नैतिकता विहीन राजनीति अनर्थकारी होती है | 17 Apr 2020
अरस्तु के अनुसार, “मनुष्य एक राजनीतिक प्राणी है” इसके द्वारा उन्होंने मनुष्य की एक ऐसी स्वाभाविक क्षमता को मान्यता प्रदान की है जो उसे अन्य प्राणियों से अलग करती है। राजनीति मनुष्य की स्वाभाविक गतिविधि का क्षेत्र है। अरस्तु की मान्यता के अनुसार, “राज्य जीवन के लिये अस्तित्व में आता है और अच्छे जीवन के लिये निरंतर बना रहा है।” अतः राजनीति का प्रमुख उद्देश्य ‘उत्तम जीवन’ की सिद्धि करना है।
राजनीति न अपितु वर्तमान में बल्कि प्राचीन काल से समाज को प्रभावित करने वाली शक्ति मानी गई है। कहा भी गया है- “राजा कालस्य कारणम्” अर्थात राजसत्ता अच्छी या खराब स्थिति उत्पन्न करने वाला प्रभावशाली तंत्र है। अर्थात जैसी राजनीति होगी परिणाम भी वैसा ही प्राप्त होगा।
नैतिकता के अर्थ को अगर देखा जाए तो युक्त आचरण ही नैतिकता है। दूसरा सवाल है फिर नीति किसे कहेंगे? नीति शब्द का संधि विच्छेद करने पर हमें नयति+इति अर्थात नीति प्राप्त होता है। नय का मतलब ले जाना अर्थात जो बातें सिद्धांत नियम या श्रेष्ठ मार्ग पर ले जाए वही नीति है और इस नीति को धारण करने वाली शिक्षा ही नैतिकता है। यह वह सद्मार्ग है जिससे व्यक्ति एवं समाज दोनों के दीर्घकालीन एवं तत्कालीन हितों का संतुलित समन्वय होता है। ऐसा तभी संभव है जब मानवीय मूल्य यथा सत्य, अहिंसा, ब्रह्मचर्य, अपरिग्रह, क्षमा, दया, संयम, दान आदि को जीवन में शामिल किया जाए। देखा जाए तो धर्म युक्त जीवन व्यवहार ही नैतिकता है।
वह तंत्र जिसके तहत समाज में सुरक्षा एवं शांति स्थापित हो तथा रोजगार और न्याय आदि लोगों को प्राप्त हो राजनीति कहलाती है। राजा या सत्ता पक्ष की नीति ही राजनीति है।
नैतिकता विहीन राजनीति का स्वरूप कैसा होता है? देखा जाए तो जब सामाजिक व्यवस्था की देखभाल करने वाली सत्ता नीति विहीन हो जाती है उसकी कार्यप्रणाली एवं व्यवहार में मानवीय मूल्यों का समावेशन खत्म हो जाता है तो ऐसी राजनीति नैतिकता विहीन हो जाती है। ऐसे में इसका परिणाम अनर्थकारी होता है। प्रकृति का यह शाश्वत नियम है कि जैसी नीति होगी वैसी की प्रगति होगी।
अब प्रश्न यह उठता है कि अनर्थकारी होने के बाह्य लक्षण क्या होते हैं। सरल शब्दों में देखा जाए तो अनर्थकारी का अर्थ अन्याय, अनिष्टकारी स्थिति को माना जाता है। अगर राजनीति अनर्थकारी हो जाए तो वह इस रूप में परिलक्षित होगी-
- अपराधियों का बोलबाला
- पारिवारिक विघटन
- अर्थव्यवस्था में गिरावट
- राजनेताओं का संकुचित स्वार्थों की पूर्ति में लिप्त होना
- भ्रष्टाचार की व्याप्ति
- खुशामदी का बोलबाला
- सत्ताधारी दल में भाई भतीजावाद
- समाज में दबंग लोगों का प्रभुत्व
- मूलभूत मानव अधिकारों का उल्लंघन
- जनता में असुरक्षा का भाव
- सरकारी कार्यों, न्यायालय के निर्णयों से लोगों का विश्वास उठना
उपरोक्त स्थितियाँ समाज में नैतिकताविहीन राजनीति के कारण उदित होती हैं। इसे दूर करने हेतु समाज एवं सरकार में नैतिकता की सृष्टी करना परम आवश्यक है जिसे निम्नलिखित तरीकों से संपादित किया जा सकता है।
- राजनीति में नैतिकता के समावेशन हेतु इसके लिये जन जागरण कराना बहुत आवश्यक है।
- छात्रों के पाठ्यक्रम में नैतिकता एवं मानवीय मूल्यों का समावेशन जरूरी है। आज के छात्र ही कल के नागरिक एवं मूल्यपरक राजनीति के सूत्रधार बनेंगे।
- समाज में नैतिकता एवं मानवीय मूल्यों के प्रति सम्मान पैदा करना आवश्यक है। इसके लिये नैतिक मूल्यों से संबंधित लोगों को पुरस्कृत एवं सम्मानित करने की व्यवस्था करनी होगी साथ ही इसकी विपरीत स्थिति में दंड की व्यवस्था भी स्थापित करनी होगी।
- सामाजिक दर्शन एवं चिंतन में नैतिकता धर्म एवं शिष्टाचार को स्थापित करने के प्रयास किये जाने चाहिए।
- जनप्रतिनिधि के चयन के समय चरित्रवान व्यक्ति को वरीयता देना ही उचित होगा और प्रयास किया जाए कि ऐसे ही व्यक्तियों को टिकट देने की व्यवस्था की जाए।
- भ्रष्ट राजनेताओं और नैतिकता विहीन राजनीति को समाज, प्रेस एवं मीडिया द्वारा सामने लाकर उसकी भर्त्सना की जाए।
गांधी जी ने भी राजनीति को धर्म अनुसार एवं नैतिकता युक्त बनाने पर बल दिया था। इस प्रकार राजनीति को धर्म एवं नैतिकता युक्त बनाने की हर संभव कोशिश की जानी चाहिए। नैतिकता विहीन राजनीति किसी का अहित ही नहीं करती अपितु नीतिविहीन राजनीति प्रशासन तंत्र, समाज, जनता एवं राजनेताओं के लिये अंततः अनर्थकारी ही सिद्ध होती है। यह प्राचीन और वर्तमान के कई उदाहरणों से भी सिद्ध होता है। अतः इसकी महत्ता को रेखांकित करना आज के समय की मांग है।