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डिजिटल अर्थव्यवस्था: एक समताकारी अथवा आर्थिक असमता का स्रोत

  • 27 Sep 2024
  • 13 min read

भारत विश्व की डिजिटल अर्थव्यवस्था में एक अग्रणी देश होगा।

— सुंदर पिचाई

डिजिटल अर्थव्यवस्था, जिसमें वस्तुओं और सेवाओं की सुपुर्दगी हेतु डिजिटल प्रौद्योगिकियों का व्यापक उपयोग शामिल है, से वैश्विक आर्थिक परिदृश्य में क्रांतिकारी परिवर्तन आया है। इससे नवाचार, उत्पादकता और समावेशिता की परिवर्तनकारी क्षमता प्राप्त होती है। यह धन सृजन के नए अवसर प्रदान करता है और सभी के लिये सूचना एवं बाज़ारों तक पहुँच को सुगम बनाता है किंतु इससे आर्थिक असमता भी बढ़ती है जो कि चिंता का विषय है। डिजिटल अर्थव्यवस्था का समताकारी होना अथवा आर्थिक असमता का स्रोत होना कई कारकों पर निर्भर करता है, जिसमें प्रौद्योगिकी, कौशल, नीतिगत मध्यवर्तन और बाज़ार की गतिशीलता तक पहुँच शामिल है।

डिजिटल अर्थव्यवस्था में अनेक प्रकार से, एक प्रबल समकारक के रूप में कार्य करने की क्षमता है। इससे भौगोलिक अवस्थिति और भौतिक अवसंरचना की आवश्यकता समाप्त होती है, जिससे व्यवसाय और व्यक्ति वस्तुतः किसी भी स्थान से वैश्विक बाज़ार में सक्रिय हो सकते हैं। बाज़ारों और सूचनाओं तक पहुँच को सभी के लिये सुलभ बनाने से विकासशील क्षेत्रों में लघु व्यवसायों और उद्यमियों को अपेक्षाकृत बड़ी, अधिक सुस्थित कंपनियों के साथ प्रतिस्पर्द्धा करने में सक्षम बनाता है, जिससे संबद्ध क्षेत्र में उनकी स्थिति में सुधार होता है। उदाहरण के लिये, Amazon, Alibaba और Etsy जैसे विभिन्न ई-कॉमर्स प्लेटफॉर्म से लघु व्यवसायों को बाज़ार की परंपरागत बाधाओं को दूर करते हुए विश्व के ग्राहकों तक पहुँचने की सुविधा हुई है।

भारत के डिजिटल पहचान कार्यक्रम, आधार और यूनिफाइड पेमेंट्स इंटरफेस (UPI) से वित्तीय सेवाओं तक पहुँच में क्रांति आई है। आधार से लाखों भारतीयों के लिये बैंक खाते खोलने और सरकारी सेवाओं का अभिगम सुनिश्चित हुआ है, जबकि UPI से ग्रामीण क्षेत्रों में भी डिजिटल भुगतान सहज और सुलभ हुआ है। फ्लिपकार्ट और स्नैपडील जैसी भारत की ई-कॉमर्स की प्रमुख कंपनियों की सहायता से लघु व्यवसायों के लिये देश के ग्राहक वर्ग तक पहुँच स्थापित करना संभव हुआ है। ये प्लेटफॉर्म विक्रेताओं को बड़ी कंपनियों के साथ प्रतिस्पर्द्धा करने के आवश्यक साधन और बुनियादी ढाँचा प्रदान करते हैं।

शिक्षा के डिजिटल प्लेटफॉर्म जैसे विभिन्न डिजिटल वेबसाइट और लर्निंग ऐप से शिक्षा क्षेत्र में क्रांतिकारी परिवर्तन हुआ है और दूरवर्ती क्षेत्रों के छात्रों के लिये शिक्षा वहनीय और सुलभ हुई है। डिजिटल शिक्षा उद्योग से समग्र देश में  छात्रों की अवस्थिति से प्रभावित हुए बिना उनके लिये गुणवत्तापूर्ण शिक्षा का अभिगम संभव हुआ है।

