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निबंध

जलवायु परिवर्तन के प्रति सुनम्य भारत हेतु वैकल्पिक तकनीकें

  • 15 Apr 2024
  • 15 min read

 "विश्व एक ऐसी दिशा में अग्रसर हो रहा है जहाँ जलवायु परिवर्तन की प्रवृत्ति अपरिवर्तनीय हो सकती है। यदि ऐसा होता है तो यह वर्तमान एवं भावी पीढ़ियों को स्वस्थ और सतत् ग्रह के अधिकार से वंचित कर सकता है और यह संपूर्ण मानव जाति के हित में हानिकर होगा।"

- कोफी अन्नान

जलवायु परिवर्तन के प्रभावों का सामना करने, अनुकूलन करने और उससे उबरने में समुदायों, पारिस्थितिकी तंत्रों, बुनियादी ढाँचे और बड़े पैमाने पर समाज जैसी विविध प्रणालियों की सामूहिक क्षमता को जलवायु परिवर्तन के प्रति आघात सहनीयता कहते हैं। इसमें जलवायु दशाओं में बदलाव के कारण होने वाले तनाव और दबाव को बिना किसी महत्वपूर्ण व्यवधान या क्षति के झेलने की क्षमता शामिल है, जिससे इन प्रणालियों की चुनौतियों की दशा में भी  कार्यशीलता बनी रहती है।

मूल रूप से, जलवायु परिवर्तन का तात्पर्य दीर्घावधि में ताप और मौसम के प्रतिरूप में होने वाले स्थायी परिवर्तनों से है। यद्यपि ऐतिहासिक दृष्टि से जलवायु परिवर्तन प्राकृतिक कारकों जैसे- सौर सक्रियता में बदलाव अथवा बड़े ज्वालामुखीय उद्गार से प्रभावित हुआ है किंतु 1800 के बाद से जलवायु परिवर्तन का प्रंमुख कारण मानवीय गतिविधियाँ रही हैं। कोयला, तेल और गैस जैसे जीवाश्म ईंधन के दहन से वायुमंडल में विशेष रूप से कार्बन डाइऑक्साइड और मीथेन जैसी ग्रीनहाउस गैसें उत्सर्जित होती हैं। ये गैसें ऊष्मा प्रग्रहित करती हैं, जिससे वैश्विक ताप बढ़ता है।

जलवायु परिवर्तन के प्रति आघात सहनीयता हेतु वैकल्पिक तकनीकों में जलवायु परिवर्तन के प्रभावों का शमन करने और उसके अनुकूल होने के उद्देश्य से समाधानों की एक विस्तृत शृंखला शामिल है। ग्लोबल वार्मिंग के प्रभाव में तीव्रता और विस्तार के साथ जलवायु परिवर्तन का सामना करने की अनिवार्यता और भी स्पष्ट होती जा रही है। इसके प्रभावों की बढ़ती गंभीरता जलवायु परिवर्तन के प्रति आघात सहनीयता को वर्द्धित करने में वैकल्पिक तकनीकों की महत्ता को रेखांकित करती है।

जलवायु परिवर्तन से भारत के लिये गंभीर चुनौतियाँ हो सकती हैं, जिसका प्रभाव कृषि, जल संसाधन, जैवविविधता और मानव स्वास्थ्य पर पड़ता है। आघात सहनीयता में वर्द्धन करने के लिये, भारत को ऐसी नवीन तकनीकों की आवश्यकता है जिससे सतत् विकास को बढ़ावा देते हुए जलवायु जोखिमों का शमन संभव हो। प्रोजेक्ट लाइफस्केप, सरकार और गैर-सरकारी संगठनों का एक सहयोगात्मक प्रयास है, जो वन्यजीव कॉरिडर के पुनरुत्थान पर केंद्रित है। भारत ने अक्षय ऊर्जा क्षमता के विकास में उल्लेखनीय प्रगति की है किंतु अक्षय ऊर्जा का विद्युत् वितरण तंत्र में विस्तार और एकीकरण करने में चुनौतियाँ बनी हुई हैं। फ्लोटिंग सोलर फार्म जैसी नवीन तकनीकों के माध्यम से भूमि की आवश्यकताओं को कम करते हुए ऊर्जा उत्पादन के लिये जल क्षेत्रों का उपयोग किया जा सकता है। इसके अतिरिक्त, ग्रिड-स्केल बैटरी और पम्प्ड हाइड्रो स्टोरेज जैसी ऊर्जा भंडारण तकनीकों में प्रगति से अक्षय ऊर्जा से संबंधित रुकावटों का समाधान किया जा सकता है, जिससे विद्युत की विश्वसनीय आपूर्ति सुनिश्चित होगी जो मानव-वन्यजीव सह-अस्तित्व को बढ़ावा देती है और प्राणिजात समष्टि पर जलवायु परिवर्तन के प्रभाव का शमन करती है।

