क्या गुटनिरपेक्ष आंदोलन (NAM) ने बहुध्रुवीय विश्व में अपनी प्रासंगिकता खो दी है? | 05 Jul 2024
गुटनिरपेक्षता विश्व समस्याओं और अन्य देशों के साथ हमारे संबंधों के प्रति हमारे दृष्टिकोण का मूलभूत आधार बनी रहेगी।
—लाल बहादुर शास्त्री
शीत युद्ध के दौर में स्थापित गुटनिरपेक्ष आंदोलन (NAM) की कल्पना ऐसे देशों के लिये एक मंच के रूप में की गई थी जो संयुक्त राज्य अमेरिका या सोवियत संघ के साथ स्वयं को संगठित नहीं करना चाहते थे। शीत युद्ध की समाप्ति और बहुध्रुवीय विश्व के उदय के साथ, समकालीन अंतर्राष्ट्रीय संबंधों में NAM की प्रासंगिकता के बारे में प्रश्न उठने लगे हैं।
गुटनिरपेक्ष आंदोलन की स्थापना वर्ष 1961 में बेलग्रेड, यूगोस्लाविया में हुई थी, जिसका नेतृत्व यूगोस्लाविया के जोसिप ब्रोज़ टीटो, भारत के जवाहरलाल नेहरू, मिस्र के गमाल अब्देल नासिर, घाना के क्वामे नक्रूमा और इंडोनेशिया के सुकर्णो जैसे लोगों ने किया था। यह आंदोलन महाशक्तियों के प्रभुत्व से मुक्त होकर राजनीतिक स्वतंत्रता और आर्थिक विकास के उद्देश्य पर आधारित था। NAM के प्राथमिक उद्देश्यों में शांति, निरस्त्रीकरण और सामाजिक-आर्थिक विकास को बढ़ावा देना शामिल था।
शीत युद्ध के दौरान, NAM ने देशों को अपनी चिंताओं को व्यक्त करने और उस समय के द्विआधारी संघर्ष में उलझे बिना वैश्विक राजनीति को प्रभावित करने के लिये एक मंच प्रदान किया। इसने राज्यों की संप्रभुता और क्षेत्रीय अखंडता, आंतरिक मामलों में हस्तक्षेप न करने और संघर्षों के शांतिपूर्ण समाधान का समर्थन किया। इस आंदोलन ने उपनिवेशवाद की प्रक्रिया में और अंतर्राष्ट्रीय मंच पर विकासशील देशों के हितों को समर्थन देने में महटपूर्ण भूमिका निभाई।
शीत युद्ध की समाप्ति के साथ, वैश्विक राजनीति की द्विध्रुवीय संरचना ने एक अधिक जटिल और परस्पर जुड़ी बहुध्रुवीय विश्व को मार्ग प्रदान किया। संयुक्त राज्य अमेरिका एकमात्र महाशक्ति के रूप में उभरा, लेकिन क्षेत्रीय शक्तियों और उभरती अर्थव्यवस्थाओं ने अपना प्रभाव दिखाना शुरू कर दिया। भारत, चीन, ब्राज़ील और अन्य देशों के उदय ने वैश्विक व्यवस्था को नया रूप दिया है, जिससे कई केंद्रों के बीच शक्ति का वितरण हुआ है।
अंतर्राष्ट्रीय संबंधों की गतिशीलता बदल गई है। जलवायु परिवर्तन, आतंकवाद और आर्थिक परस्पर निर्भरता जैसे वैश्विक मुद्दों के लिये बहुपक्षीय सहयोग की आवश्यकता होती है। बहुराष्ट्रीय निगमों, अंतर्राष्ट्रीय संगठनों एवं नागरिक समाज सहित गैर-राष्ट्र अभिकर्त्ताओं का प्रभाव भी बढ़ा है, जिसने वैश्विक राजनीति के पारंपरिक राज्य-केंद्रित दृष्टिकोण को और जटिल बना दिया है।
