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प्रश्न :
भारत में कृषि सब्सिडी (Agriculture Subsidies) को ‘आवश्यक बुराई’ क्यों माना गया है? स्पष्ट करें।
14 Jul, 2017 सामान्य अध्ययन पेपर 3 अर्थव्यवस्थाउत्तर :
सब्सिडी एक आर्थिक लाभ होता है जो सरकार द्वारा लोगों को प्रदान किया जाता है। भारत में कृषि क्षेत्र में भारी सब्सिडी दी जाती है जिस पर हाल के वर्षों में काफी विवाद उठा है।
कृषि सब्सिडी ’आवश्यक’ क्यों?
- भारत में कृषि सब्सिडियाँ सामाजिक न्याय को लागू करने में सहायक हैं। इनके माध्यम से निम्न आय समूह के किसान को आर्थिक सहायता प्रदान की जाती है।
- भारत में अधिकांश किसानों की आय का स्तर काफी कम है एवं वे बाजार कीमतों पर आधुनिक कृषि आगतों (inputs) को खरीद पाने में सक्षम नहीं हैं।
- भारत में ग्रामीण विकास और आजीविका सुरक्षा एक बड़ा मुद्दा है। भारत की कार्यशील जनसंख्या का लगभग 50% भाग कृषि पर निर्भर है, ऐसी स्थिति में कृषि सब्सिडी केवल एक आर्थिक मुद्दा न होकर सामाजिक एवं राजनीतिक मुद्दा भी बन जाती है।
- कृषि सब्सिडी का प्रयोग फसलों के पैटर्न को वांछित दिशा में बदलने के लिये भी किया जा सकता है। हाल ही में दालों के उत्पादन को बढ़ावा देने के लिये सरकार ने दालों के ‘न्यूनतम समर्थन मूल्य’ (MSP) में बढ़ोत्तरी की है।
- भारत में कृषि को विकास का इंजन माना जाता है क्योंकि अन्य क्षेत्रों का विकास भी किसी न किसी रूप से कृषि पर निर्भर है। अतः कृषि के विकास को सुनिश्चित करने के लिये इस क्षेत्र को सहायता की आवश्यकता है।
कृषि सब्सिडी ‘बुराई’ क्यों है?
- सब्सिडियाँ राजकोषीय घाटे को बढ़ाने का काम करती है। उच्च राजकोषीय घाटा सरकार की भुगतान क्षमता पर नकारात्मक प्रभाव डालता है तथा वैश्विक रेटिंग को कम करता है।
- कृषि सब्सिडियों के कारण पर्यावरण को हानि पहुँचती है। रासायनिक उर्वरकों एवं कीटनाशकों पर दी जाने वाली सब्सिडी के कारण किसान इनका जरूरत से ज्यादा प्रयोग करने लगते हैं। जिससे मानव स्वास्थ्य भी प्रभावित होता है। वर्षा के दौरान ये पदार्थ बहकर नदी अथवा झीलों में चले जाते हैं एवं वहाँ के पर्यावरण एवं पारिस्थितिकी को प्रभावित करते हैं।
- कृषि सब्सिडियों से भारत में फसल पैटर्न विकृत हो गया है। गेहूँ और चावल पर अधिक MSP दिये जाने से दालों और मोटे अनाज की उपेक्षा हुई है।
- किसानों को विद्युत पर सब्सिडी देने से न केवल विद्युत की खपत में वृद्धि हुई है बल्कि भू-जल के अतिदोहन से भूमिगत जलस्तर भी नीचे चला गया है।
- असंतुलित रूप से दी जा रही उर्वरक सब्सिडियों से भूमि का NPK संतुलन बिगड़ गया है जो भूमि की उर्वरा शक्ति को प्रभावित कर रहा है।
- इन सब्सिडियों से कृषि के अवसंरचना क्षेत्र में किये जाने वाले निवेश को हतोत्साहित किया है। तो दूसरी तरफ परंपरागत कृषि आगतों, जैसे- खाद्य एवं वर्मी कंपोस्ट के प्रयोग को भी हतोत्साहित किया है।
यद्यपि इन नकारात्मक पक्षों को देखते हुए भी भारत में कृषि सब्सिडियों को पूर्णतः समाप्त कर देना युक्तिसंगत नहीं होगा, बल्कि इन्हें अधिक तार्किक और विवेकपूर्ण (Ratlional) बनाना होगा।
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