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मेन्स प्रैक्टिस प्रश्न

  • प्रश्न :

    भारत द्वारा प्रस्तावित ‘अंतर्राष्ट्रीय आतंकवाद पर व्यापक अभिसमय (Comprehensive Convention on International Terrorism: CCIT)’ के प्रमुख उद्देश्यों का उल्लेख करते हुए स्पष्ट करें कि वैश्विक समुदाय द्वारा इसे अपनाने में क्या बाधाएँ आ रही हैं?

    29 Jun, 2017 सामान्य अध्ययन पेपर 2 अंतर्राष्ट्रीय संबंध

    उत्तर :

    अंतर्राष्ट्रीय आतंवाद पर व्यापक अभिसमय (CCIT) का ड्राफ्ट 1996 में भारत द्वारा तैयार किया गया था जो आतंकवाद के खिलाफ व्यापक एवं एकीकृत कानूनी ढाँचा प्रदान करता है। इस अभिसमय केा प्रस्तावित करने के प्रमुख उद्देश्य निम्नलिखित हैं-

    • CCIT एक कानूनी ढाँचा प्रदान करता है जो हस्ताक्षरकर्ता देशों पर यह बाध्यता आरोपित करता है कि वे आतंकवादी संगठनों को कोई वित्तीय सहायता अथवा शरण प्रदान नहीं करेंगे।
    • इसमें प्रावधान है कि आतंकवाद की सार्वभौमिक परिभाषा हो, जिसे संयुक्त राष्ट्र महासभा के सभी सदस्य देश अपने आपराधिक कानून में शामिल करेंगे।
    • सभी देशों द्वारा आतंकवादी संगठनों को प्रतिबंधित किया जाए एवं आतंकी शिविरों को बंद किया जाए।
    • आतंकवादियों पर विशेष कानूनों के तहत मुकदमा चलाया जाए।
    • सीमापार आतंकवाद को संपूर्ण विश्व में प्रत्यर्पण योग्य अपराध (extraditable offence) घोषित किया जाए। 

    हाल ही में संयुक्त राष्ट्र महासभा में अपने भाषण में भारतीय विदेश मंत्री ने CCIT को अंगीकृत करने के लिये वैश्विक समुदाय से अपील की। इस ड्राफ्ट के तैयार होने के 20 वर्षों बाद भी संयुक्त राष्ट्र महासभा द्वारा इसे अंगीकृत नहीं किया गया। इसे अपनाने की राह में आने वाली चुनौतियाँ निम्नलिखित हैं-

    • यद्यपि भारत लंबे समय से आतंकवाद से पीड़ित रहा है लेकिन पश्चिमी देशों ने आतंकवाद को एक वैश्विक खतरे के रूप में 9/11 हमले के पश्चात ही पहचाना।
    • यह अभिसमय सदस्य राष्ट्रों पर इसके प्रावधानों को घरेलू कानूनों में शामिल करने की बाध्यता आरोपित करता है। नीतिगत जटिलताओं के कारण अनेक देश इससे सहमत नहीं हैं।
    • इसे अपनाने से राष्ट्रीय स्वतंत्रता आंदोलन भी आतंकवाद की श्रेणी में आ जाएंगे। इसे इजराइल-फिलिस्तीन विवाद में विशेष संदर्भ में देखा जा रहा है।

    संयुक्त राष्ट्र महासभा को इस अभिसमय के प्रावधानों पर विचार करने के लिये बनी तदर्थ समिति के विश्लेषण के आधार पर असहमति के बिंदुओं पर चर्चा करनी चाहिये एवं उनमें आवश्यक सुधार कर वैश्विक समुदाय में सहमति बनाने का प्रयास करना चाहिये।

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