शीत युद्ध के द्विआधारी मतभेदों से मुक्त विश्व में NAM की सुसंगति और महत्त्व को बनाए रखना, इसके समक्ष विद्यमान मूलभूत मुद्दों में से एक है। आंदोलन ने एक स्पष्ट और एकीकृत एजेंडा को स्पष्ट करने के लिये संघर्ष किया है जो इसके सदस्यों के विविध हितों को सुनिश्चित करता है। 120 से अधिक सदस्य देशों के साथ NAM राजनीतिक, आर्थिक और सांस्कृतिक संदर्भों की एक विस्तृत शृंखला को शामिल करता है, जिससे आम सहमति हासिल करना मुश्किल हो जाता है।
NAM की सदस्यता की विविधता, जिसमें अलग-अलग राजनीतिक व्यवस्था, विकास के स्तर और क्षेत्रीय हित वाले देश शामिल हैं, एकीकृत कार्रवाई के लिये एक चुनौती पेश करती है। प्रशांत क्षेत्र में एक छोटे से द्वीप राष्ट्र के हित एशिया या अफ्रीका में एक प्रमुख उभरती अर्थव्यवस्था के हितों से काफी भिन्न हो सकते हैं। यह विविधता सुसंगत नीतियों को तैयार करने और लागू करने को चुनौतीपूर्ण बनाती है।
क्षेत्रीय संगठनों और गठबंधनों के उदय ने भी NAM की प्रासंगिकता को प्रभावित किया है। अफ्रीकी संघ, ASEAN, BRICS और शंघाई सहयोग संगठन (SCO) जैसे संगठन क्षेत्रीय सहयोग के लिये मंच प्रदान करते हैं और NAM के उद्देश्यों के साथ ओवरलैप हो सकते हैं। इन संगठनों के पास प्रायः अधिक केंद्रित एजेंडे होते हैं और वे क्षेत्रीय मुद्दों को अधिक प्रभावी ढंग से हल कर सकते हैं।
वैश्वीकरण और आर्थिक परस्पर निर्भरता की प्रक्रियाओं ने नई चुनौतियाँ और अवसर उत्पन्न किये हैं। जबकि वैश्वीकरण ने कनेक्टिविटी और आर्थिक विकास को बढ़ाया है, इसने असमानताओं एवं कमज़ोरियों को भी बढ़ा दिया है। NAM को इन जटिलताओं को नेविगेट करना चाहिये और व्यापार, निवेश एवं सतत् विकास जैसे मुद्दों को इस तरह से हल करना चाहिये जिससे इसके सदस्य देशों को लाभ हो।
इन चुनौतियों के बावजूद, गुटनिरपेक्ष आंदोलन समकालीन बहुध्रुवीय विश्व में संभावित प्रासंगिकता बनाए रखता है। इसके सिद्धांत और उद्देश्य कई विकासशील देशों की आकांक्षाओं के साथ प्रतिध्वनित होते रहते हैं। यहाँ कई तरीके दिये गए हैं जिनसे NAM अपनी प्रासंगिकता बनाए रख सकता है और उसे बढ़ा सकता है।
NAM एक अधिक न्यायसंगत और समावेशी वैश्विक शासन प्रणाली का समर्थन करने में महत्त्वपूर्ण भूमिका निभा सकता है। संयुक्त राष्ट्र जैसे मंचों पर, NAM उन सुधारों पर बल दे सकता है जो विकासशील देशों को अधिक समर्थन और प्रतिनिधित्व देते हैं। इसमें संयुक्त राष्ट्र सुरक्षा परिषद की संरचना में बदलाव का समर्थन करना और अंतर्राष्ट्रीय संस्थानों में अधिक पारदर्शिता एवं जवाबदेही को बढ़ावा देना शामिल है।
NAM की एक ताकत साउथ- साउथ सहयोग को बढ़ावा देने की इसकी क्षमता में निहित है। विकासशील देशों के बीच सहयोग को प्रोत्साहित करके, NAM ज्ञान, प्रौद्योगिकी और सर्वोत्तम प्रथाओं के आदान-प्रदान को सुविधाजनक बना सकता है। यह सदस्य देशों को गरीबी, स्वास्थ्य सेवा, शिक्षा और अवसंरचना विकास जैसी आम चुनौतियों का समाधान करने में मदद कर सकता है।
