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मेन्स प्रैक्टिस प्रश्न

  • प्रश्न :

    उत्तराखंड न्यायालय द्वारा गंगा और यमुना नदियों को ‘जीवित इकाई’ (living entities) का दर्जा दिया गया। न्यायालय के इस फैसले के प्रभाव एवं इसे लागू करने के समक्ष आने वाली चुनौतियों का विश्लेषण करें।

    26 Jun, 2017 सामान्य अध्ययन पेपर 3 पर्यावरण

    उत्तर :

    उत्तराखंड न्यायालय ने गंगा और यमुना नदियों के संरक्षण के लिये इन्हें कानूनी व्यक्तियों का दर्जा रखने वाली जीवित संस्थाओं का दर्जा दिया गया। न्यायालय के अनुसार ये नदियाँ प्राचीनकाल से ही लोगों के भौतिक एवं आध्यात्मिक जीवन का स्रोत है और ये नदियाँ पर्वत से समुद्र तक समुदायों के जीवन के लिये आवश्यक है।

    फैसले का प्रभाव

    • इस फैसले के पश्चात ये दोनों नदियाँ भारतीय संविधान द्वारा प्रदत्त ‘जीवन के अधिकार’ (Right to Life) के लिये दावा कर सकती है और इसे सैद्धांतिक रूप से लागू भी करवा सकती है। इस प्रकार, अब इन नदियों को प्रदूषित नहीं किया जा सकता।
    • अब गंगा, यमुना और इनकी सहायक नदियों को एक व्यक्ति के रूप में समान अधिकार प्राप्त हो गया है अतः इन्हें कानून की नजर में ‘न्यायिक व्यक्ति’ का दर्जा मिल गया है।
    • इस फैसले के कारण नमामि गंगे कार्यक्रम के निदेशक, उत्तराखंड के मुख्य सचिव एवं उत्तराखंड के महाधिवक्ता को इन निदयों का संरक्षण घोषित किया गया है। इन अधिकारियों की यह जिम्मेदारी होगी कि यह सुनिश्चित किया जाए कि इन नदियों का दुरूपयोग नहीं किया जाए एवं व्यक्तिगत उपयोग के लिये गलत इस्तेमाल नहीं किया जाए। 

    चुनौतियाँ 

    • नदियों के प्रदूषणकर्ताओं की पहचान एवं रोकथाम अत्यंत दुष्कर कार्य है। स्थानीय निकायों एवं उद्योगों द्वारा प्रदूषण निर्मोचन जैसे बिंदु-स्रोतों एवं किसानों द्वारा खेतों में उर्वरक प्रयोग जैसे गैर-बिंदु स्रोत से नदियों का प्रदूषण बढ़ रहा है। इससे संबंधित डाटा संग्रहण एवं मॉनिटरिंग एक बड़ी चुनौती है।
    • यहाँ यह भी द्वंद्व का विषय है कि औद्योगिक इकाईयों को उचित उपचार के बाद ही नदियों में पानी छोड़ने की अनुमति दी जानी चाहिये या ‘जीरो लिक्विड डिस्चार्ज’ के लिये कदम उठाने चाहिये।
    • स्थानीय निकायों के मामले में नगरपालिका मलजल को नदियों में डालने से रोकना अक्सर मुश्किल होता है। खुले में शौच, अब भी बड़ी चुनौती है, समुचित सीवेज नेटवर्क की अनुपस्थित और गैर-उपचारित मलजल को नदियों में प्रवाहित करना नरीय-प्रदूषण के प्रमुख कारण हैं।
    • नदियों की सफाई के संबंध में केंद्रीय स्तर पर तो तात्परता दिखाई देती है लेकिन राज्यों के स्तर पर राजनीतिक इच्छा शक्ति की काफी कमी है।

    उत्तराखंड न्यायालय का यह फैसला नदियों की स्वच्छता सुनिश्चित कर नदीय-पारिस्थितिकी को जीवंत बनाए रखने के लिये एक महत्त्वपूर्ण कदम है लेकिन इन दिशा में स्थानीय निकायों के साथ-साथ समुदाय की भागीदारी भी आवश्यक है।

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