क्या श्रमिकों के कल्याण के पहलू एवं देश के आर्थिक विकास के पहलू के बीच कोई विरोध हैं? इसका विश्लेषण करते हुए इस विषय में अंतर्राष्ट्रीय रूझानों को स्पष्ट करें।
05 Jul, 2017 सामान्य अध्ययन पेपर 2 राजव्यवस्थादेश के तीव्र आर्थिक विकास के लिये उसकी श्रम संपदा का कुशलतापूर्वक प्रयोग आवश्यक है। साथ ही श्रम नीतियों में सामाजिक आयाम अथवा कल्याण का आयाम भी विद्यमान होना चाहिये।
किंतु, वर्तमान में श्रम बाजार में श्रमिकों के कल्याण एवं देश के आर्थिक विकास को परस्पर विरोधी समझा जाता है। कल्याण और सामाजिक सुरक्षा के पक्षधर श्रमिक संगठन बनाने की आजादी, न्यूनतम रोजगार सुरक्षा के प्रावधान, बेरोजगारी बीमा, प्रशिक्षण की सुविधा आदि के लिये सिफारिश करते हैं। वहीं दूसरी तरफ आर्थिक विकास के पहलू के पक्षधर श्रम बाजार की कुशलता को अधिक महत्त्व देते हैं। उनका तर्क है कि रोजगार सुरक्षा के प्रावधान एवं सरकारी हस्तक्षेप के कारण श्रमिकों की उत्पादकता में कमी आती है जिससे देश का आर्थिक विकास प्रभावित होता है। इससे रोजगार सृजन की दर कम होगी जो दीर्घकाल में श्रमिकों के लिये भी नुकसानदायक होगा।
वास्तव में परस्पर विपरीत दिख रहे ये दोनों पहलू समान रूप से महत्त्वपूर्ण हैं। अतः इन दोनों में से किसी एक को चुनने के बजाय दोनों के मध्य उचित संतुलन बनाना आवश्यक है। अतः अधिकांश देशों ने उन्हीं श्रम नीतियों का अनुसरण किया है जो दोनों अतिवादी स्थितियों के बीच हों। इस मामले में देश के विकास के स्तर पर निर्भर करता है कि वह किसे आर्थिक महत्त्व देगा। जब कोई देश विकसित होता है और वहाँ रोजगार के पर्याप्त मौके होते हैं तो वह आर्थिक कल्याणोन्मुखी हो सकता है क्योंकि इसे बेरोजगारों के एक छोटे से वर्ग का ध्यान रखना होता है। किंतु, औद्योगीकरण के आरंभिक चरण में जब किसी देश का जोर प्रत्यक्ष विदेशी निवेश को आकर्षित करने पर है, तो उन्हें श्रम को कुशल बनाने पर जोर देना पड़ता है। इसलिये उनके द्वारा दक्षता और कुशलता के पहलू पर अधिक जोर दिया जाता है।
इस प्रकार, दक्षता और कल्याण के पहलुओं के मध्य समुचित संतुलन रखकर देश के आर्थिक विकास के साथ-साथ श्रमिक कल्याण को सुनिश्चित किया जा सकता है।