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निबंध

राष्ट्र के भाग्य का स्वरूप-निर्माण उसकी कक्षाओं में होता है।

  • 28 Jun 2024
  • 15 min read

एक शिक्षित मन की पहचान यह है कि वह किसी विचार को स्वीकार किये बिना उसे ग्रहण कर सकता है। 

-अरस्तू

शिक्षा को लंबे समय से प्रगति, विकास और सामाजिक परिवर्तन की नींव के रूप में स्वीकार किया जाता रहा है। भारत जैसे समृद्ध ऐतिहासिक विरासत वाले देश तथा तेज़ी से बदलते सामाजिक-आर्थिक परिदृश्य के कारण इसके भविष्य के निर्धारण में शिक्षा का महत्त्व विशेष रूप से गहरा है।

भारत में शिक्षा की परंपरा प्राचीन काल से चली आ रही है, जिसमें तक्षशिला और नालंदा जैसे संस्थान संगठित शिक्षा के शुरुआती उदाहरण हैं। ये शिक्षण केंद्र पूरे एशिया से विद्वानों को आकर्षित करते थे और अपने विविध पाठ्यक्रमों के लिये प्रसिद्ध थे, जिसमें गणित एवं खगोल विज्ञान से लेकर दर्शन तथा साहित्य तक के विषय शामिल थे। समग्र शिक्षा पर ज़ोर ने एक ऐसे समाज की नींव रखी जो ज्ञान और बौद्धिक विकास को महत्त्व देती थी।

मध्यकाल में इस्लामी शासन के आगमन ने भारतीय शिक्षा में नए आयाम जोड़े। मदरसे और मकतब शिक्षा के प्रमुख केंद्रों के रूप में उभरे, जिन्होंने ज्ञान के संरक्षण एवं प्रसार में योगदान दिया। मुगल काल में, विशेष रूप से अकबर के शासनकाल में, विभिन्न सांस्कृतिक और बौद्धिक परंपराओं को एकीकृत करने के महत्त्वपूर्ण प्रयास हुए, जिससे शैक्षणिक एवं सांस्कृतिक संश्लेषण का माहौल बना।

ब्रिटिश औपनिवेशिक काल ने भारतीय शिक्षा प्रणाली में बहुत बड़े बदलाव किये। लॉर्ड मैकाले जैसे लोगों द्वारा संचालित अंग्रेज़ी शिक्षा की शुरूआत का उद्देश्य शिक्षित भारतीयों का एक वर्ग तैयार करना था जो ब्रिटिश शासकों और स्थानीय आबादी के बीच मध्यस्थ के रूप में कार्य कर सके। हालाँकि यह दृष्टिकोण मुख्य रूप से उपयोगितावादी था, लेकिन इसने अनजाने में भारत में एक आधुनिक शिक्षा प्रणाली की नींव रखी।

कलकत्ता विश्वविद्यालय, बॉम्बे विश्वविद्यालय और मद्रास विश्वविद्यालय जैसे संस्थानों की स्थापना भारतीयों को उच्च शिक्षा के अवसर प्रदान करने के लिये की गई थी। पश्चिमी विज्ञान, साहित्य और दर्शन की शुरूआत ने भारतीय छात्रों के बौद्धिक क्षितिज को व्यापक बनाया, जिससे शिक्षित भारतीयों का एक नया वर्ग उभर कर सामने आया, जिन्होंने बाद में स्वतंत्रता संग्राम में मत्त्वपूर्ण भूमिका निभाई।

वर्ष 1947 में भारत की आज़ादी के बाद, नवगठित सरकार ने राष्ट्र निर्माण में शिक्षा की महत्त्वपूर्ण भूमिका को पहचाना। महात्मा गांधी और जवाहरलाल नेहरू जैसे नेताओं के दृष्टिकोण ने एक व्यापक एवं समावेशी शिक्षा प्रणाली की आवश्यकता को रेखांकित किया जो सामाजिक तथा आर्थिक विकास को गति दे सके।

