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विज्ञान एवं प्रौद्योगिकी

क्या डिज़िटल असमानता निराकरण तकनीक आधारित शिक्षा है?

  • 15 Apr 2020
  • 11 min read

लंदन में वर्ष 2019 के G-7 सम्मेलन में प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने विश्व के प्रमुख नेताओं को भारत में लोगों के सशक्तिकरण तथा सहभागिता के जरिये सामाजिक समानता से लड़ने के प्रयास में डिज़िटल प्रौद्योगिकी के प्रयोग के बारे में अवगत कराया था। उन्होंने सत्र में ‘अपनी धरती को सशक्त बनाने के लिये प्रौद्योगिकी की सहायता’ जैसी अवधारणा पर बल दिया और विश्व को बताया कि परिवर्तनकारी प्रौद्योगिकी की शक्ति, नवोन्मेष को आगे बढ़ाने की जरूरत तथा प्रौद्योगिकी का उपयोग कर भारत कैसे  डिज़िटल भुगतान जैसे प्रयासों को सफल बना सकता है। 

प्रधानमंत्री के यह शब्द सिद्ध करते हैं कि वैश्वीकरण के इस समय में अन्य देशों के साथ अपनी गति बनाए रखने और स्वयं को नियंत्रित करने का सर्वाधिक प्रभावशाली तरीका डिज़िटल प्रौद्योगिकी है जिसका निर्णायक साधन कंप्यूटर माना जाता है। आज का समय कंप्यूटर आधारित दो वर्गों में विभाजित हो चुका है- एक वर्ग जो इस साधन का उपयोग करता है और दूसरा वर्ग जो इससे अनभिज्ञ है। प्रथम वर्ग इसका प्रयोग कर काफी विकास कर चुका है, जबकि दूसरे वर्ग की अनभिज्ञता उसे प्रतिदिन पीछे की ओर धकेल रही है। इसे समानता और उससे उत्पन्न परिणामों को समझने और दूर करने की दिशा में कंप्यूटर एवं कंप्यूटर आधारित साक्षरता प्रभावशाली सिद्ध हो सकती है।

अब हम डिज़िटल शब्द पर गौर करते हैं जिसका अर्थ होता है ‘जो डिजिट से युक्त हो’ अर्थात तकनीक, पद्धति, उपकरण, प्रक्रिया या वस्तु जो डिज़िट रूप में कार्य करें डिज़िटल कहलाती है। इस पद्धति के तहत किसी भी उपकरण की संपूर्ण कार्यपद्धती डिज़िट (अंको) के समायोजन पर निर्भर करती है। इस पद्धति के अंतर्गत प्रक्रियागत तीव्रता में वृद्धि होती है और निर्णय प्राप्ति में सटीकता एवं स्पष्टता आती है। वर्तमान में डिज़िट शब्द के अर्थ में व्यापकता आई है और वह अरबों-करोड़ों सूचनाओं के रूप में डेटा का रूप लेकर संग्रहित हो गया जिससे हमारे विश्व का ज्ञान एक जगह पर समाहित हो गया है ।

डिज़िटल उपकरण कंप्यूटर के तहत सारी क्रियाविधि द्विधारी अंक 0, 1 पर आधारित होती है जिससे 0 का अर्थ ‘नहीं’ एवं 1 का अर्थ ‘हाँ’ से लगाया जाता है। इस पर आधारित कोडिंग का प्रयोग केलकुलेटर, कैमरे, फोन आदि उपकरणों में भी किया जाता है। इसके प्रचलन में आए व्यापकता के कारण आज के युग को ‘डिज़िटल युग’ की संज्ञा दी गई है।

साक्षरता का शाब्दिक अर्थ ‘अक्षर सहित स्थिति’ से लिया गया है अर्थात व्यक्ति के अक्षर ज्ञान से  युक्त होने पर उसे साक्षर कहा जाता है। उसी प्रकार जब कंप्यूटर को आधार बनाकर किसी व्यक्ति को शिक्षित किया जाता है तो वह प्रक्रिया कंप्यूटर आधारित शिक्षा कहलाती है। इसमें कंप्यूटर ज्ञान (हार्डवेयर एवं सॉफ्टवेयर)  के साथ-साथ प्रौढ़ शिक्षा, आंगनबाड़ी, स्कूल, कॉलेज आदि की शिक्षा के साथ दी जाने वाली कंप्यूटर शिक्षा शामिल होती है।

डिज़िटल समानता का आशय  डिज़िटल उपकरणों तक किसी व्यक्ति, समूह, देश की पहुँच न हो पाना या विद्यमान अंतराल से लिया जाता है। वर्तमान में डिज़िटल असमानता की खाई अत्यधिक चौड़ी हो गई है। यह अंतराल न सिर्फ व्यक्ति, समूह या राज्यों के मध्य है अपितु विभिन्न देशों के मध्य भी उपस्थित है। इस  डिज़िटल असमानता के कारण विकास संबंधी असमानता उत्पन्न होती है उदाहरण स्वरूप ज्ञान में असमानता, क्षमता में असामनता, दक्षता में असमानता, सामाजिक स्थिति में असमानता आदि का प्रादुर्भाव होता है। इस वैश्वीकरण के दौर में जब पूरे विश्व की अर्थव्यवस्था आपस में जुड़ी है, ऐसी स्थिति में  डिज़िटल समानता के आर्थिक क्षेत्र में नकारात्मक परिणाम देखे जाते हैं। इसके परिणामस्वरूप कुशल एवं सक्षम अर्थव्यवस्था सक्षम अर्थव्यवस्था पर प्रभुत्व स्थापित कर लेती है। अर्थव्यवस्था का विकास मंद और असंतुलित हो जाता है। इसी प्रकार हम पाते हैं कि डिज़िटल रूप से संपन्न राष्ट्र राजनीतिक रूप से  डिज़िटल असमान राष्ट्रों पर अपनी नीतियों, शर्तों एवं प्रतिबंधों को आरोपित करने का प्रयास करते हैं। परिणामस्वरूप ‘वसुधैव कुटुंबकम’ जैसे सिद्धांतों का हनन होता है। देश के अंदर भी विभिन्न विभागों में डिज़िटल योग्यता की कमी के कारण सरकारी कार्यों में आवश्यक देरी, भ्रष्टाचार एवं लालफीताशाही जैसी कुरीतियाँ पनपती हैं।

