दक्षिण एशियाई समाज सत्ता के आस-पास नहीं, बल्कि अपनी अनेक संस्कृतियों और विभिन्न पहचानों के ताने-बाने से बने हैं | 31 Jan 2024
“संस्कृति किसी भी देश, जाति और समुदाय की आत्मा होती है। ”
- महात्मा गांधी
दक्षिण एशिया, जिसमें आठ विभिन्न राष्ट्र शामिल हैं, एक ऐसा क्षेत्र है जो एक समृद्ध ताने-बाने से परिपूर्ण है। यह ताना-बाना केवल राज्य के चारों ओर नहीं, बल्कि इसकी विविध संस्कृतियों और पहचानों के चारों ओर बुना गया है। पश्चिमी समाजों के विपरीत, जहाँ राष्ट्र-राज्य सामाजिक सामंजस्य का मुख्य प्रतीक होता है, दक्षिण एशिया ऐसे अनूठे आख्यानों को चुनौती देता है। इस क्षेत्र का गतिशील सांस्कृतिक परिदृश्य विभिन्न भाषाओं, धर्मों, जातीयताओं तथा परंपराओं पर बल देता है, जो इसके जीवंत ताने-बाने में महत्त्वपूर्ण योगदान करते हैं।
दक्षिण एशिया, अपने जटिल और कभी-कभी उतार-चढ़ाव भरे इतिहास के बावजूद, एक गहरे ऐतिहासिक संबंधों से जुड़ा हुआ है। औपनिवेशिक शासन के अनुभव, स्वतंत्रता के लिये सामूहिक संघर्ष तथा गरीबी एवं पर्यावरणीय क्षति जैसी साझा चुनौतियों ने एकजुटता व क्षेत्रीय सहयोग की भावना को प्रोत्साहित किया है। यह साझा ऐतिहासिक पृष्ठभूमि वर्तमान और भविष्य की चुनौतियों का सामना करने के लिये सहयोगात्मक प्रयासों तथा सामूहिक कार्रवाई का आधार प्रदान करती है।
दक्षिण एशिया में बहुलवादी संस्कृतियों और पहचानों की विविध तथा समृद्ध अभिव्यक्तियाँ इस क्षेत्र की विशाल जनसंख्या को प्रतिबिंबित करती हैं, जिसमें विभिन्न जातीयताएँ, भाषाएँ, धर्म एवं परंपराएँ शामिल हैं। इन समूहों में इंडो-आर्यन, द्रविड़, तिब्बती-बर्मन, मंगोलॉयड, ऑस्ट्रोएशियाटिक्स और अन्य शामिल हैं, जिनमें से प्रत्येक का अलग-अलग इतिहास, संस्कृति और पहचान है, जो भूगोल, प्रवास, उपनिवेशीकरण व वैश्वीकरण जैसे कारकों से प्रभावित है।
दक्षिण एशियाई देशों में एक विविधतापूर्ण परिदृश्य सामने आता है, जिसमें इस्लाम के हरे रंग की प्रधानता, सूफी रहस्यवाद के जीवंत पहलुओं और असंख्य क्षेत्रीय भाषाओं का समावेश है। यह विविधता धार्मिक तथा भाषाई सीमाओं से परे है, एवं इसमें पाक-कला, कलात्मक रूप व सामाजिक परम्पराएँ सम्मिलित हैं, जो इस क्षेत्र की परस्पर संबद्ध प्रकृति को दर्शाती हैं।
इस विविधता के उदाहरणों में सिंधी शामिल हैं, जो एक इंडो-आर्यन जातीय समूह है जो मुख्य रूप से पाकिस्तान के सिंध प्रांत और पश्चिमी भारत में रहता है। दक्षिण एशिया का सांस्कृतिक परिदृश्य एक बहुरूपदर्शक जैसा है, जहाँ अनेक भाषाएँ, धर्म, जातीयताएँ तथा रीति-रिवाज सद्भावनापूर्वक विद्यमान हैं, एवं प्रत्येक सामूहिक ताने-बाने में अद्वितीय सूत्र का योगदान देता है। भारत में हिंदू धर्म, इस्लाम, ईसाई धर्म, सिख धर्म, बौद्ध धर्म व विभिन्न क्षेत्रीय परंपराओं के ज्वलंत रंगों का अनुभव किया जा सकता है। ये विविध धार्मिक और सांस्कृतिक प्रथाएँ हिंदी, तमिल, बंगाली और तेलुगु जैसी भाषाओं के साथ सहजता से जुड़ती हैं, जो पहचानों की एक पच्चीकारी (Mosaic) बनाती हैं। तमिल, एक द्रविड़ जातीय समूह जो तमिलनाडु (भारत) तथा उत्तरी और पूर्वी श्रीलंका में केंद्रित है, विश्व की सबसे पुरानी साहित्यिक परंपराओं में से एक को प्रदर्शित करता है, जो भाषा, साहित्य, संगीत, नृत्य एवं सिनेमा में परिलक्षित होती है। उनका भोजन भी उतना ही विशिष्ट है, जिसमें चावल, दाल, मसाले और नारियल पर जोर दिया जाता है।
