‘न्यू इंडिया’ की संकल्पनाः चुनौतियाँ और संभावनाएँ | 19 Aug 2018
"मस्लहत आमेज होते हैं रियासत के कदम, तू न समझेगा सियासत तू अभी नादान है,
कल नुमाइश में मिला वो चीथड़े पहने हुए, मैंने पूछा नाम तो बोला कि हिंदुस्तान है।"
प्रसिद्ध कवि दुष्यंत कुमार ने ये पंक्तियाँ भारत की आज़ादी के लगभग 30 वर्षों के बाद 80 के दशक में कही थी जो आज़ादी की पूर्व संध्या पर पंडित जवाहरलाल नेहरू द्वारा दिये गए प्रसिद्ध भाषण ट्रस्ट विद डेस्टिनी में किये गए संकल्प- जिसमें देश से गरीबी, बेरोज़गारी, रूढ़िवादिता आदि मिटाने तथा सभी को स्वास्थ्य, शिक्षा, आवास और पेयजल जैसी जीवन की मूलभूत आवश्यकताओं को पूरा कराने का संकल्प लिया गया था- को मुँह चिढ़ा रही थीं तो क्या आज आज़ादी के लगभग 70 वर्षों बाद इक्कीसवीं सदी के दूसरे दशक में लोगों की परिस्थितियाँ बदल गई हैं? क्या लोगों की सारी मूलभूत आवश्यकताएँ पूरी हो चुकी हैं? जवाब है बिल्कुल नहीं, लेकिन बहुत कुछ ऐसा है जो बदल गया है और वह है इन समस्याओं से निपटने की भारत की क्षमता। आज बहुत सारी सकारात्मक परिस्थितियाँ भारत के साथ हैं जिससे हम इस संकल्प को पूरा कर सकते हैं। इसीलिये भारत के सर्वोच्च विचार मंच नीति आयोग तथा भारत सरकार ने एक नए लक्ष्य ‘न्यू इंडिया’ की संकल्पना की है।
किसी भी विषयवस्तु की संकल्पना वास्तव में एक कल्पना ही होती है। लेकिन यह कोरी कल्पना नहीं बल्कि तार्किक व संगत परिस्थितियों पर आधारित होती है। अतः न्यू इंडिया की संकल्पना भी एक तार्किक संगत परिस्थितियों पर आधारित संकल्पना है। इसमें एक ऐसे विशिष्ट भारत की कल्पना की गई है जिसमें अभी तक व्याप्त कोई भी समस्याएँ नहीं होगी व व्यक्ति एक गौरवपूर्ण जीवन जी रहा होगा। न्यू इंडिया एक ऐसा इंडिया होगा जिसमें लोगों के लिये एलपीजी, बिजली, इंटरनेट कनेक्शन तथा AC व शौचालय युक्त घर होगा। लोग उच्च व पूर्ण शिक्षित होंगे। अत्याधुनिक व विशाल आधारभूत संरचना का नेटवर्क होगा। सभी के पास गाड़ियाँ (दोपहिया या चारपहिया) होंगी। जो पर्यावरणीय रूप से स्वच्छ होगा। वहाँ की हवा, पानी, गाँव, शहर स्वच्छ होंगे और वह एक वैश्विक रूप से प्रभावशाली देश होगा। जो गरीबी बेरोज़गारी, तथा भ्रष्टाचार इत्यादि। से मुक्त होगा आज भारत की जीडीपी लगभग 2.5 ट्रिलियन डॉलर की है जो क्रय शक्ति समता के आधार पर विश्व की तीसरी सबसे बड़ी अर्थव्यवस्था है और यह विश्व में सर्वाधिक तेज़ी से विकास कर रही अर्थव्यवस्थाओं में से एक है।
यह एक विचारणीय प्रश्न है, क्या उपरोक्त दी गई न्यू इंडिया की संकल्पना इतनी आसानी से मूर्त रूप ग्रहण कर लेगी? क्योंकि जो रास्ता जितना आसान दिखता है वास्तव में होता नहीं है। अतः हमें उन चुनौतियों पर भी गंभीरता पूर्वक विचार कर लेना चाहिये जो न्यू इंडिया के लक्ष्य को प्राप्त करने में बाधक हो सकती हैं या समस्या उत्पन्न कर सकती हैं।
