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निबंध

स्त्री-पुरुष के समान सरोकारों को शामिल किये बिना विकास संकटग्रस्त है

  • 12 Aug 2024
  • 17 min read

मैं किसी समुदाय की प्रगति को महिलाओं द्वारा हासिल की गई प्रगति के स्तर से मापता हूँ।

—बी.आर. अंबेडकर

"स्त्री-पुरुष के समान सरोकारों को शामिल किये बिना विकास संकटग्रस्त है" यह वाक्यांश लैंगिक समानता और सभी लिंगों के समावेशन की महत्त्वपूर्ण भूमिका को रेखांकित करता है जो सतत् विकास में निभाई जाती है। यह वाक्यांश इस बात पर बल देता है कि जो विकास पहल लैंगिक दृष्टिकोण पर विचार करने तथा उसे एकीकृत करने में विफल रहती हैं, उनके अप्रभावी या यहाँ तक ​​कि हानिकारक होने का जोखिम होता है। विकास में लिंग का महत्त्व बहुआयामी है, जो आर्थिक विकास, सामाजिक प्रगति, पर्यावरणीय स्थिरता एवं समग्र मानव कल्याण को प्रभावित करता है।

लिंग आधारित विकास से तात्पर्य विकास नीति, नियोजन, कार्यान्वयन और मूल्यांकन के सभी पहलुओं में लिंग संबंधी दृष्टिकोण तथा विचारों को शामिल करने से है। यह मान्यता है कि समाज में अपनी अलग-अलग भूमिकाओं, ज़िम्मेदारियों एवं बाधाओं के कारण पुरुष व महिलाएँ विकास का अनुभव अलग-अलग तरीके से करते हैं। इस अवधारणा का उद्देश्य लैंगिक असमानताओं को दूर करना तथा समानता को बढ़ावा देना है, ताकि यह सुनिश्चित किया जा सके कि पुरुषों व महिलाओं दोनों की आवश्यकताओं, हितों और योगदानों को स्वीकार किया जाए तथा उन्हें महत्त्व दिया जाए। 

ऐतिहासिक रूप से विकास नीतियाँ और कार्यक्रम प्रायः लिंग-भेद के आधार पर बनाए जाते थे, तथा लिंग-विशिष्ट आवश्यकताओं पर ध्यान दिये बिना समरूप जनसंख्या की कल्पना की जाती थी। इस अनदेखी के कारण महिलाओं को हाशिए पर धकेला गया तथा विद्यमान असमानताएँ बनी रहीं। 20वीं सदी के उत्तरार्द्ध में नारीवादी आंदोलन एवं महिलाओं के अधिकारों की मान्यता ने लिंग-संवेदनशील विकास की आवश्यकता की ओर महत्त्वपूर्ण ध्यान आकर्षित किया। वर्ष 2015 में शुरू किये गए ‘बेटी बचाओ बेटी पढ़ाओ अभियान’ का उद्देश्य घटते बाल लिंगानुपात को कम करना व लड़कियों की शिक्षा और सशक्तीकरण को बढ़ावा देना है। महिला एवं बाल विकास मंत्रालय की एक पहल, महिला ई-हाट एक ऑनलाइन विपणन मंच है जो महिला उद्यमियों, स्वयं सहायता समूहों और गैर सरकारी संगठनों को अपने उत्पाद बेचने में मदद करता है। यह महिलाओं को अपने उत्पादों के प्रदर्शन तथा बिक्री हेतु एक स्थान प्रदान करता है, जिससे आर्थिक सशक्तीकरण को बढ़ावा मिलता है। उज्ज्वला योजना का उद्देश्य गरीबी रेखा से नीचे (BPL) जीवन यापन करने वाले परिवारों की महिलाओं को मुफ्त LPG कनेक्शन उपलब्ध कराना है। यह पारंपरिक खाना पकाने वाले ईंधन के उपयोग से उत्पन्न स्वास्थ्य समस्याओं पर ध्यान केंद्रित करता है तथा महिलाओं के स्वास्थ्य एवं सशक्तीकरण को बढ़ावा देता है। सुकन्या समृद्धि योजना, एक सरकारी समर्थित बचत योजना है, जो माता-पिता को अपनी बेटी की भविष्य की शिक्षा और विवाह के खर्च के लिये एक निधि बनाने हेतु प्रोत्साहित करती है।