सामाजिक क्षेत्र पर गौर करें तो डिज़िटल असमानता के कारण अभाव ग्रस्त व्यक्ति और गरीब होता चला जाता है एवं डिज़िटल ज्ञान से युक्त व्यक्ति निरंतर विकास करता जाता है। शैक्षणिक क्षेत्र, सांस्कृतिक क्षेत्र एवं अन्य क्षेत्र जैसे- कृषि विकास का मंद होना, प्राकृतिक आपदाओं की पूर्व सूचना आदि कार्य  डिज़िटल असमानता के कारण नकारात्मक रूप से प्रभावी होते हैं।

इस असमानता को कंप्यूटर आधारित शिक्षा द्वारा दूर किया जा सकता है। अगर कंप्यूटर आधारित शिक्षा का प्रयोग किया जाए तो दूर विदेश में बैठे वैज्ञानिक और शिक्षक भी गाँव के बच्चों को ज्ञान और शिक्षा प्रदान कर सकते हैं। डिज़िटल असमानता के कारण विभिन्न देशों के बीच व्याप्त दूरियों को कंप्यूटर आधारित शिक्षा द्वारा कम किया जा सकता है। अपराध नियंत्रण, लंबित मामलों का निपटारा आदि समस्याओं का समाधान तकनीकी रूप से किया जा सकेगा। आर्थिक क्षेत्र में भी व्याप्त असमानता को तकनीकी विकास की सहायता से दूर किया जा सकता है। बैंकिंग, बीमा, आईएमएफ, आरबीआई जैसी संस्थाओं के मध्य अधिक समन्वय सुनिश्चित किया जा सकेगा। टेलीमेडिसिन जैसी अवधारणाएँ तकनीकी विकास के माध्यम से ही सफल हो सकती हैं।

संयुक्त राष्ट्र के व्यापार मामलों के संगठन (UNCTAD) ने भी अपनी एक रिपोर्ट में सचेत किया था कि  डिज़िटल तकनीक में अग्रणी और पीछे छूट रहे देशों के बीच चौड़ी होती जा रही खाई को अगर नहीं पाटा गया तो वैश्विक असमानता का रूप बदतर हो जाएगा। इसने देशों को आगाह किया कि  डिज़िटल क्षेत्र में देशों के बीच और देशों के भीतर असामनता कम होने की बजाय डिज़िटल वैल्यू का केंद्रीकरण हो रहा है तथा विकासशील देश इस प्रक्रिया में पिछड़ रहे हैं। 

इस प्रकार कंप्यूटर आधारित शिक्षा की महत्ता को देखते हुए इस विषय में नियमों को निर्धारित करने में सरकार एवं संस्थाएँ भूमिका निभा सकती हैं और वर्तमान नियमों में आवश्यक परिवर्तन द्वारा तथा नए कानून के निर्माण द्वारा ऐसा संभव है। डिज़िटल विकास रणनीतियों और वैश्वीकरण की भावी सीमाओं के पुर्ननिर्माण के लिये नई तकनीकों को स्मार्ट ढंग से अपनाना, साझेदारी को मज़बूत बनाना और व्यापक वैश्विक नेतृत्व को बढ़ाना आवश्यक है। इस प्रयास से डिज़िटल अर्थव्यवस्था से हो रहे फायदों के न्यायसंगत वितरण को सुनिश्चित किया जा सकेगा। 

‘नॉलेज इज़ पावर’ यह कथन माइक्रोसॉफ्ट के जनक बिल गेट्स का है जो यह दर्शाता है कि कंप्यूटर आधारित शिक्षा भविष्य का आधार बन चुकी है। भविष्य के सारे कार्य इस कंप्यूटर द्वारा ही संपादित होने वाले हैं। वर्तमान एवं भविष्य दोनों को उज्जवल करने का यही उपयुक्त साधन है। सूचना और संचार तकनीक तक पहुँच अगर समानता के लिये होती है तो उससे न केवल राजनीतिक सहभागिता को बढ़ावा मिलता है, बल्कि यह आर्थिक समावेश, शिक्षा और समुदाय की प्रतिभागिता के साथ ही मनोरंजन और व्यक्तिगत वार्तालाप में भी इज़ाफा करता है। ऐसे में डिज़िटल समानता सार्वजनिक नीति के लिये एक अहम विषय बन जाता है।

“ खुदा के हाथ में मत सौंप सारे कामों को
 बदलते वक्त पर कुछ अपना एख्तियार भी रख”

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