न्यू इंडिया को मूर्त रूप देने में हमें जो विकास दर व अर्थव्यवस्था का आकार आकर्षित कर रहा है वास्तव में वह एक बड़ी चुनौती भी है, क्योंकि 2007-08 की आर्थिक मंदी के बाद से विश्व में संरक्षणवाद की प्रवृत्ति बढ़ती जा रही है। चाहे वह ब्रेक्ज़िट हो या अमेरिका में डोनाल्ड ट्रंप का जीतना। सभी जगह संरक्षणवाद यही मुख्य मुद्दा था जो भारत जैसी विकासशील अर्थव्यवस्थाओं के लिये अपनी विकास दर को उच्च स्तर पर बनाए रखने में समस्या उत्पन्न कर सकता है। इसी प्रकार, यदि विकास दर की बात की जाए तो यह सही है कि भारत पर मंदी का प्रभाव ज्यादा नहीं पड़ा तथा वर्तमान में यह सबसे तेज़ी से बढ़ती अर्थव्यवस्थाओं में एक है, लेकिन क्या यह विकास समावेशी है? आज भारत के 10% लोगों के पास 90% संपत्ति है जबकि 90% जनता के पास मात्र 10% और यह असंतुलन लगातार बढ़ता ही जा रहा है। यदि मान भी लिया जाए कि अगले 15 वर्षों में भारत की अर्थव्यवस्था 7.5 ट्रिलियन डॉलर की हो जाएगी तो मुख्य चुनौती यह है कि इसमें कितना प्रतिशत भाग निम्न वर्ग के हिस्से में आएगा सिर्फ आंकड़ों से कुछ नहीं होगा और इसलिये कहा गया है कि-
"तुम्हारी फाइलों में गाँव का मौसम गुलाबी है,
मगर ये आँकड़े झूठे हैं ये दावा किताबी है।"
दूसरी प्रमुख चुनौती जो न्यू इंडिया के सामने है, वह है अपने जनांकिकीय लाभांश को कुशल व योग्य बनाकर उसका रचनात्मक तरीके से इष्टतम प्रयोग करना। भारत लगभग 135 करोड़ आबादी वाला देश है, जिसकी 62 प्रतिशत आबादी 59 वर्ष से कम आयु की है अर्थात् कार्यबल में शामिल है। लेकिन इसका लगभग 50% कृषि क्षेत्र में प्रच्छन्न बेरोज़गारी के रूप में अनुत्पादक कार्यों में लगकर अपनी बहुमूल्य क्षमता को नष्ट कर रहा है। आज भारत में विभिन्न डिग्री या उपाधिधारक लोग चतुर्थ क्लास की नौकरियों के लिये दर-दर भटक रहे हैं क्योंकि उन्हें उनकी योग्यता के अनुसार कोई कार्य नहीं मिल पा रहा है। इसके अलावा, भारत में 1991 के बाद से ही संगठित क्षेत्र में लगातार रोज़गार घट रहा है। वैसे भी यह कुल रोज़गार का 10% ही है। भारत तथा विश्व के अन्य क्षेत्रों में तकनीकी विकास मानव श्रम को प्रतिस्थापित कर रहा है। भारत में थ्री जॉब डेफिसिट है जिसके तहत कुल रोज़गार, अच्छा रोज़गार व महिला रोज़गार लगातार घट रहा है। भारत में रोज़गार सृजन जो पिछले 6 वर्षों में निम्नतम स्तर पर है। अतः सभी लोगों को रोज़गार देना एक चुनौतीपूर्ण कार्य है और यह नहीं कर सके तो यह लाभांश न्यू इंडिया के लिये किसी आपदा से कम नहीं होगा।