ये परस्पर जुड़ी पहचानें समाज के केवल निष्क्रिय पहलू ही नहीं हैं, बल्कि व्यक्तिगत और सामूहिक अनुभवों को सक्रिय रूप से आकार देती हैं। दिवाली, ईद-उल-फितर और सोंगक्रान जैसे धार्मिक त्यौहार समुदायों को साझा खुशी तथा परंपरा के जीवंत नृत्य में एक साथ लाते हैं। पश्तो और बंगाली जैसी भाषाएँ सीमाओं को पार करती हैं एवं क्षेत्रीय सांस्कृतिक एकता की भावना को बढ़ावा देती हैं। इस बीच मध्य व पश्चिमी नेपाल में तिब्बती-बर्मी जातीय समूह गुरुंग ने अपनी भाषा, धर्म और सामाजिक संगठन कायम रखा है। ब्रिटिश तथा भारतीय सेनाओं में अपनी बहादुरी के लिये प्रसिद्ध, वे गुरुंग नव वर्ष के उपलक्ष्य में मनाया जाने वाला एक जीवंत त्योहार, तामू लोसार मनाते हैं।
यहाँ तक कि दक्षिण भारत की तेज़ करी (Fiery Curries) से लेकर अफगानिस्तान के सुगंधित पुलाव तक, पाक-कला की परंपराएँ भी इस क्षेत्र की साझी विरासत और परस्पर संबद्धता की साक्षी बनती हैं। ये सांस्कृतिक अभिव्यक्तियाँ दक्षिण एशिया के विविध लोगों को एक सामूहिक पहचान में बाँधने वाले सूत्र के रूप में कार्य करती हैं तथा उनकी बहुलवादी विरासत की समृद्धि को प्रदर्शित करती हैं।
दक्षिण एशिया को एक समान सांस्कृतिक मिश्रण के रूप में चित्रित करना इसकी गतिशील और जटिल प्रकृति को अतिसरलीकृत करना होगा। प्रत्येक राष्ट्र में आंतरिक विविधता होती है, जो प्रायः जाति, नस्ल तथा भाषा के आधार पर होती है, जिससे एक विविध सामाजिक परिदृश्य का निर्माण होता है। भारत में दलितों, नेपाल में बिहारी समुदाय एवं म्याँमार में रोहिंग्याओं के सामने आने वाली चुनौतियाँ इन देशों में समावेशिता के लिये चल रहे संघर्षों व हाशिए पर डाले जाने के विरुद्ध लड़ाई को रेखांकित करती हैं।
साझी सांस्कृतिक विरासत, आंतरिक विविधता प्रत्येक राष्ट्र की सामाजिक संरचना को महत्त्वपूर्ण रूप से प्रभावित करती है। अधिक समावेशी और निष्पक्ष समाज को बढ़ावा देने के लिये इन देशों में विभिन्न समुदायों के सामने आने वाली विशिष्ट चुनौतियों को स्वीकार करना तथा उनका समाधान करना महत्त्वपूर्ण है। सांस्कृतिक आदान-प्रदान कार्यक्रम, शैक्षिक पहल एवं नीतियाँ जो हाशिए पर पड़े समूहों की विशिष्ट आवश्यकताओं को संबोधित करती हैं, वे अधिक एकजुट व समावेशी दक्षिण एशियाई समाज के निर्माण में योगदान दे सकती हैं। इस विशाल चित्रपट के भीतर प्रत्येक सांस्कृतिक सूत्र के मूल्य को पहचानने और उसकी सराहना करने पर जोर दिया जाना चाहिये, जिससे संबद्धता तथा साझा पहचान की भावना को बढ़ावा मिले।
साझा सांस्कृतिक ताना-बाना एकता और संवाद को बढ़ावा देने के लिये एक मज़बूत उपकरण के रूप में कार्य करता है। दक्षिण एशियाई क्षेत्रीय सहयोग संगठन (SAARC) तथा दक्षिण एशियाई खेलों जैसे प्रयास सांस्कृतिक आदान-प्रदान, आर्थिक सहयोग एवं संघर्ष समाधान के अवसर पैदा करते हैं। साहित्य, सिनेमा, संगीत राष्ट्रीय सीमाओं से परे जाते हैं, साझा अनुभव प्रदान करते हैं व विविध समुदायों के बीच आपसी समझ को बढ़ावा देते हैं।
बॉलीवुड और क्रिकेट दो सांस्कृतिक दिग्गज हैं जो सीमाओं को पार करते हुए दुनिया भर में दक्षिण एशियाई लोगों को एकजुट करते हैं। बॉलीवुड के जीवंत गीत और नृत्य कार्यक्रम दर्शकों को आकर्षित करते हैं, भारत, पाकिस्तान, बांग्लादेश तथा अफगानिस्तान सभी की क्रिकेट टीमें हैं एवं क्रिकेट मैच काफी लोकप्रिय हो जाते हैं, जो प्रशंसकों को जोश से भर देते हैं। दोनों उद्योग विश्व मंच पर दक्षिण एशियाई संस्कृति को प्रस्तुत करते हैं व पहचान और गौरव की भावना को बढ़ावा देते हैं।