कई कंपनियाँ किसानों को प्रत्यक्ष रूप से बाज़ारों से जोड़ने, मध्यस्थों को कम करने और उनकी फसल के लिये बेहतर मूल्य सुनिश्चित करने के लिये डिजिटल तकनीकों को प्रयोग में ला रही हैं। ओपन नेटवर्क फॉर डिजिटल कॉमर्स (ONDC) सरकार की एक पहल है जिसका उद्देश्य डिजिटल अर्थव्यवस्था में भाग लेने के लिये छोटे खुदरा विक्रेताओं सहित सभी हितधारकों के लिये एक विवृत नेटवर्क प्रदान करके डिजिटल वाणिज्य को सभी के लिये सुलभ बनाना है।

डिजिटल प्लेटफॉर्म श्रम बाज़ार में समावेशिता को भी बढ़ावा देते हैं। अनेकों फ्रीलांसिंग प्लेटफॉर्म से डिजिटल कौशल वाले व्यक्तियों को उनकी अवस्थिति से प्रभावित हुए बिना कार्य खोजना सरल हुआ है। इस सुविधा से विशेष रूप से विकासशील देशों के व्यक्ति लाभान्वित हुए हैं, जहाँ उच्च बेरोज़गारी दर और सीमित स्थानीय अवसर मौजूद हैं। व्यक्तियों को किसी भी स्थान से वैश्विक अर्थव्यवस्था में भाग लेने में सक्षम बनाकर, डिजिटल अर्थव्यवस्था आर्थिक गतिशीलता के लिये नए अवसर सृजित करती है।

एक समताकारी के रूप में अपनी क्षमता के बावजूद, डिजिटल अर्थव्यवस्था आर्थिक असमता को भी बढ़ा सकती है, विशेषकर जब डिजिटल संसाधनों तक पहुँच असमान रूप से वितरित होती है। "डिजिटल विभाजन", उन लोगों के बीच का अंतराल है जिनके पास इंटरनेट और डिजिटल तकनीकों तक पहुँच है एवं जिनके पास नहीं है, डिजिटल अर्थव्यवस्था में असमता का प्रमुख कारक है। विश्व के अनेक भागों, विशेष रूप से ग्रामीण और निम्न आय वाले क्षेत्रों में, हाई-स्पीड इंटरनेट तक पहुँच सीमित है। सीमित पहुँच की यह कमी व्यक्तियों और व्यवसायों को डिजिटल अवसरों का पूर्ण लाभ बाधित करती है और इस प्रकार मौजूदा आर्थिक असमताएँ और प्रबल होती हैं।

इसके अतिरिक्त, डिजिटल अर्थव्यवस्था से कतिपय उद्योगों में विनर-टेक्स-ऑल की स्थिति उत्पन्न हुई है। तकनीकी  क्षेत्र की प्रमुख कंपनियों जैसे- Google, Amazon, Facebook और Apple का अपने-अपने क्षेत्रों पर प्रभुत्व है और भारी मात्रा में धन और शक्ति अर्जित कर रही हैं। कुछ प्रमुख कंपनियों के बीच लाभ के इस संकेंद्रण से धनी और निर्धन का अंतराल और अधिक व्य[पाक होता है। लघु कंपनियों और स्टार्टअप्स के लिये इन डिजिटल कंपनियों के साथ प्रतिस्पर्द्धा करना चुनौतीपूर्ण होता है, जिससे प्रतिस्पर्द्धा कम हो जाती है और लघु व्यवसायियों की उन्नति के अवसर प्रभावित होते हैं।

असमता को बढ़ाने वाला एक और कारक श्रम बाज़ार का ध्रुवीकरण है। यद्यपि डिजिटल अर्थव्यवस्था से प्रौद्योगिकी और डेटा विज्ञान में अत्यधिक कुशल श्रमिकों के लिये उच्च वेतन वाली नौकरियाँ सृजित होती हैं करती है किंतु इससे प्रायः ऐसे श्रमिक जो कम कुशल हैं, पीछे रह जाते हैं। स्वचालन और कृत्रिम बुद्धिमत्ता (AI) से विशेष रूप से विनिर्माण, खुदरा और परिवहन में अनेक अल्प और मध्यम-कुशल नौकरियाँ प्रतिस्थापित हो रही हैं। डिजिटल अर्थव्यवस्था में संक्रमण हेतु आवश्यक कौशल के बिना श्रमिकों को बेरोज़गारी या अल्परोज़गार का सामना करना पड़ता है, जिससे आर्थिक असमता बढ़ती है।

