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पक्षपातपूर्ण मीडिया भारत के लोकतंत्र के समक्ष एक वास्तविक खतरा है

  • 30 Mar 2024
  • 14 min read

मीडिया पर जिसका नियंत्रण होता है, वह विचारों को नियंत्रित करता है

- जिम मॉरिसन

मीडिया, सूचना प्रदान कर, जनमत को आकार देकर और सत्तारूढ़ व्यक्तियों का उत्तरदायित्व सुनिश्चित कर एक लोकतंत्रात्मक परिवेश में अहम भूमिका निभाता है। तथापि भारत में पक्षपातपूर्ण मीडिया का उदय इसकी लोकतंत्रात्मक स्थिति के समक्ष एक गंभीर खतरा है। हाल के वर्षों में, भारत के मीडिया की पक्षपातपूर्ण रिपोर्टिंग, सनसनीपरकता और निष्पक्षता के अभाव के कारण आलोचना की गई है।

कार्यपालिका, विधायिका और न्यायपालिका के साथ मीडिया लोकतंत्र के चतुर्थ स्तंभ के रूप में कार्य करता है। इसका प्राथमिक कार्य नागरिकों को सूचित करना, वाद-विवाद की सुविधा प्रदान करना तथा सरकार व अन्य शक्तिशाली संस्थाओं के संबंध में हितप्रहरी की भूमिका निभाना है। स्वतंत्रता पश्चात् से भारत में एक विविध और जीवंत मीडिया परिदृश्य उभरा है, जिसमें प्रिंट, प्रसारण और डिजिटल प्लेटफॉर्म शामिल हैं। तथापि पक्षपातपूर्ण मीडिया आउटलेट्स की वृद्धि से सूचना और मतप्रचार का भेद करना कठिन हो गया है, जिससे लोकतंत्रात्मक स्थिति को अक्षुण्ण रखना कठिन हो गया है।

भारत में पक्षपातपूर्ण मीडिया आउटलेट प्रायः खबरों में तथ्यपरकता की अपेक्षा उसे सनसनीखेज़ बनाने को  प्राथमिकता देते हैं और दर्शकों या पाठकों को आकर्षित करने के लिये प्रोत्तेजक व्याख्यान और एक विभाजनकारी आख्यात्मक शैली का प्रयोग करते हैं। इस तरह की सनसनीखेज़ खबरें गलत सूचनाओं के प्रसार को बढ़ावा देती हैं और समाज को राजनीतिक, धार्मिक और नस्लीय आधार पर विभाजित करती हैं। इसके अतिरिक्त, पक्षपातपूर्ण रिपोर्टिंग जनमत को प्रभावित कर सकती है, चुनावी परिणामों को प्रभावित कर सकती है और लोकतांत्रिक संस्थाओं की विश्वसनीयता को कम कर सकती है।

प्रेस की स्वतंत्रता के समक्ष विभिन्न चुनौतियों से भारत में मीडिया के पक्षपातपूर्ण होने के मामले अधिक बढ़ गए हैं, जिसमें राजनीतिक दबाव, कॉर्पोरेट प्रभाव और विधिक कार्यवाही की धमकी शामिल हैं। मीडिया का स्वामित्व  निश्चित समूहों के पास होने से दृष्टिकोणों की विविधता सीमित होती है और पत्रकार आलोचना से बचने और दबाव के कारण स्वयं से ही अपनी रिपोर्टिंग को सेंसर (सेल्फ-सेंसरशिप) करते हैं। ये चुनौतियाँ मीडिया की अपने लोकतांत्रिक जनादेश को पूरा करने और सत्ता को जवाबदेह ठहराने की क्षमता को बाधित करती हैं।

भारत में मीडिया आउटलेट्स पर राजनीतिक दबाव एक सामान्य बात है, जिसमें सरकारें प्रायः रिपोर्टिंग को नियंत्रित करने और विरोधी मतों को दबाने का प्रयास करती हैं। सत्य को छिपाने और अफवाहें एवं गलत सूचना प्रसारित करने हेतु राजनीतिक दल मीडिया आउटलेट्स को विज्ञापन का प्रलोभन देते हैं।

कॉर्पोरेट संस्थाओं का प्रायः मीडिया संगठनों पर महत्त्वपूर्ण प्रभाव होता है क्योंकि इनके पास इन संगठनों का स्वामित्व होता है अथवा इनके विज्ञापन राजस्व में प्रत्यक्ष भूमिका होती है। इसका एक प्रमुख उदाहरण रिलायंस ग्रुप है, जो भारत के सबसे बड़े समूहों में से एक है, जिसकी मीडिया सहित विभिन्न क्षेत्रों में भागीदारी है। एक निश्चित मीडिया प्लेटफॉर्म पर रिलायंस के स्वामित्व, जो कई समाचार चैनलों और डिजिटल मीडिया प्लेटफॉर्म को नियंत्रित करता है, ने संपादकीय स्वतंत्रता और पूर्वाग्रह के संबंध में चिंताएँ बढ़ा दी हैं। आलोचकों का तर्क है कि रिलायंस के व्यावसायिक हित अपने कॉर्पोरेट एजेंडे की पूर्ति के लिये मीडिया कवरेज को प्रभावित कर सकते हैं, जिससे पत्रकारिता की निष्पक्षता कम हो सकती है।