दक्षिण एशिया में स्वदेशी आदिवासी समुदाय अपनी सांस्कृतिक विरासत और पारंपरिक ज्ञान में विविधतापूर्ण और समृद्ध हैं। वे सदियों से प्रकृति के साथ सामंजस्य स्थापित करते हुए अपनी विशिष्ट पहचान बनाए हुए हैं। संथाल भारत, बांग्लादेश और नेपाल के सबसे बड़े जनजातीय समूहों में से एक हैं। उनकी अपनी भाषा, लिपि, धर्म तथा कला रूप हैं। वे अपनी स्वदेशी शिक्षा प्रणाली के लिये जाने जाते हैं, जो मौखिक संचरण, अंतर्ज्ञान एवं पैतृक ज्ञान पर आधारित है।
वेड्डा (Vedda) श्रीलंका के मूल निवासी हैं। वे शिकारी-संग्राहक हैं जो वनों और गुफाओं में रहते हैं। उनकी अपनी भाषा है, जो सिंहली से संबंधित है, लेकिन इसमें कई शब्दों का मूल अज्ञात है। उनका प्रकृति के साथ गहरा संबंध है और वे जीववाद का पालन करते हैं, अपने पूर्वजों की आत्माओं तथा प्राकृतिक तत्त्वों की पूजा करते हैं।
दक्षिण एशिया में इमारतों का डिज़ाइन और निर्माण भूगोल, जलवायु, सामग्री, धर्म तथा संस्कृति जैसे विभिन्न कारकों से प्रभावित होता है। प्रत्येक देश की अपनी वास्तुकला विरासत एवं शैली होती है, जो उसके अद्वितीय इतिहास व पहचान को दर्शाती है। लकड़ी, पत्थर, ईंट और मिट्टी जैसी स्थानीय सामग्रियों का उपयोग करके ऐसी संरचनाएँ बनाई जाती हैं जो पर्यावरण और उपलब्ध संसाधनों के अनुकूल होती हैं। उदाहरण के लिये हिमालयी क्षेत्रों में लकड़ी के घर आम हैं, जबकि शुष्क क्षेत्रों में मिट्टी-ईंट के घर प्रचलित हैं।
इमारतों के डिज़ाइन और सजावट पर धर्म और आध्यात्मिकता, खासकर हिंदू धर्म, बौद्ध धर्म और इस्लाम का बहुत बड़ा प्रभाव है। उदाहरण के लिये, हिंदू मंदिरों की विशेषता विस्तृत नक्काशी, मूर्तियाँ और मीनारें हैं, जबकि बौद्ध स्तूप गुंबद के आकार की संरचनाएँ हैं जिनमें बुद्ध के अवशेष हैं। इस्लामी वास्तुकला मेहराब, गुंबदों, मीनारों और ज्यामितीय पैटर्न के उपयोग से चिह्नित है।
वास्तुकला का डिज़ाइन सांस्कृतिक मूल्यों और परंपराओं के साथ सहजता से मिश्रित होता है, जिसमें सामंजस्य, संतुलन, समरूपता तथा अनुपात जैसे प्रमुख तत्त्व शामिल होते हैं। उदाहरण के लिये भारत में ताजमहल मुगल वास्तुकला की एक उत्कृष्ट कृति है जो प्रेम, सौंदर्य एवं पूर्णता का प्रतीक है। श्रीलंका में सिगिरिया रॉक किला प्राचीन शहरी नियोजन का एक उल्लेखनीय उदाहरण है जो प्रकृति, कला व इंजीनियरिंग को एकीकृत करता है। बांग्लादेश में नेशनल असेंबली बिल्डिंग एक स्मारकीय संरचना है जो इस्लामी, बंगाली और ब्रूटलिस्ट वास्तुकला के तत्त्वों को जोड़ती है।
दक्षिण एशिया की विविधतापूर्ण सॉफ्ट पावर को समझना आवश्यक है, क्योंकि प्रत्येक देश अपनी अनूठी सांस्कृतिक ताकत लेकर आता है। विविधता होने के बावजूद, साझा तत्त्वों को पहचानने से क्षेत्रीय सहयोग को बढ़ावा देने, वैश्विक चुनौतियों से निपटने और सकारात्मक अंतर्राष्ट्रीय छवि पेश करने के लिये सामूहिक सॉफ्ट पावर का उपयोग करने की अनुमति मिलती है। सामाजिक असमानताओं को दूर करने तथा प्रत्येक राष्ट्र में समावेशिता को बढ़ावा देने हेतु आंतरिक विविधता को स्वीकार करना महत्त्वपूर्ण है। इस क्षेत्र का भविष्य इसकी समृद्ध सांस्कृतिक विरासत को पहचानने एवं उसका जश्न मनाने पर निर्भर करता है। दक्षिण एशिया बहुलवाद की सराहना करके, भू-राजनीतिक विभाजनों से परे जाकर व अपनी विविधता में एकता खोजकर समृद्ध हो सकता है।