महिलाओं का आर्थिक सशक्तीकरण, लैंगिक विकास का एक महत्त्वपूर्ण पहलू है। इसमें महिलाओं की आर्थिक संसाधनों और अवसरों, जैसे कि नौकरियाँ, वित्तीय सेवाएँ और संपत्ति अधिकार तक पहुँच बढ़ाना शामिल है। महिलाओं को आर्थिक रूप से सशक्त बनाने का परिवारों, समुदायों और अर्थव्यवस्थाओं पर व्यापक प्रभाव पड़ता है। अध्ययनों से पता चला है कि जब महिलाएँ आय अर्जित करती हैं, तो वे अपने बच्चों की शिक्षा और स्वास्थ्य में अधिक निवेश करती हैं, जिससे मानव पूंजी और आर्थिक विकास में सुधार होता है।

हालाँकि लैंगिक वेतन अंतर एक सतत् मुद्दा है जो आर्थिक विकास में बाधा डालता है। महिलाएँ समान कार्य के लिये औसतन पुरुषों की तुलना में कम कमाती हैं, जिससे उनकी आर्थिक क्षमता सीमित हो जाती है और गरीबी बनी रहती है। वेतन के अंतर को दूर करने के लिये ऐसी नीतियों की आवश्यकता है जो समान कार्य हेतु समान वेतन को बढ़ावा दें, कार्य-जीवन संतुलन का समर्थन करें तथा कार्यस्थल में भेदभावपूर्ण प्रथाओं को चुनौती दें।

समान पारिश्रमिक अधिनियम, 1976 में समान कार्य या समान प्रकृति के कार्य के लिये पुरुषों और महिलाओं के लिये समान वेतन का प्रावधान है। इसके बावजूद इसे लागू करना एक चुनौती बना हुआ है तथा असमानताएँ बनी हुई हैं। समान पारिश्रमिक अधिनियम, 1976 पुरुषों एवं महिलाओं को समान कार्य या समान प्रकृति के कार्य हेतु समान वेतन देने का आदेश देता है। मातृत्व लाभ (संशोधन) अधिनियम, 2017 महिलाओं के लिये कार्य-जीवन संतुलन को समर्थन देने के उद्देश्य से सवेतन मातृत्व अवकाश की अवधि को 12 सप्ताह से बढ़ाकर 26 सप्ताह कर देता है। इसमें 50 या अधिक कर्मचारियों वाले प्रतिष्ठानों में क्रेच सुविधा को भी अनिवार्य किया गया है। वर्ष 2015 में शुरू किये गए कौशल भारत मिशन का उद्देश्य महिलाओं सहित लाखों भारतीयों को कौशल प्रशिक्षण प्रदान करना है, ताकि उनकी रोज़गार क्षमता में वृद्धि हो एवं लैंगिक वेतन अंतर को कम किया जा सके। महिलाओं का एक बड़ा हिस्सा अनौपचारिक अर्थव्यवस्था में काम करता है, जहाँ सामाजिक सुरक्षा व नौकरी की सुरक्षा का अभाव है। विकास को बढ़ावा देने में अनौपचारिक क्षेत्र को औपचारिक बनाना और सभी श्रमिकों को सामाजिक सुरक्षा प्रदान करना शामिल है। इसमें मातृत्व अवकाश, बाल देखभाल सहायता तथा ऋण एवं प्रशिक्षण कार्यक्रमों तक पहुँच जैसे उपाय शामिल हैं।

शिक्षा एक मौलिक अधिकार और सामाजिक विकास की आधारशिला है। शिक्षा में लैंगिक असमानताएँ, विशेषकर विकासशील देशों में, प्रगति में बाधा डालती हैं। लिंग आधारित विकास, लड़कियों और लड़कों के लिये शिक्षा तक समान पहुँच को बढ़ावा देता है, तथा बाल विवाह, लिंग आधारित हिंसा और लड़कियों की शिक्षा का अवमूल्यन करने वाले सामाजिक-सांस्कृतिक मानदंडों जैसी बाधाओं को दूर करता है। शिक्षित महिलाओं के श्रम बल में भाग लेने, स्वस्थ परिवार रखने तथा सामाजिक प्रगति में योगदान देने की संभावना अधिक होती है। सर्व शिक्षा अभियान (Sarva Shiksha Abhiyan- SSA) वर्ष 2001 में शुरू किया गया था, जिसका उद्देश्य सार्वभौमिक प्राथमिक शिक्षा प्राप्त करना था। इसमें महिला शिक्षा तथा नामांकन, प्रतिधारण और पूर्णता दर में लैंगिक समानता प्राप्त करने पर विशेष बल दिया गया है।