बंगलुरु में 100 मेगावाट की क्षमता वाली ग्रिड-स्केल बैटरी स्टोरेज परियोजनाएँ और तमिलनाडु में 1500 मेगावाट की क्षमता वाली कदमपराई पम्प्ड स्टोरेज परियोजना जैसी पम्प्ड हाइड्रो स्टोरेज सुविधाएँ अक्षय ऊर्जा स्रोतों की रुकावट को दूर करने और निरंतर बिजली आपूर्ति सुनिश्चित करने के लिये  विकसित की जा रही हैं। ये परियोजनाएँ विद्युत् वितरण तंत्र में अधिक अक्षय ऊर्जा को एकीकृत करने और विद्युत् की विश्वसनीय आपूर्ति सुनिश्चित करने के लिये महत्त्वपूर्ण हैं।

भारत में जल की कमी एक गंभीर समस्या है, जो जलवायु परिवर्तन के कारण होने वाले सूखे और वर्षा के अनियमित प्रतिरूप के कारण और भी गंभीर हो गई है। ड्रिप सिंचाई और परिशुद्ध कृषि जैसी वैकल्पिक तकनीकें कृषि में जल दक्षता को बढ़ा सकती हैं, जिससे जल की खपत कम हो सकती है और फसल की उपज में वृद्धि हो सकती है। इसके अतिरिक्त, अपशिष्ट जल उपचार की विकेंद्रीकृत प्रणाली अपशिष्ट जल प्रबंधन और सिंचाई एवं पीने से इतर जल के अन्य उपयोगों के लिये जल को पुनर्चक्रित करने के हेतु एक स्थायी समाधान प्रदान करती है। भारत में ड्रिप सिंचाई जल-बचत तकनीक का चलन बढ़ रहा है। वास्तव में, महाराष्ट्र में तरबूज की कृषि करने वाले किसानों ने ड्रिप सिंचाई के माध्यम से उत्पादन स्तर में वृद्धि करते हुए जल के उपयोग में 70% की कमी की। यह इस पद्धति की महत्त्वपूर्ण जल संरक्षण क्षमता को दर्शाता है।

परिशुद्ध कृषि दृष्टिकोण में लक्षित संसाधन उपयोग के लिये डेटा और प्रौद्योगिकी का उपयोग शामिल है। गुजरात के "स्मार्ट सिंचाई मिशन" जैसी पहल, जिसमें सिंचाई कार्यक्रमों को अनुकूलित करने के लिये सेंसर और रियल टाइम डेटा का उपयोग किया जाता है, किसानों को अधिक सटीक निर्णय लेने और जल के अपव्यय को कम करने में मदद कर रही है।

भारत में खाद्य संरक्षा के लिये जलवायु-अनुकूल कृषि अनिवार्य है। जैविक खेती, कृषि वानिकी और पर्माकल्चर/सतत कृषि सहित कृषि-पारिस्थितिकी पद्धतियाँ जैव विविधता, मृदा स्वास्थ्य एवं चरम मौसमी घटनाओं के प्रति अनुकूलता को बढ़ावा देती हैं। इसके अतिरिक्त, ड्रोन, IoT सेंसर और पूर्वानुमानित विश्लेषण जैसी सटीक कृषि प्रौद्योगिकियाँ डेटा-संचालित निर्णय लेने, संसाधन उपयोग को अनुकूलित करने तथा पर्यावरणीय प्रभाव को कम करने में सक्षम बनाती हैं।