इसी प्रकार, हमारी आधी आबादी अर्थात महिलाओं को भारत के विकास व न्यू इंडिया के निर्माण में सहयोगी बनाना भी एक चुनौतीपूर्ण कार्य रहेगा, क्योंकि भारत एक पितृसत्तात्मक समाज है जिसमें अभी तक महिलाओं को घर की चारदीवारी में से आज़ाद नहीं किया गया है। आज विश्व में किसी भी ऐसे देश का उदाहरण नहीं है जो अपनी महिलाओं को सम्मान व बराबरी का दर्जा दिये बिना केवल पुरुषों के बल पर विकसित बना हो। शायद इसीलिये स्वामी विवेकानंद जी ने कहा है, "जैसे किसी पक्षी के लिये एक पंख से उड़ना आसान नहीं है उसी प्रकार बिना महिलाओं की स्थिति में सुधार किये इस समाज का कल्याण संभव नहीं है।"
न्यू इंडिया की संकल्पना में जहाँ हमने एक तरफ पर्यावरणीय रूप से साफ-सुथरे व प्रदूषण मुक्त शहरों की कल्पना की है, वहीं नीति आयोग ने अपने न्यू इंडिया विज़न में प्रत्येक व्यक्ति के पास दोपहिया, चार पहिया वाहन की बात कही है जो कि पर्यावरण में प्रदूषण के महत्त्वपूर्ण कारण हैं, और जब सारा विश्व सार्वजनिक परिवहन प्रणाली को बढ़ावा दे रहा है, तब यदि हम व्यक्तिगत परिवहन साधनों को बढ़ावा देंगे तो न्यू इंडिया नहीं बनाएंगे बल्कि उसके सामने चुनौतियाँ ही खड़ा करेंगे।
ऊर्जा किसी भी देश के विकास के हर पहलू में सबसे महत्त्वपूर्ण व आवश्यक होती है लेकिन आज भारत को अपनी ऊर्जा आवश्यकता का 80% के लगभग आयात से पूरा करना पड़ता है जिससे अन्य सामाजिक सुरक्षा योजनाओं एवं विकास परियोजनाओं की तरफ ध्यान नहीं दे पाते। अतः नवीकरणीय व गैर-परंपरागत ऊर्जा संसाधनों के माध्यम से इस चुनौती का सामना करने हेतु गंभीर प्रयास करने होंगे।
गिरता लिंगानुपात (शिशु लिंगानुपात 2001 में 927 से 2011 में 916), उच्च शिशु व मृत्यु दर (क्रमशः 41 प्रति हज़ार व 72 प्रति लाख), निम्न गुणवत्ता की शिक्षा (कक्षा 5 का बच्चा कक्षा 2 के सवाल नहीं लगा पाता एनजीओ प्रथम की रिपोर्ट) व निम्न स्तर की स्वास्थ्य सुविधाएँ (सबसे ज्यादा कुपोषित बच्चे भारत में डब्ल्यूएचओ) इत्यादि।
इसके साथ ऐसी अन्य अनगिनत और चुनौतियाँ है जिनका समाधान किये बिना हम न्यू इंडिया की संकल्पना को मूर्त रूप नहीं दे सकते या उनका सामना न्यू इंडिया को करना पड़ेगा। जैसे भारत के आंतरिक व बाह्य क्षेत्र में व्याप्त अशांति चाहे वह कश्मीर में अलगाववाद, आतंकवाद की समस्या हो या भारत के आंतरिक क्षेत्रों में लगभग 200 ज़िलों में फैला नक्सलवाद। बढ़ती असहिष्णुता (कलबुर्गी, दाभोलकर व पंसारे की हत्या), गाँव और शहरों के बीच विकास का असंतुलित स्तर जिससे बढ़ता प्रवसन तथा उसके कारण नगरीय जीवन तथा नगरों पर बढ़ता दबाव, बढ़ते स्लम, कृषि का पिछड़पान जिससे बढ़ती किसानों की आत्महत्याएँ इत्यादि। इन सारी चुनौतियों को अनदेखा कर हम एक न्यू इंडिया का निर्माण कैसे कर सकते हैं।
लेकिन ऐसा भी नहीं है कि किसी काम में अगर बहुत सारी चुनौतियाँ हों तो उसे किया नहीं जा सकता, दुनिया में कोई भी काम असंभव नहीं है। बस लगन, मेहनत और ईमानदारी से अगर सही दिशा में नियोजित तरीके से प्रयास किया जाए तो हम किसी भी लक्ष्य को प्राप्त कर सकते हैं। इसलिये कहा जाता है कि-