NAM उन वैश्विक चुनौतियों का समाधान करने में योगदान दे सकता है जिनके लिये सामूहिक कार्रवाई की आवश्यकता होती है। जलवायु परिवर्तन, सतत् विकास और वैश्विक स्वास्थ्य महामारी जैसे मुद्दे राष्ट्रीय सीमाओं से परे हैं और समन्वित प्रयासों की मांग करते हैं। NAM सदस्य देशों को इन मुद्दों से निपटने के लिये आम रणनीतियों को विकसित करने और बढ़ावा देने के लिये एक मंच प्रदान कर सकता है।
निरस्त्रीकरण और संघर्षों के शांतिपूर्ण समाधान के सिद्धांत NAM के मिशन के लिये केंद्रीय बने हुए हैं। एक बहुध्रुवीय विश्व में जहाँ क्षेत्रीय संघर्ष और हथियारों की होड़ वैश्विक स्थिरता के लिये खतरा बनी हुई है, NAM निरस्त्रीकरण पहल का समर्थन कर सकता है तथा विवादों को हल करने के लिये कूटनीतिक प्रयासों का समर्थन कर सकता है। संवाद और वार्ता को बढ़ावा देकर, NAM वैश्विक शांति एवं सुरक्षा में योगदान दे सकता है।
आर्थिक न्याय और विकास हमेशा NAM की मुख्य चिंताएँ रही हैं। बढ़ती आर्थिक असमानताओं एवं वैश्वीकरण द्वारा उत्पन्न चुनौतियों के सामने, NAM निष्पक्ष व्यापार प्रथाओं, संसाधनों तक समान पहुँच व समावेशी आर्थिक विकास को बढ़ावा देने वाली नीतियों का समर्थन कर सकता है। ऋण राहत, निष्पक्ष व्यापार और मानव पूंजी में निवेश जैसे मुद्दों को हल करके, NAM अपने सदस्य देशों के आर्थिक विकास का समर्थन कर सकता है।
इन चुनौतियों और अवसरों का प्रभावी ढंग से समाधान करने के लिये NAM को अपने आंतरिक समन्वय और एकजुटता को बढ़ाना होगा। इसके लिये आंदोलन के संस्थागत तंत्र को सुदृढ़ करना, सदस्य देशों के बीच संवाद में सुधार करना और साझा उद्देश्य की भावना को बढ़ावा देना आवश्यक है। नियमित शिखर सम्मेलन, मंत्रिस्तरीय बैठकें और कार्य समूह आम सहमति बनाने तथा कार्रवाई योग्य योजनाएँ विकसित करने में मदद कर सकते हैं।
NAM की निरंतर प्रासंगिकता को दर्शाने के लिये उन विशिष्ट उदाहरणों और केस स्टडीज़ की जाँच करना उपयोगी है जहाँ आंदोलन ने हाल के वर्षों में रचनात्मक भूमिका निभाई है।
NAM क्लाइमेट जस्टिस का समर्थन करने और अंतर्राष्ट्रीय जलवायु वार्ता में विकासशील देशों के हितों का समर्थन करने में सक्रिय रहा है। वर्ष 2015 में पेरिस में COP21 सम्मेलन के दौरान, NAM देशों ने एक कानूनी रूप से बाध्यकारी समझौते को आगे बढ़ाने में महत्त्वपूर्ण भूमिका निभाई, जो आम लेकिन विभेदित जिम्मेदारियों के सिद्धांत को मान्यता देता है। यह सिद्धांत स्वीकार करता है कि जबकि सभी देशों को जलवायु परिवर्तन से निपटने के लिये कार्रवाई करनी चाहिये, विकसित देशों के पास ऐसा करने के लिये अधिक ऐतिहासिक जिम्मेदारी और वित्तीय क्षमता है।