भारत का तेज़ी से शहरीकरण बुनियादी अवसंरचना पर दबाव, वायु प्रदूषण और जलवायु-संबंधी आपदाओं के प्रति सुभेद्यता के मामले में चुनौतियाँ पेश करता है। निष्क्रिय डिज़ाइन रणनीतियाँ और ऊर्जा-कुशल सामग्री जैसी हरित भवन प्रौद्योगिकियाँ ऊर्जा की खपत को कम करते हुए भवन-आघातसहनीयता को बढ़ाती हैं। इसके अतिरिक्त, शहरी हरित स्थान और पारगम्य फुटपाथ जैसे प्रकृति-आधारित समाधान नगरीय ऊष्मा द्वीप प्रभावों को कम करते हैं तथा बाढ़-आघातसहनीयता को बढ़ाते हैं, जिससे सतत् शहरी विकास को बढ़ावा मिलता है।

आंतरिक दहन इंजन वाले परंपरागत वाहनों द्वारा उत्पन्न पर्यावरणीय चुनौतियों के लिये इलेक्ट्रिक वाहन (Electric vehicles- EV) एक आशाजनक समाधान के रूप में उभरे हैं। विद्युत ऊर्जा को अपने प्राथमिक स्रोत के रूप में प्रयोग करके, EV कार्बन डाइऑक्साइड (CO2), नाइट्रोजन ऑक्साइड (NOx) एवं पार्टिकुलेट मैटर (कणिका पदार्थ), जो वायु प्रदूषण और जलवायु परिवर्तन में प्रमुख योगदानकर्त्ता हैं, के हानिकारक उत्सर्जन को बहुत हद तक कम करते हैं।

EV के प्रमुख लाभों में से एक शहरी क्षेत्रों में वायु गुणवत्ता में सुधार करने की उनकी क्षमता है। पारंपरिक वाहनों के विपरीत जो सीधे अपने टेलपाइप से प्रदूषक उत्सर्जित करते हैं, EV शून्य टेलपाइप उत्सर्जन उत्पन्न करते हैं। इसका अर्थ है कि वे संचालन के दौरान वायु में हानिकारक प्रदूषक मुक्त नहीं करते हैं, जिसके परिणामस्वरूप मनुष्य और पारिस्थितिकी तंत्र दोनों के लिये स्वच्छ एवं स्वस्थ वातावरण बनता है।

इसके अतिरिक्त, EV के पर्यावरणीय लाभों को सौर, पवन या जलविद्युत जैसे नवीकरणीय ऊर्जा स्रोतों से चार्ज करके और भी बढ़ाया जा सकता है। विद्युत ऊर्जा के स्वच्छ व नवीकरणीय स्रोतों का उपयोग करके, EV के उपयोगकर्त्ता अपने कार्बन फूटप्रिंट को बहुत कम कर सकते हैं और अपने वाहनों से जुड़े समग्र पर्यावरणीय प्रभाव को कम कर सकते हैं। EV और नवीकरणीय ऊर्जा के बीच यह संतुलन अधिक संधारणीय एवं कम कार्बन परिवहन प्रणाली की ओर संक्रमण में योगदान देता है।

वैकल्पिक प्रौद्योगिकियों के प्रभावी क्रियान्वयन के लिये सहायक नीतिगत फ्रेमवर्क और संस्थागत क्षमता निर्माण की आवश्यकता होती है। जलवायु परिवर्तन पर भारत की राष्ट्रीय कार्य योजना जलवायु तन्यकता के लिये एक रोडमैप प्रदान करती है, जिसमें प्रौद्योगिकी विकास और प्रसार पर बल दिया गया है। इसके अतिरिक्त, नवाचार को बढ़ावा देने और वैकल्पिक प्रौद्योगिकियों को बढ़ाने के लिय सरकारी एजेंसियों, अनुसंधान संस्थानों एवं निजी क्षेत्रों के बीच सहयोग आवश्यक है।