“कौन कहता है कि आसमान में छेद नहीं हो सकता,
अरे एक पत्थर तो तबीयत से उछालो यारो।”
आज भारत के साथ बहुत सारी सकारात्मक परिस्थितियाँ हैं। जो न्यू इंडिया की संकल्पना को साकार करवा सकती हैं। जैसे- मार्क्स के अनुसार आर्थिक ढाँचा ही मूल ढांचा होता है जो अन्य सामाजिक-आर्थिक-राजनीतिक-सांस्कृतिक ढाँचे को आकार प्रदान करता है। अतः यदि आर्थिक स्थिति अच्छी है तो इसकी पर्याप्त संभावना है कि आप अन्य परिस्थितियों को अपने अनुसार अनुकूलित कर सकते हैं। आज भारत विश्व की सर्वाधिक तेज़ी से बढ़ती अर्थव्यवस्थाओं में से एक है जिसकी जीडीपी 2.45 ट्रिलियन डॉलर है और नीति आयोग के अनुसार यह अगले 15 वर्षों में 7.5 ट्रिलियन डॉलर के आसपास हो जाएगी तथा केंद्र व राज्यों का व्यय वर्तमान के 38 लाख करोड़ से 92 लाख करोड़ बढ़कर 130 लाख करोड़ हो जाएगा। अतः न्यू इंडिया का सपना साकार होना ज्यादा मुश्किल नहीं होगा। किसी भी देश के लिये विकास का इंजन उसके उद्योग-धंधे अर्थात् विनिर्माण क्षेत्र होता है। आज भारत विनिर्माण के क्षेत्र में मेक इन इंडिया जैसे इनिशिएटिव के माध्यम से बूमिंग की स्थिति प्राप्त कर रहा है जो न केवल अत्यधिक मात्रा में रोज़गार सृजन कर रहा है। बल्कि अधिकांश देशों की समस्या बाज़ार की अनुपलब्धता है जबकि भारत में एक बहुत बड़ा मध्यवर्ग इन वस्तुओं के बाज़ार के रूप में भारत के आर्थिक विकास हेतु आधार प्रदान कर रहा है। इसी को ध्यान में रखते हुए जापानी आर्थिक विश्लेषण ने कहा है कि-
'This is the begining of a big bang for India'
न्यू इंडिया की संभावना को जो अन्य कारक तार्किक रूप से उचित बनाता है वह है भारत के पास उपलब्ध जनांकिकीय लाभ। आज भारत सबसे युवा देश है, उसकी जनसंख्या की औसत आयु 28 वर्ष है, जबकि इसकी 62 प्रतिशत आबादी कार्यबल में शामिल है जो भारत को एक नई ऊँचाई पर ले जाने को तैयार है। आज विभिन्न देशों, जैसे चीन व यूरोपीय देशों में वहाँ के लोगों की बढ़ती आयु व महँगा श्रम एक महत्त्वपूर्ण समस्या बन रही है। अतः कंपनियाँ भारत जैसे सस्ते श्रम प्रधान देशों की तरफ रुख कर रही हैं, जबकि भारत सरकार विभिन्न योजनाओं, जैसे स्किल इंडिया, उस्ताद आदि के माध्यम से उन्हें प्रशिक्षित कर इस अवसर का लाभ उठाने हेतु तैयार कर रही है जो न्यू इंडिया की बेरोज़गारी की समस्या के समाधान में मददगार होगा।
भारत की जीडीपी में सेवा क्षेत्र का सबसे ज्यादा योगदान जो एक सकारात्मक संकेत है क्योंकि इससे भारत को बहुमूल्य विदेशी मुद्रा प्राप्त होती है। भारत में बड़ी संख्या में शिक्षित अंग्रेज़ी बोलने वाले युवा केपीओ, BPO के माध्यम से न केवल स्वयं रोज़गार प्राप्त कर रहे हैं बल्कि भारत को एक आई टी हब के रूप में विश्व के सामने प्रस्तुत कर रहे हैं।