कस्तूरबा गांधी बालिका विद्यालय (Kasturba Gandhi Balika Vidyalaya- KGBV) योजना हाशिए पर पड़े समुदायों की लड़कियों के लिये उच्च प्राथमिक स्तर पर आवासीय विद्यालय उपलब्ध कराती है। इसका उद्देश्य लड़कियों की पढ़ाई छोड़ने की दर को कम करना तथा उनकी निरंतर शिक्षा सुनिश्चित करना है। पहले मिड-डे मील योजना और अब प्रधानमंत्री पोषण शक्ति निर्माण योजना (PM Poshan Scheme) प्राथमिक एवं उच्च प्राथमिक विद्यालयों में बच्चों को मुफ्त दोपहर का भोजन प्रदान करती है। यह विशेष रूप से लड़कियों के बीच स्कूल में उपस्थिति व प्रतिधारण दर बढ़ाने में सहायक रही है।

स्वास्थ्य परिणामों में लिंग की महत्त्वपूर्ण भूमिका होती है। महिलाओं और पुरुषों की स्वास्थ्य संबंधी आवश्यकताएँ अलग-अलग होती हैं तथा उन्हें विभिन्न स्वास्थ्य जोखिमों का सामना करना पड़ता है। लिंग आधारित विकास में यह सुनिश्चित करना शामिल है कि स्वास्थ्य प्रणालियाँ इन अंतरों के प्रति संवेदनशील हों। इसमें मातृ एवं प्रजनन स्वास्थ्य सेवाएँ प्रदान करना, लिंग आधारित हिंसा से निपटना एवं महिला स्वास्थ्य मुद्दों को बढ़ावा देना शामिल है। लिंग-संवेदनशील स्वास्थ्य नीतियाँ बेहतर स्वास्थ्य परिणामों व समग्र विकास में योगदान देती हैं। राष्ट्रीय स्वास्थ्य मिशन के तहत सुरक्षित मातृत्व के लिये जननी सुरक्षा योजना (Janani Suraksha Yojana- JSY) का उद्देश्य गरीब गर्भवती महिलाओं के बीच संस्थागत प्रसव को बढ़ावा देकर मातृ एवं नवजात मृत्यु दर को कम करना है। यह महिलाओं को स्वास्थ्य सुविधाओं में बच्चे को जन्म देने के लिये प्रोत्साहित करने हेतु वित्तीय प्रोत्साहन प्रदान करता है। प्रधानमंत्री मातृ वंदना योजना (Pradhan Mantri Matru Vandana Yojana- PMMVY) गर्भवती और स्तनपान कराने वाली महिलाओं को पहले जीवित बच्चे के जन्म पर नकद प्रोत्साहन प्रदान करती है। इसका उद्देश्य स्वास्थ्य संबंधी व्यवहार में सुधार लाना तथा प्रसव एवं शिशु देखभाल के दौरान होने वाली मजदूरी हानि की भरपाई करना है।

राष्ट्रीय स्वास्थ्य मिशन (National Health Mission- NHM) में मातृ एवं शिशु स्वास्थ्य, किशोर स्वास्थ्य और प्रजनन स्वास्थ्य को लक्षित करने वाले विभिन्न कार्यक्रम शामिल हैं। यह स्वास्थ्य सेवा प्रदान करने हेतु लिंग-संवेदनशील दृष्टिकोण के महत्त्व पर जोर देता है। आयुष्मान भारत - प्रधानमंत्री जन आरोग्य योजना (Pradhan Mantri Jan Arogya Yojana- PMJAY) एक स्वास्थ्य बीमा योजना है जो माध्यमिक और तृतीयक देखभाल अस्पताल में भर्ती होने के लिये कवरेज प्रदान करती है। इसमें यह सुनिश्चित करने के प्रावधान शामिल हैं कि महिलाओं व पुरुषों को स्वास्थ्य सेवाओं तक समान पहुँच मिले।