अपनी क्षमता के बावजूद, वैकल्पिक प्रौद्योगिकियों को उच्च अग्रिम लागत, तकनीकी जटिलता और संस्थागत निष्क्रियता जैसी बाधाओं का सामना करना पड़ता है। इन चुनौतियों का समाधान करने के लिये अनुसंधान एवं विकास, क्षमता निर्माण और सार्वजनिक-निजी भागीदारी को बढ़ावा देने के लिये ठोस प्रयासों की आवश्यकता है। इसके अतिरिक्त, अंतर्राष्ट्रीय सहयोग और वित्तपोषण तंत्र का लाभ उठाने से प्रौद्योगिकी अंतरण एवं अभिग्रहण में तेज़ी आ सकती है, जिससे विकास के अवसर खुल सकते हैं।

गुजरात सोलर पार्क बड़े पैमाने पर सौर ऊर्जा परिनियोजन की व्यवहार्यता को प्रदर्शित करता है, जो लाखों लोगों को स्वच्छ ऊर्जा तक पहुँच प्रदान करता है। इसी तरह, सिक्किम ऑर्गेनिक मिशन कृषि तन्यकता को बढ़ाने और पारिस्थितिक स्थिरता को बढ़ावा देने में जैविक खेती की परिवर्तनकारी क्षमता को प्रदर्शित करता है। केरल का कुट्टानाड बैकवाटर एक ऐसा सरल समाधान है, जिसके तहत भूमि पर स्थान घेरे बिना सौर ऊर्जा उत्पादन के लिये अप्रयुक्त जल निकायों का उपयोग किया जाता है। 120 मेगावाट का यह फार्म भारत में सबसे बड़ा संचालित फ्लोटिंग सोलर प्रोजेक्ट है, जो इस तकनीक की क्षमता को दर्शाता है। 

भारत में जलवायु तन्यकता बनाने के लिये ऐसे अभिनव समाधानों की आवश्यकता है जो आर्थिक विकास का पर्यावरणीय स्थिरता के साथ सामंजस्य स्थापित करें। वैकल्पिक प्रौद्योगिकियाँ जलवायु-अनुकूल विकास, नवीकरणीय ऊर्जा का दोहन, कुशल जल प्रबंधन, संधारणीय कृषि और आघातसह शहरी बुनियादी अवसंरचना की ओर एक मार्ग प्रदान करती हैं। हालाँकि, उनकी पूरी क्षमता को साकार करने के लिये सहायक नीतियों, संस्थागत क्षमता निर्माण और हितधारक सहयोग की आवश्यकता होती है। वैकल्पिक प्रौद्योगिकियों को अपनाकर, भारत समावेशी और सतत् विकास को बढ़ावा देते हुए जलवायु परिवर्तन की चुनौतियों का सामना कर सकता है।

 सरकारी एजेंसियों, शोध संस्थानों, निजी क्षेत्रों और नागरिक समाज संगठनों को नवाचार को बढ़ावा देने तथा वैकल्पिक प्रौद्योगिकियों के विस्तार को सुविधाजनक बनाने के लिये मिलकर काम करना चाहिये। संसाधनों, विशेषज्ञता और ज्ञान को संगठित करके ये सहयोगी प्रयास तकनीकी अभिग्रहण की गति को तेज़ कर सकते हैं और जलवायु तन्यकता की दिशा में सार्थक प्रगति को आगे बढ़ा सकते हैं।

“Climate change is the single greatest threat to a sustainable future, but, at the same time, addressing the climate challenge presents a golden opportunity to promote prosperity, security and a brighter future for all.” 

अर्थात् 

“जलवायु परिवर्तन एक संधारणीय भविष्य के लिये सबसे बड़ा खतरा है, लेकिन साथ ही, जलवायु चुनौती से निपटना सभी के लिये समृद्धि, सुरक्षा और उज्जवल भविष्य को बढ़ावा देने का एक सुनहरा अवसर भी प्रस्तुत करता है।”

— बान की मून

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