इसके अतिरिक्त, डिजिटल अर्थव्यवस्था की एक प्रमुख विशेषता गिग इकॉनमी, का श्रमिकों पर मिला-जुला प्रभाव पड़ता है। यद्यपि उबर और डोरडैश इत्यादि जैसे गिग प्लेटफॉर्म सुविधा अनुसार कार्य करने के अवसर प्रदान करते हैं किंतु इनमें प्रायः अल्प वेतन, नौकरी की असुरक्षा और लाभों के अभाव की समस्या होती है। इन क्षेत्रों में कार्यरत व्यक्तियों, विशेष रूप से विकासशील अर्थव्यवस्थाओं में, को शोषण और आर्थिक अस्थिरता का जोखिम होता है, जिससे असमता और भी बढ़ जाती है।

डिजिटल अर्थव्यवस्था का असमता के स्रोत के स्थान पर समताकारी स्रोत के रूप में इसकी भूमिका सुनिश्चित करने हेतु सरकारों और संस्थानों को लक्षित नीतिगत मध्यवर्तन क्रियान्वित करने चाहिये। डिजिटल विभाजन को कम करना अत्यावश्यक है। डिजिटल अर्थव्यवस्था में सभी की भागीदारी सुनिश्चित करने के लिये विशेष रूप से वंचित क्षेत्रों में डिजिटल बुनियादी ढाँचे में निवेश करना महत्त्वपूर्ण है। इसमें वहनीय हाई-स्पीड इंटरनेट तक पहुँच का विस्तार करना, डिजिटल साक्षरता प्रशिक्षण प्रदान करना और यह सुनिश्चित करना शामिल है कि हाशियाई समुदाय डिजिटल अवसरों का लाभ उठाने के लिये आवश्यक उपकरण से सन्नद्ध हों।

इसके अतिरिक्त, प्रतिस्पर्धी डिजिटल अर्थव्यवस्था को बढ़ावा देने के लिये तकनीकी क्षेत्र की बड़ी कंपनियों के प्रभुत्व को विनियमित करने के उद्देश्य से नीतियाँ विकसित करना आवश्यक है। निष्पक्ष प्रतिस्पर्द्धा को बढ़ावा देने वाले नियम लघु व्यवसायों और स्टार्टअप के लिये अधिक सम परिवेश तैयार करने में मदद कर सकते हैं। इसके अतिरिक्त, शोषण की रोकथाम करने और आर्थिक असमता को कम करने के लिये ऐसे श्रम कानून अधिनियमित करना आवश्यक है जिनमें गिग इकॉनमी श्रमिकों की रक्षा, उचित वेतन, नौकरी की सुरक्षा और उचित लाभ का प्रावधान किया गया हो।

डिजिटल अर्थव्यवस्था में सफल होने के लिये आवश्यक कौशल से श्रमिकों को लैस करने के लिये शैक्षिक सुधारों की भी आवश्यकता है। सरकारों को भविष्य की नौकरियों के लिये कार्यबल को तैयार करने के लिये विशेष रूप से प्रौद्योगिकी और डेटा विज्ञान से संबंधित क्षेत्रों में STEM शिक्षा एवं व्यावसायिक प्रशिक्षण को प्राथमिकता देनी चाहिये। तेज़ी से बदलते आर्थिक परिदृश्य के अनुकूल श्रमिकों की मदद करने के लिये आजीवन अधिगम के कार्यक्रम और पुनः कौशल पहल भी आवश्यक हैं।

डिजिटल अर्थव्यवस्था में सभी के लिये सूचना, बाज़ार और अवसरों तक पहुँच को सुगम बनाकर एक समताकारी के रूप में कार्य करने की विपल क्षमता है। यद्यपि, डिजिटल विभाजन, बाज़ार संकेंद्रण और श्रम बाज़ार ध्रुवीकरण को संबोधित करने के लिये सक्रिय उपायों के बिना, इससे आर्थिक असमता के बढ़ने का जोखिम है। नीति निर्माताओं, व्यवसायों और समाजों के लिये वास्तविक चुनौती यह सुनिश्चित करना है कि डिजिटल अर्थव्यवस्था के लाभ व्यापक रूप से साझा किए जाएँ और इस डिजिटल परिवर्तन में सभी का समावेशन सुनिश्चित हो। लक्षित मध्यवर्तनों और समावेशी नीतियों के माध्यम से, डिजिटल अर्थव्यवस्था विभाजन के स्रोत के स्थान पर समता का स्रोत बन सकती है।

डिजिटल परिवर्तन वर्तमान परिदृश्य में व्यवसायों के समक्ष एक मूल यथार्थ है।

— वॉरेन बफेट

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