पक्षपातपूर्ण मीडिया का भारत के लोकतंत्र पर दूरगामी और बहुआयामी परिणाम हैं। यह सूचना के निष्पक्ष स्रोत के रूप में मीडिया में जनता के विश्वास को समाप्त करता है, जिससे लोकतांत्रिक संस्थाओं के प्रति व्यापक निराशा और उदासीनता जनित होती है। यह हाशियाई समुदायों के प्रति असहिष्णुता और मताग्रह को बढ़ावा देकर भारतीय समाज के बहुलवादी परिप्रेक्ष्य को प्रभावित करता है। जनमत को प्रभावित करके और मतदान व्यवहार को प्रभावित करके, यह चुनाव प्रक्रियाओं की अखंडता को कमज़ोर करता है। सामान्यतः पक्षपातपूर्ण मीडिया से लोकतांत्रिक मानदंडों और मूल्यों का ह्रास होता है, जो भविष्य में भारत के लोकतंत्र लिये एक गंभीर खतरा उत्पन्न करता है।

कोविड-19 महामारी के दौरान, होने वाली मृत्यु की संख्या और सरकार की प्रतिक्रियाओं के बारे में भ्रामक सूचना ने स्थिति को और संकटपूर्ण बनाया। आलोचनात्मक ट्वीट्स पर ट्विटर की सेंसरशिप और सरकार समर्थक चैनलों द्वारा ऑक्सीजन की कमी के लिये किसानों के विरोध प्रदर्शन को दोषी ठहरा कर तथ्यों को तोड़-मरोड़कर कर पेश किया गया जिससे मीडिया पर जन विश्वास प्रभावित हुआ। इससे निष्पक्ष रूप से रिपोर्ट करने और सत्तारूढ़ व्यक्तियों को जवाबदेह ठहराने की उनकी क्षमता प्रभावित हुई। भ्रष्टाचार को उजागर करने वाले या राजनीतिक नेताओं की आलोचना करने वाले पत्रकारों पर होने वाले हमले प्रेस की स्वतंत्रता और लोकतांत्रिक कार्य पद्धति के लिये खतरा हैं।

शिक्षाविद और जलवायु संबंधी कार्यों के लिये प्रसिद्ध सक्रिय कार्यकर्ता सोनम वांगचुक ने हाल ही में लेह, लद्दाख में अपना 21 दिवसीय जलवायु अनशन समाप्त किया। संबद्ध क्षेत्र को प्रभावित करने वाले महत्त्वपूर्ण मुद्दों की ओर ध्यान आकर्षित करने हेतु उन्होंने इस अवधि के दौरान केवल जल और नमक ग्रहण किया।

वांगचुक का अनशन एक प्रभावशाली कदम था, जिसमें लद्दाख की सुभेद्य पारिस्थितिकी और मूल संस्कृति की रक्षा करने की आवश्यकता पर ज़ोर दिया गया। उन्होंने लद्दाख की चिंताओं का समाधान करने हेतु चरित्र और दूरदर्शिता के महत्त्व पर ज़ोर दिया। वांगचुक के अनशन का लद्दाख के विभिन्न सामाजिक-राजनीतिक निकायों ने समर्थन किया, जिसमें कारगिल डेमोक्रेटिक अलायंस (KDA) भी शामिल था। सामूहिक उद्देश्यों की पूर्ति के लिये KDA के सदस्य भी भूख हड़ताल में उनके साथ शामिल हुए किंतु बड़े समाचार चैनलों और मीडिया हाउस ने इस घटना को नज़रअंदाज कर दिया और उचित कवरेज नहीं दी।

इसके अतिरिक्त, सुशांत सिंह राजपूत का मामला मीडिया में सनसनी का विषय रहा था, जिसमें इस मामले को सनसनीखेज़ बनाकर अन्य अधिक गंभीर मामलों की उपेक्षा की गई। सुशांत सिंह राजपूत की मृत्यु पर मीडिया के अत्यधिक कवरेज ने एक दुखद आत्महत्या को एक निरंतर जारी जाँच में बदल दिया, जिसे दिन प्रति दिन लाइव स्ट्रीम किया गया।

वास्तविक घटना पर ध्यान केंद्रित करने के स्थान पर, इस मामले में चर्चा का विषय एक अभिनेत्री बनी, जिसे दुष्ट षड्यंत्रकारी और सिनेमा जगत की आदर्श खलनायिका के रूप में चित्रित किया गया।