वर्ष 1956 में विश्वविद्यालय अनुदान आयोग (UGC) की स्थापना, भारतीय प्रौद्योगिकी संस्थान (IIT) और भारतीय प्रबंधन संस्थान (IIM) ने भारत में उच्च शिक्षा के विकास में महत्त्वपूर्ण उपलब्धि हासिल की। इन संस्थानों का उद्देश्य भारत की औद्योगिक और तकनीकी उन्नति में योगदान देने में सक्षम कुशल कार्यबल तैयार करना था।

उल्लेखनीय प्रगति के बावजूद, भारत की शिक्षा प्रणाली कई चुनौतियों का सामना कर रही है। इनमें पहुँच, गुणवत्ता और समानता से जुड़े मुद्दे शामिल हैं। वर्ष 2009 में लागू किया गया शिक्षा का अधिकार अधिनियम (RTE) 6 से 14 वर्ष की आयु के सभी बच्चों को नि:शुल्क और अनिवार्य शिक्षा की गारंटी देकर इन चुनौतियों का समाधान करने के लिये एक ऐतिहासिक प्रयास है।

हालाँकि, विशेष रूप से ग्रामीण और हाशिये पर पड़े समुदायों में शैक्षिक परिणामों में असमानता बनी हुई है। मिड-डे मील योजना और सर्व शिक्षा अभियान जैसी पहलों ने नामांकन एवं प्रतिधारण दरों में सुधार करने की कोशिश की है, लेकिन ऐसे सुधारों की निरंतर आवश्यकता है जो शिक्षा की गुणवत्ता को संबोधित करते हैं तथा यह सुनिश्चित करते हैं कि सभी छात्रों को सार्थक एवं प्रासंगिक शिक्षा मिले।

दक्षिण भारत के एक राज्य केरल को अक्सर शैक्षिक विकास के मामले में सफलता की कहानी के रूप में उद्धृत किया जाता है। 96% से अधिक साक्षरता दर के साथ केरल ने अपने नागरिकों को गुणवत्तापूर्ण शिक्षा प्रदान करने में उल्लेखनीय प्रगति हासिल की है। सार्वभौमिक प्राथमिक शिक्षा पर राज्य के ज़ोर के साथ-साथ शिक्षा और स्वास्थ्य सेवा में मज़बूत सार्वजनिक निवेश ने इसके उच्च मानव विकास संकेतकों में योगदान दिया है।

शिक्षा के प्रति केरल का दृष्टिकोण भी समावेशी रहा है, जिसमें लैंगिक और सामाजिक अंतर को पाटने के महत्त्वपूर्ण प्रयास किये गए हैं। शिक्षा के प्रति राज्य की प्रतिबद्धता ने न केवल व्यक्तिगत परिणामों में सुधार किया है, बल्कि शिक्षा की परिवर्तनकारी क्षमता को प्रदर्शित करने वाले व्यापक सामाजिक-आर्थिक संकेतकों पर भी सकारात्मक प्रभाव डाला है।

वर्ष 1986 में स्थापित नवोदय विद्यालय प्रणाली का उद्देश्य ग्रामीण क्षेत्रों के प्रतिभाशाली छात्रों को गुणवत्तापूर्ण शिक्षा प्रदान करना है। ये आवासीय विद्यालय कक्षा VI से XII तक निःशुल्क शिक्षा प्रदान करते हैं तथा शैक्षणिक उत्कृष्टता, नेतृत्व गुणों और सामाजिक जागरूकता को बढ़ावा देने पर ध्यान केंद्रित करते हैं।

नवोदय विद्यालयों की सफलता उनके पूर्व छात्रों की उपलब्धियों में स्पष्ट है, जिनमें से कई ने विज्ञान, इंजीनियरिंग, चिकित्सा और सार्वजनिक सेवा सहित विभिन्न क्षेत्रों में उत्कृष्टता हासिल की है। वंचित पृष्ठभूमि के छात्रों को उच्च गुणवत्ता वाली शिक्षा प्रदान करके, नवोदय विद्यालयों ने सामाजिक गतिशीलता को बढ़ावा देने और शैक्षिक असमानताओं को कम करने में महत्त्वपूर्ण भूमिका निभाई है।

