आधुनिकीकरण एवं पाश्चात्यीकरण कितने अलग? | 21 May 2020
यदि अतीत में झाँक कर देखें तो पता चलता है कि यूरोप, अमेरिका आदि देशों में भौतिक विज्ञान के क्षेत्र में तीव्र प्रगति हुई। विभिन्न वैज्ञानिक आविष्कारों के बदौलत चिकित्सा, व्यापार, परिवहन, शिक्षा इत्यादि क्षेत्रों में काफी प्रगति हुई। इस प्रगति के कारण पाश्चात्य देशों का विश्व के सभी देशों के ऊपर काफी प्रभुत्व स्थापित हुआ। भारत में भी अमेरिका एवं यूरोप आदि देशों के विकास का लोहा माना गया और उन्हें आदर्श मान उनका अनुकरण किया जाने लगा। भारत में इन देशों की बढ़ती प्रतिष्ठा के कारण पाश्चात्य सभ्यता और संस्कृति को अपनाने की एक होड़ सी पैदा हो गई। भारत के साथ अन्य देशों में भी पाश्चात्यीकरण की बयार बहने लगी। इसके साथ ही विकसित हुए प्रत्येक प्रचलन एवं खोजों को भी पाश्चात्यीकरण का रूप माना जाने लगा। धीरे-धीरे आधुनिकीकरण एवं पाश्चात्यीकरण को एक माना जाने लगा।
आगे चलकर जब पाश्चात्यीकरण के दोष सामने आने लगे तो लोग आधुनिकता में भी पाश्चात्यीकरण का प्रभाव ढूंढने लगे। इस स्थिति को दूर करने के लिये विचारकों को इस तथ्य के साथ सामने आना पड़ा कि आधुनिकीकरण एवं पाश्चात्यीकरण एक नहीं हैं अपितु ये एक दुसरे से भिन्न हैं। इस भिन्नता को समझने के लिये इस तथ्य पर गहराई पूर्वक चिंतन करने की आवश्यकता है।
मनुष्य जब परंपरागत विचारों, कार्यों, पद्धतियों और जीवनशैली को प्रभावी समयानुसार एवं अर्थपूर्ण बनाने के लिये जब उसमें नए नए विचारों, सोच एवं तकनीक का समावेशन करता है तो यह प्रक्रिया आधुनिकीकरण का रूप ले लेती है। जबकि पाश्चात्यीकरण का अर्थ पश्चिमी गोलार्द्ध में स्थित देश मुख्यतः फ्रांस, ब्रिटेन, जर्मनी, इटली तथा अमेरिका से लगाया जाता है।
क्योंकि इन देशों ने ही भूतकाल में वैज्ञानिक, आर्थिक, सामाजिक एवं राजनीतिक आदि क्षेत्रों में बहुत अधिक प्रगति की थी अतः इनकी धाक संपूर्ण विश्व में स्थापित हो गई है। इस सफलता और विकास से प्रभावित होकर बाकी देश भी इन देशों की सभ्यता और संस्कृति को अपनाने लगे। इन देशों की वैज्ञानिक सोच एवं पद्धति को अपनाने के साथ इनके रहन-सहन, वेश-भूषा और खान-पान तथा दिनचर्या को भी अपनाने लगे। हम ऐसा भी कह सकते हैं कि पश्चिमी देशों की सभ्यता एवं संस्कृति का अनुकरण और उसे आत्मसात करने की प्रक्रिया ही पाश्चात्यीकरण है।
इस प्रकार यह कहा जा सकता है कि दोनों अवधारणाएँ एक नहीं अपितु एक ही प्रकृति एवं प्रक्रिया से विकसित दो भिन्न तत्त्व हैं। हालांकि इन दोनों में काफी समानताएँ हैं जिसके कारण इन्हें एक माने जाने की भूल होती रहती है किंतु बारीकी से गौर करने पर इनके मध्य विषमताएँ भी दृष्टिगोचर होती हैं।
अगर समानताओं की बात करें तो दोनों ही वर्तमान काल की प्रक्रियाएँ हैं जो वैज्ञानिक उन्नति के कारण प्रकाश में आई थीं। चूँकि पाश्चात्य देशों द्वारा आधुनिकीकरण को अधिक तीव्रता से अपनाया गया अतः वे आधुनिकीकरण के पर्याय बन गए। वस्तुतः आधुनिकीकरण की आधुनिक अवधारणा का विकास पश्चिमी जगत से ही हुआ था इसलिये भी पश्चिमीकरण को आधुनिकीकरण मान लिया जाता है।
इसी प्रकार अगर असमानताओं की बात की जाए तो यह भिन्नता दोनों में स्पष्ट रूप से परिलक्षित होती है।
असमानताएँ:
- आधुनिकीकरण:
1. आधुनिक समय की अवधारणा पर आधारित होने के कारण ‘काल तत्व’ आधार।
2. आधुनिकीकरण, प्रकृति के परिवर्तनशीलता से ऊर्जा प्राप्त करता है।
3. आधुनिकीकरण की उत्पत्ति किसी भी देश में होने वाले नवाचार से संभव है।
4. आधुनिकीकरण में सदा नई प्रक्रिया का समावेश रहता है।
5. आधुनिकीकरण अपनाने की प्रक्रिया देश को गौरवान्वित करती है। - पाश्चात्यीकरण:
1. पाश्चात्यीकरण पश्चिमी देशों से संबंधित अवधारणा है जिसमें ‘स्थान’ प्रमुख तत्त्व है।
2. पाश्चात्यीकरण अपनाने की ऊर्जा पश्चिमी देशों की भौतिक देशों की मौलिक वैज्ञानिक सफलताओं से प्राप्त होती है।
3. पाश्चात्यीकरण पश्चिमी सभ्यता, संस्कृति, जीवनशैली को अपनाकर ही संभव है।
4. पाश्चात्यीकरण एक रूढ़ भाव है जो पुरातन भी हो सकता है।
5. पाश्चात्यीकरण को अपनाने वाले देश हीनता का अनुभव भी कर सकते हैं।
आधुनिकीकरण एवं पाश्चात्यीकरण को एक मान लेना एक नितांत भूल साबित होगी क्योंकि इसके कई प्रतिकूल प्रभाव उत्पन्न होते हैं। जिस प्रकार असत्य को सत्य समझ लेने से विपत्ति की आशंका उत्पन्न होती है उसी प्रकार का प्रभाव यहाँ भी पड़ता है। अगर हम गहराई से विचार करें तो यह स्पष्ट होता है कि आधुनिकीकरण एवं पाश्चात्यीकरण दो भिन्न बातें हैं जो ‘अपनी समानताओं’ के कारण अभिन्न प्रतीत होती हैं। किंतु अनेक आधारों पर यह सिद्ध हो चुका है कि दोनों एक नहीं अपितु अलग-अलग हैं। आधुनिकीकरण एक व्यापक शाश्वत और प्रकृति में निरंतर घटित होने वाली प्रक्रिया है जबकि पाश्चात्यीकरण एक क्षेत्र विशेष, सीमित और संकुचित सभ्यता का ही रूप है।