निरंतर जाँच के बाद अभिनेत्री को गिरफ्तार किया गया जो मीडिया के अभिकल्पित वक्तव्य के आदी व्यक्तियों के लिये उत्साह का क्षण था। मीडिया की गपशप में प्रायः अंतर्निहित स्त्री-द्वेष परिलक्षित होता है। इस मामले से निजी-सार्वजनिक जीवन का अंतर न के बराबर हो गया। एक ओर मीडिया अभिनेत्री का पीछा करने और इस मामले को सनसनीखेज़ बनाने में संलग्न थी तो वहीं देश के अन्य महत्त्वपूर्ण मुद्दों की उपेक्षा हुई। बॉम्बे हाई कोर्ट ने मीडिया द्वारा आपराधिक मामले की निष्पक्ष जाँच को हुए नुकसान को स्वीकार किया। मीडिया का प्राथमिक लक्ष्य जनता को सूचित करना होना चाहिये, न कि जनता की राय को प्रभावित करना।।

राजनीतिक दलों से पैसे लेकर अनुकूल खबरें प्रकाशित करने या नकारात्मक खबरों को छिपाने की प्रथा, जिसे प्रायः "पेड न्यूज़" कहते हैं, पत्रकारिता की अखंडता को प्रभावित करती है और इससे जनता का मीडिया पर विश्वास कम होता है। यह घटना चुनाव अभियानों के दौरान विशेष रूप से प्रचलित है जिसमें राजनीतिक दल जनमत को प्रभावित करने और अनुचित उद्देश्यों की पूर्ति करने का प्रयास करते हैं। पेड न्यूज़ का एक प्रमुख उदाहरण भारत में वर्ष 2014 के आम चुनावों के दौरान सामने आया।

मीडिया ने CAA-NRC के बारे में एकपक्षीय खबरों का प्रसारण किया और अल्पसंख्यक वर्गों को भ्रमित किया, जिसके कारण देश में व्यापक विरोध प्रदर्शन हुआ। CAA को लेकर आम जनमानस की धारणा को आकार देने में मीडिया ने अहम भूमिका निभाई। कुछ चैनलों ने इस मुद्दे के व्यापक प्रभावों को नज़रअंदाज़ कर केवल चयनित पहलुओं पर ध्यान केंद्रित करते हुए इस मुद्दे को सनसनीखेज़ बनाया। मीडिया द्वारा ट्रायल के दृष्टिकोण ने समाज के भीतर अलगाव और गलत सूचना को बढ़ावा दिया। इसमें सोशल मीडिया की भी भूमिका रही जहाँ तथ्य-जाँचकर्त्ताओं ने गलत सूचना को उचित दर्शाने का प्रयास किया।

पक्षपातपूर्ण मीडिया के मुद्दे का समाधान करने के लिये नीति निर्माताओं, मीडिया पेशेवरों, नागरिक समाज संगठनों और आम जनता सहित अन्य हितधारकों के सम्मिलित कार्रवाई की आवश्यकता है। नैतिक उल्लंघनों और गलत सूचना के प्रसारण की दशा में मीडिया आउटलेट्स का उतरदायित्व सुनिश्चित करने हेतु कड़े नियमों तथा तंत्रों की आवश्यकता है। नागरिकों को आलोचनात्मक चिंतन का महत्त्व समझाने और सूचना के विश्वसनीय स्रोतों का बोध होने के संबंध में शिक्षित करने के लिये मीडिया साक्षरता कार्यक्रम क्रियान्वित किये जाने चाहिये। स्वतंत्र मीडिया हितप्रहरियों और लोकपालों को मीडिया सामग्री की निगरानी करने तथा जनता की शिकायतों का समाधान करने का अधिकार दिया जाना चाहिये। इसके अतिरिक्त, सामुदायिक मीडिया और लोक प्रसारण जैसी पहलों के माध्यम से मीडिया उद्योग में विविधता और बहुलता को बढ़ावा देने से पक्षपातपूर्ण मीडिया समूहों के प्रभाव को कम करना सरल हो सकता है।

पक्षपातपूर्ण मीडिया पारदर्शिता, उत्तरदायित्व और बहुलवाद के सिद्धांतों को क्षीण कर भारत के लोकतंत्र के लिये गंभीर खतरा उत्पन्न करता है। मीडिया द्वारा खबरों की अतिरंजना करने, गलत सूचना का प्रसारण करने और दुष्प्रचार करने से लोकतंत्रात्मक पद्धतियों के प्रभावित होने और सामाज में विभाजन होने का खतरा है। इसलिये पक्षपातपूर्ण मीडिया के मूल कारणों का समाधान करना और प्रेस की स्वतंत्रता तथा मीडिया की निष्पक्षता की रक्षा के लिये सुधार करना अत्यावश्यक है। पत्रकारिता नैतिकता के उच्चतम मानकों को बनाए रखने और मीडिया बहुलवाद को बढ़ावा देने से ही भारत अपनी लोकतांत्रिक आकांक्षाओं को साकार कर सकता है और नागरिकों के अधिकारों की रक्षा कर सकता है।

अल्पसंख्यक के रूप में आपकी स्थिति चाहे कुछ भी हो, सत्य सदैव सत्य रहेगा।

—महात्मा गांधी

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