प्रौद्योगिकी के तीव्र विकास ने भारत में शिक्षा के लिये नए अवसर प्रदान किये हैं। नेशनल डिजिटल लाइब्रेरी ऑफ इंडिया (NDLI), ऑनलाइन पाठ्यक्रमों के लिये SWAYAM प्लेटफॉर्म और डिजिटल पाठ्यपुस्तकों के लिये ई-पाठशाला ऐप जैसी डिजिटल पहलों ने शैक्षिक संसाधनों तक पहुँच का विस्तार किया है।

कोविड-19 महामारी के मद्देनजर ये पहल विशेष रूप से मूल्यवान रही हैं, जिसके कारण ऑनलाइन शिक्षा की ओर रुख करना आवश्यक हो गया है। डिजिटल बुनियादी अवसरंचना और पहुँच से जुड़ी समस्याएँ अभी भी बनी हुई हैं, लेकिन शिक्षा में प्रौद्योगिकी के समावेश से अधिगम को लोकतांत्रिक बनाने तथा शैक्षिक विभाजन को पाटने की क्षमता है।

शिक्षा की गुणवत्ता का शिक्षण की गुणवत्ता से अटूट संबंध है। शिक्षकों का छात्रों के अधिगम के अनुभवों पर महत्त्वपूर्ण प्रभाव पड़ता है और परिणामस्वरूप, राष्ट्र की नियति भी तय होती है। भारत में शिक्षक प्रशिक्षण और व्यावसायिक विकास में सुधार की पहल शैक्षिक सुधारों के लिये महत्त्वपूर्ण रही है।

शिक्षा को अधिक आकर्षक एवं प्रभावी बनाने के लिये अनुभवात्मक शिक्षण, पूछताछ-आधारित शिक्षण और कक्षा में प्रौद्योगिकी के उपयोग जैसे नवीन शैक्षणिक दृष्टिकोण पेश किये गए हैं। टीच फॉर इंडिया जैसे कार्यक्रमों ने प्रेरित और कुशल शिक्षकों को प्रणाली में लाकर कम संसाधन वाले स्कूलों में शिक्षा की गुणवत्ता में सुधार करने में भी योगदान दिया है।

चूँकि भारत पर्यावरणीय स्थिरता के मुद्दों से जूझ रहा है, इसलिये सतत् विकास के लिये शिक्षा (ESD) ने गति पकड़ ली है। पाठ्यक्रम में ESD को शामिल करने का उद्देश्य छात्रों को पर्यावरण संबंधी मुद्दों को संबोधित करने और संधारणीय प्रथाओं को बढ़ावा देने के लिये आवश्यक ज्ञान, कौशल एवं दृष्टिकोण से लैस करना है।

ग्रीन स्कूल प्रोग्राम और स्कूली पाठ्यक्रम में पर्यावरण अध्ययन को शामिल करना जैसी पहल इस दिशा में उठाए गए कदम हैं। छात्रों में पर्यावरण के प्रति ज़िम्मेदारी की भावना को बढ़ावा देकर ये पहल देश के लिये एक संधारणीय भविष्य के निर्माण में योगदान देती हैं।

भारत का उच्च शिक्षा क्षेत्र नवाचार और अनुसंधान को आगे बढ़ाने में महत्त्वपूर्ण भूमिका निभाता है। IIT, IIM और भारतीय विज्ञान शिक्षा एवं अनुसंधान संस्थान (IISER) जैसे संस्थान भारत की वैज्ञानिक और तकनीकी प्रगति में सबसे आगे रहे हैं।