जहाँ तक शिक्षा की बात है भारत में प्राथमिक स्तर पर तो शत-प्रतिशत नामांकन दर हासिल कर लि है, साथ ही उच्च स्तर पर विभिन्न व्यावसायिक पाठ्यक्रमों के माध्यम से शिक्षित व प्रशिक्षित मानव संसाधन तैयार कर रहा है। जो न्यू इंडिया में उच्च जीवनस्तर के साथ गौरवपूर्ण जीवन जी रहे होंगे। नीति आयोग के अनुसार अगले 15 वर्षों में प्रति व्यक्ति आय जो वर्तमान में एक लाख के आसपास है में दो लाख की वृद्धि होकर यह 3 लाख तक पहुँच जाएगी जो देश से गरीबी खत्म करने में सबसे महत्त्वपूर्ण कारक होगा।
इसके अलावा, आज विभिन्न योजनाओं के माध्यम से भारत सरकार देश के लोगों को बिजली कनेक्शन (दीन दयाल उपाध्याय ग्राम ज्योति योजना), गैस कनेक्शन (उज्ज्वला योजना) तथा भारत निर्माण के माध्यम से आधारभूत संरचना के विकास की दिशा में तेज़ी से अग्रसर है। डिजिटल इंडिया तथा ई गवर्नेंस के माध्यम से लोगों को इंटरनेट कनेक्शन प्रदान किये जा रहे हैं तथा सरकारी मशीनरी और लोगों के बीच इंटरेक्शन कम करके भ्रष्टाचार को मिटाने की कोशिश की जा रही है। इसी प्रकार स्वच्छ भारत अभियान के माध्यम से शहर और गाँव को स्वच्छ बनाने के लिये जन जागरूकता अभियान चलाए जा रहे हैं तथा पर्यावरण प्रदूषण कम करने के लिये नवीकरणीय ऊर्जा को महत्त्व दिया जा रहा है।
अतः न्यू इंडिया के सामने चुनौतियाँ भी कम गंभीर नहीं हैं लेकिन शुक्र है कि इस बार यह मात्र एक कोरी कल्पना ही नहीं बल्कि तार्किक व संगत परिस्थितियों पर आधारित सुविचारित संकल्पना है जिस पर विभिन्न योजनाओं, परियोजनाओं, जैसे समावेशी विकास के लिये जन धन योजना, मानव संसाधन को शिक्षित करने के लिये स्किल इंडिया मिशन, खाद्य सुरक्षा कुपोषण की समस्या के समाधान हेतु खाद्य सुरक्षा मिशन तथा एक आकर्षक व्यापारिक व व्यावसायिक माहौल बनाने के लिये जीएसटी तथा भ्रष्टाचार को कम करने के लिये ई गवर्नेंस व डिजिटल इंडिया जैसी योजनाओं के माध्यम से न्यू इंडिया के लिये प्रयास शुरू कर दिया गया है।
अतः उपरोक्त विश्लेषण के आधार पर इसमें कोई शक नहीं है कि न्यू इंडिया की संकल्पना वास्तव में धरती पर स्वर्ग बनाने की संकल्पना है, लेकिन वास्तव में इसे मूर्त रूप देना भी किसी मांझी के काम से कम चुनौतीपूर्ण नहीं है लेकिन शुक्र है कि मांझी अपने काम में सफल हुआ था और हम भी इसमें अवश्य सफल होंगे। और अंत में कुमार विनोद की इन पक्तियों के साथ अपनी लेखनी को विराम दूंगी-
“मौज दरिया की मेरे हक़ में नहीं तो क्या हुआ।
कश्तियाँ भी पाव उल्टे चल पड़ी तो क्या हुआ।
देखिये उसको तनकर खड़ा है आज भी,
आंधियों का काम है चलना चलीं तो क्या हुआ।
कम-से-कम तुम तो करो खुद पर यकीं चलीं ए दोस्तों,
गर जमाने को नहीं तुम पर यकीन क्यों क्या हुआ”।