखा है। इसका उद्देश्य चीन को एक उच्च तकनीकी विनिर्माणकर्त्ता शक्ति बनाना है। इसी तरह, अमेरिका तथा यूरोपीय संघ ने भी नवाचार और अनुसंधान को बढ़ावा देने के लिये बड़े पैमाने पर निवेश किया है।

इस प्रतिस्पर्धा के बीच, भारत को भी अपनी बौद्धिक संपदा और नवाचार क्षमताओं को बढ़ाने की आवश्यकता है। शिक्षा, अनुसंधान और विकास (R&D) में अधिक निवेश को प्रोत्साहित करना इस दिशा में आवश्यक कदम है।

जहाँ एक ओर मस्तिष्क आधारित साम्राज्य कई अवसरों के लिये मार्ग प्रशस्त करता है, वहीं दूसरी ओर यह कई चुनौतियों को भी जन्म देता है। सबसे बड़ी चुनौती यह है कि सभी देशों एवं समाजों के पास समान संसाधन और अवसर उपलब्ध नहीं हैं। ज्ञान आधारित अर्थव्यवस्था में उन देशों को लाभ मिलेगा जिनके पास उच्च गुणवत्ता की शिक्षा, तकनीकी संसाधन और अनुसंधान की क्षमता है।

इसके अलावा, तकनीकी विकास के साथ-साथ डेटा गोपनीयता, साइबर सुरक्षा और नैतिकता जैसे मुद्दे भी महत्त्वपूर्ण हैं। AI और तकनीक के गलत उपयोग से समाज में असमानताएँ बढ़ सकती हैं। इसलिये, यह सुनिश्चित करना जरूरी है कि तकनीकी प्रगति के साथ-साथ नैतिकता और समावेशिता को भी प्राथमिकता दी जाए।

"भविष्य के साम्राज्य, मस्तिष्क के साम्राज्य होंगे" इस कथन के महत्त्व को वर्तमान ने कई रूपों में स्पष्ट किया है तथा भविष्य इसे ओर भी स्पष्ट करेगा। जैसे-जैसे हम एक ज्ञान आधारित समाज की ओर बढ़ रहे हैं, वैचारिक शक्ति, नवाचार एवं विचारों का महत्त्व और भी बढ़ता जा रहा है।

भारत और विश्व के अन्य राष्ट्रों के लिये यह आवश्यक है कि वे अपने मानव संसाधनों को प्रशिक्षित करें, तकनीकी विकास और नवाचार को बढ़ावा दें तथा एक समावेशी और सतत् विकास मॉडल अपनाएँ। आने वाला समय उन समाजों का होगा जो बौद्धिक संपदा और विचारों की शक्ति का उपयोग कर अपनी प्रगति एवं विकास को सुनिश्चित करेंगे।

यदि हम इस दिशा में सही कदम उठाते हैं, तो न केवल भारत बल्कि समस्त विश्व एक ऐसे युग में प्रवेश करेगा जहाँ वैचारिक शक्ति सबसे महत्त्वपूर्ण संसाधन होगी।

"शिक्षा का कार्य व्यक्ति को गहनता से सोचना और आलोचनात्मक ढंग से सोचना सिखाना है। बुद्धिमत्ता और चरित्र - यही सच्ची शिक्षा का लक्ष्य है।" 

- मार्टिन लूथर किंग, जूनियर

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