स्वास्थ्य सेवा, कृषि, ऊर्जा और बुनियादी अवसरंचना सहित भारत की जटिल चुनौतियों के समाधान के लिये  अनुसंधान एवं नवाचार महत्त्वपूर्ण हैं। अनुसंधान और नवाचार की संस्कृति को बढ़ावा देकर, उच्च शिक्षा संस्थान ऐसे समाधानों के विकास में योगदान देते हैं जो आर्थिक विकास को गति दे सकते हैं तथा सभी नागरिकों के जीवन की गुणवत्ता में सुधार कर सकते हैं।

भारत के भाग्य को आकार देने में शिक्षा की क्षमता को पूरी तरह से साकार करने के लिये कई प्रमुख नीतिगत सिफारिशों पर विचार किया जा सकता है:

आजीवन अधिगम हेतु एक मज़बूत नींव रखने के लिये प्रारंभिक बाल्यावस्था शिक्षा में निवेश करना महत्त्वपूर्ण है। आंगनवाड़ी और अन्य समान कार्यक्रमों को मज़बूत एवं विस्तारित किया जाना चाहिये ताकि यह सुनिश्चित किया जा सके कि सभी बच्चों को उच्च गुणवत्ता वाली प्रारंभिक बाल्यावस्था शिक्षा प्राप्त हो सके।

शिक्षा की गुणवत्ता में सुधार हेतु शिक्षकों के लिये निरंतर व्यावसायिक विकास आवश्यक है। प्रशिक्षण कार्यक्रमों में आधुनिक शैक्षणिक विधियों, विषय विशेषज्ञता और शिक्षण में प्रौद्योगिकी के उपयोग पर ध्यान केंद्रित किया जाना चाहिये।

शिक्षा तक पहुँच और परिणामों में असमानताओं को दूर करने के प्रयासों को तेज़ किया जाना चाहिये। अनुसूचित जातियों, अनुसूचित जनजातियों और अन्य वंचित समूहों सहित हाशिये पर पड़े समुदायों पर विशेष ध्यान दिया जाना चाहिये।

डिजिटल बुनियादी अवसरंचना का विस्तार और प्रौद्योगिकी तक पहुँच से विशेष रूप से दूरदराज तथा वंचित क्षेत्रों में शैक्षिक अवसरों में वृद्धि हो सकती है। डिजिटल साक्षरता और ऑनलाइन शिक्षण प्लेटफार्मों में निवेश को प्राथमिकता दी जानी चाहिये।

उच्च शिक्षा संस्थानों को अनुसंधान एवं नवाचार को बढ़ावा देने के लिये उद्योग और सरकार के साथ सहयोग करने के लिये प्रोत्साहित किया जाना चाहिये। अनुसंधान और विकास के लिये वित्त पोषण बढ़ाया जाना चाहिये तथा नीतियों को अनुसंधान परिणामों के व्यावसायीकरण का समर्थन करना चाहिये।

राष्ट्र के भाग्य का स्वरूप-निर्माण उसकी कक्षाओं में होता है। भारत में, शैक्षिक विकास की यात्रा महत्त्वपूर्ण उपलब्धियों और चल रही चुनौतियों से चिह्नित है। प्राचीन शिक्षण केंद्रों से लेकर आधुनिक डिजिटल कक्षाओं तक शिक्षा भारत की सामाजिक, आर्थिक और सांस्कृतिक प्रगति के पीछे एक प्रेरक शक्ति रही है।

शिक्षा में निवेश जारी रखने और चुनौतियों का समाधान करने से भारत अपनी मानव पूंजी की पूरी क्षमता का दोहन कर सकता है। पूरे देश की कक्षाओं में जीवन को बदलने, अधिक समतापूर्ण समाज बनाने और संधारणीय विकास को आगे बढ़ाने की शक्ति है। जैसा कि भारत भविष्य की ओर देखता है, शिक्षा के प्रति प्रतिबद्धता राष्ट्र के भाग्य को आकार देने और अपने सभी नागरिकों के लिये  एक उज्जवल भविष्य सुनिश्चित करने में सहायक होगी।

किसी बच्चे की शिक्षा अपने ज्ञान तक सीमित मत रखिये, क्योंकि वह किसी और समय में पैदा हुआ है।

 —रवींद्रनाथ टैगोर

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