COVID-19 महामारी ने वैश्विक सहयोग और एकजुटता के महत्त्व को उजागर किया। NAM देशों ने चिकित्सा संसाधनों, विशेषज्ञता और सर्वोत्तम प्रथाओं को साझा करके सार्वजनिक स्वास्थ्य संकट को दूर करने के लिये मिलकर काम किया है। बहुपक्षवाद और एकजुटता पर NAM का ज़ोर विकासशील देशों के लिये टीकों और स्वास्थ्य देखभाल संसाधनों तक समान पहुँच सुनिश्चित करने में सहायक रहा है।
NAM ने लगातार फिलिस्तीनी लोगों के अधिकारों का समर्थन किया है और इज़रायल-फिलिस्तीनी संघर्ष के न्यायसंगत एवं स्थायी समाधान का आह्वान किया है। NAM के सदस्य देश फिलिस्तीनी राज्य के समर्थन में एकजुट हो गए हैं, देशों ने अवैध बस्तियों की निंदा की है तथा अंतर्राष्ट्रीय कानून का पालन करने की मांग की है। यह न्याय और आत्मनिर्णय के सिद्धांतों को बनाए रखने के लिये NAM की प्रतिबद्धता को दर्शाता है।
उदाहरण के लिये भारत ने मानवाधिकार परिषद में एक प्रस्ताव पर मतदान से परहेज़ किया, जिसमें इज़रायल से गाज़ा में तत्काल युद्ध विराम करने और राज्यों से हथियार प्रतिबंध लागू करने का आह्वान किया गया था, जिसे 47 सदस्यीय मानवाधिकार परिषद ने अपनाया था।
हालाँकि भारत का समर्थन से परहेज़ HRC प्रस्तावों पर उसके पिछले वोटों के अनुरूप है, जिसमें ‘जवाबदेही’ पर ज़ोर दिया गया था, लेकिन उसने तीन अन्य प्रस्तावों का समर्थन किया। इन प्रस्तावों में फिलिस्तीनियों के खिलाफ मानवाधिकारों के उल्लंघन के लिये इज़रायल की आलोचना की गई, सीरियाई गोलान पर इज़रायल के कब्ज़े की निंदा की गई और फिलिस्तीनी आत्मनिर्णय का समर्थन किया गया।
NAM ने साउथ-साउथ सहयोग फ्रेमवर्क जैसी पहलों के माध्यम से अपने सदस्य राष्ट्रों के बीच आर्थिक सहयोग और व्यापार को सुविधाजनक बनाया है। उदाहरण के लिये भारत-अफ्रीका मंच शिखर सम्मेलन, जो अफ्रीका एवं भारत से NAM सदस्य राज्यों को एक साथ लाता है, का उद्देश्य आर्थिक संबंधों को बढ़ाना, निवेश को बढ़ावा देना और बुनियादी ढाँचे के विकास का समर्थन करना है। ऐसी पहल आर्थिक साझेदारी को सुदृढ़ करने और सतत् विकास को बढ़ावा देने में मदद करती हैं।
शीत युद्ध की भू-राजनीतिक वास्तविकताओं से उत्पन्न हुए गुटनिरपेक्ष आंदोलन को बहुध्रुवीय विश्व में अपनी प्रासंगिकता बनाए रखने में महत्त्वपूर्ण चुनौतियों का सामना करना पड़ रहा है। हालाँकि, संप्रभुता, स्वतंत्रता और न्यायसंगत विकास के इसके मूल सिद्धांत कई देशों के साथ प्रतिध्वनित होते रहते हैं। बदलते वैश्विक परिदृश्य के अनुकूल होने और समकालीन मुद्दों को हल करके, NAM विकासशील देशों के हितों की रक्षा करने और वैश्विक शांति एवं सहयोग को बढ़ावा देने के लिये एक महत्त्वपूर्ण मंच बना रह सकता है।