समावेशी और लोकतांत्रिक विकास के लिये राजनीतिक भागीदारी आवश्यक है। राजनीतिक और निर्णय लेने की प्रक्रियाओं में महिलाओं का कम प्रतिनिधित्व उनके जीवन को प्रभावित करने वाली नीतियों को प्रभावित करने की उनकी क्षमता को सीमित करता है। लैंगिक आधारित विकास लैंगिक कोटा, क्षमता निर्माण कार्यक्रम और महिला अधिकारों के समर्थन जैसे उपायों के माध्यम से महिलाओं के राजनीतिक सशक्तीकरण को बढ़ावा देता है। महिलाओं की बढ़ती राजनीतिक भागीदारी से अधिक समावेशी और न्यायसंगत शासन सुनिश्चित होता है। स्थानीय सरकारों में सीटों का आरक्षण 73वें और 74वें संविधान संशोधन, 1992 द्वारा पंचायती राज संस्थाओं (ग्रामीण स्थानीय सरकारों) और शहरी स्थानीय निकायों में महिलाओं के लिये एक तिहाई सीटों का आरक्षण अनिवार्य किया गया है। इससे जमीनी स्तर पर महिलाओं का प्रतिनिधित्व काफी बढ़ गया है। महिला आरक्षण अधिनियम, 2023, जिसे संविधान (106वाँ संशोधन) अधिनियम, 2023 के रूप में भी जाना जाता है, लोकसभा, राज्य विधानसभाओं और राष्ट्रीय राजधानी क्षेत्र दिल्ली की विधानसभा में महिलाओं हेतु एक तिहाई सीटें आरक्षित करता है, जिनमें अनुसूचित जातियों और अनुसूचित जनजातियों के लिये आरक्षित सीटें भी शामिल हैं।

जलवायु परिवर्तन महिलाओं को असमान रूप से प्रभावित करता है, खासकर विकासशील देशों में जहाँ वे अक्सर पानी और खाद्य सुरक्षा के लिये ज़िम्मेदार होती हैं। विकास में इन कमजोरियों को पहचानना तथा उनका समाधान करना शामिल है। महिलाओं को जलवायु परिवर्तन शमन एवं अनुकूलन रणनीतियों में शामिल किया जाना चाहिये, ताकि स्थायी संसाधन प्रबंधन में उनके ज्ञान व कौशल का लाभ उठाया जा सके। लिंग-संवेदनशील जलवायु नीतियाँ लचीलेपन को बढ़ा सकती हैं और यह सुनिश्चित कर सकती हैं कि पर्यावरणीय क्षरण के कारण विकास संबंधी लाभ प्रभावित न हों।

कृषि में महिलाएँ महत्त्वपूर्ण भूमिका निभाती हैं, विशेषकर निर्वाह कृषि में। लैंगिक आधारित विकास महिलाओं को भूमि, ऋण और प्रौद्योगिकी तक पहुँच प्रदान करता है, जिससे वे कृषि उत्पादकता तथा खाद्य सुरक्षा में सुधार  करने में मदद मिलती है। महिला किसानों को सशक्त बनाने से स्थायी कृषि पद्धतियों एवं ग्रामीण विकास में योगदान मिलता है।

गहरी जड़ें जमाए हुए सामाजिक-सांस्कृतिक मानदंड अक्सर लैंगिक असमानता को बनाए रखते हैं। ये मानदंड लैंगिक भूमिकाओं को निर्धारित करते हैं और महिलाओं के अवसरों तथा निर्णय लेने की शक्ति को सीमित करते हैं। लैंगिक आधारित विकास के लिये शिक्षा, समर्थन एवं सामुदायिक सहभागिता के माध्यम से इन मानदंडों को चुनौती देना व बदलना आवश्यक है।

लैंगिक आधारित विकास यह सुनिश्चित करता है कि पुरुष और महिला दोनों ही विकास प्रक्रियाओं से लाभान्वित हों और इसमें योगदान दें। लैंगिक असमानताओं को दूर करके तथा समानता को बढ़ावा देकर, समाज का आर्थिक विकास, सामाजिक प्रगति एवं पर्यावरणीय स्थिरता प्राप्त कर सकता है। विकास में लैंगिक दृष्टिकोण का एकीकरण न केवल न्याय का मामला है, बल्कि प्रभावी व स्थायी विकास परिणामों के लिये एक पूर्वापेक्षा (Prerequisite) भी है। लैंगिक आधारित विकास के बिना, मानव कल्याण और समृद्धि में सुधार के प्रयास अधूरे रहेंगे तथा विफलता के प्रति संवेदनशील रहेंगे। अतः यह आवश्यक है कि सभी विकास पहलों में उनकी सफलता एवं स्थिरता सुनिश्चित करने के लिये लिंग संबंधी विचारों को सचेत रूप से व लगातार शामिल किया जाए।

महिलाओं के सशक्तीकरण से अच्छे परिवार, अच्छे समाज और अंततः अच्छे राष्ट्र का विकास होता है।

-डॉ. ए.पी.जे. अब्दुल कलाम

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