यद्यपि उच्च शिक्षा में महिलाओं की भागीदारी लगातार बढ़ती जा रही है लेकिन विज्ञान एवं तकनीकी अनुसंधान में उनकी संख्या अब भी काफी कम है। इस स्थिति के कारणों को स्पष्ट करते हुए इसके समाधान के उपाय सुझाएँ।
उत्तर :
महिलाओं की उच्च शिक्षा में विज्ञान विषयों से स्नातक पाठ्यक्रमों में नामांकन दर बढ़ी है लेकिन अधिकांशतः वे इससे केवल एक डिग्री प्राप्त करने के लिये ही चुनती हैं। विज्ञान एवं तकनीकी क्षेत्र में अनुसंधान को एक कॅरियर के रूप में चुनने वाली महिलाओं की संख्या अब भी काफी कम है।
महिलाओं की उच्च शिक्षा में विज्ञान विषयों से स्नातक पाठ्यक्रमों में नामांकन दर बढ़ी है लेकिन अधिकांशतः वे इससे केवल एक डिग्री प्राप्त करने के लिये ही चुनती हैं। विज्ञान एवं तकनीकी क्षेत्र में अनुसंधान को एक कॅरियर के रूप में चुनने वाली महिलाओं की संख्या अब भी काफी कम है।
विज्ञान-तकनीकी क्षेत्र में महिलाओं की कम भागीदारी के कारणः
- पितृसत्तात्मक समाज की मानसिकता ऐसी है कि महिलाओं को अध्ययन एवं अनुसंधान के लिये अधिक समय नहीं दिया जाता जिससे वे इस दिशा में आगे बढ़कर मिसाल कायम नहीं कर पाती।
- महिलाओं को परंपरागत रूप में गृहिणी के रूप में देखा जाता है अतः इस तरह के लंबी अवधि में परिणाम देने वाले तथा कार्य के प्रति अत्यधिक समर्पण की मांग करने वाले कॅरियर को महिलाओं के लिये उचित नहीं माना जाता है।
महिलाओं पर घर की ज़िम्मेदारी, प्रसव के दौरान लंबी छुट्टी आदि के कारण वे इस कॅरियर में अपने समकक्षों से पिछड़ जाती हैं। महिलाओं की विज्ञान और तकनीकी अनुसंधान में भागीदारी बढ़ाने के लिये निम्नलिखित उपाय किये जाने चाहियें-
- महिलाएँ वैज्ञानिक संस्थानों में उपयुक्त तरीके से काम कर सकें इसके लिये वहाँ अनुकूल परिस्थितियाँ निर्मित की जानी चाहियें। उनके बच्चों के लिये ‘क्रेच’ की सुविधा, घर से काम करने की व्यवस्था आदि सुविधाएँ प्रदान की जानी चाहियें।
- इन संस्थानों को महिलाओं और पुरुषों के प्रति तटस्थ रुख अपनाने की आवश्यकता है। वैज्ञानिकों को पहचान उनके कार्य के आधार पर मिलनी चाहिये न कि लिंग के आधार पर।
- विज्ञान के क्षेत्र में अग्रणी महिलाओं को रॉल मॉडल की तरह प्रस्तुत करना चाहिये एवं बालिकाओं से उनका परिचय करवाना चाहिये।
इस प्रकार, बिना किसी पूर्वाग्रह एवं भेदभाव के महिलाओं को भी उनके कार्य का श्रेय दिये जाने की आवश्यकता है ताकि महिलाएँ भी इस क्षेत्र में आकर्षित हों और पुरुषों के बराबर भागीदार बन सकें।
- पितृसत्तात्मक समाज की मानसिकता ऐसी है कि महिलाओं को अध्ययन एवं अनुसंधान के लिये अधिक समय नहीं दिया जाता जिससे वे इस दिशा में आगे बढ़कर मिसाल कायम नहीं कर पाती।
- महिलाओं को परंपरागत रूप में गृहिणी के रूप में देखा जाता है अतः इस तरह के लंबी अवधि में परिणाम देने वाले तथा कार्य के प्रति अत्यधिक समर्पण की मांग करने वाले कॅरियर को महिलाओं के लिये उचित नहीं माना जाता है।
महिलाओं पर घर की ज़िम्मेदारी, प्रसव के दौरान लंबी छुट्टी आदि के कारण वे इस कॅरियर में अपने समकक्षों से पिछड़ जाती हैं। महिलाओं की विज्ञान और तकनीकी अनुसंधान में भागीदारी बढ़ाने के लिये निम्नलिखित उपाय किये जाने चाहियें-
- महिलाएँ वैज्ञानिक संस्थानों में उपयुक्त तरीके से काम कर सकें इसके लिये वहाँ अनुकूल परिस्थितियाँ निर्मित की जानी चाहियें। उनके बच्चों के लिये ‘क्रेच’ की सुविधा, घर से काम करने की व्यवस्था आदि सुविधाएँ प्रदान की जानी चाहियें।
- इन संस्थानों को महिलाओं और पुरुषों के प्रति तटस्थ रुख अपनाने की आवश्यकता है। वैज्ञानिकों को पहचान उनके कार्य के आधार पर मिलनी चाहिये न कि लिंग के आधार पर।
- विज्ञान के क्षेत्र में अग्रणी महिलाओं को रॉल मॉडल की तरह प्रस्तुत करना चाहिये एवं बालिकाओं से उनका परिचय करवाना चाहिये।
इस प्रकार, बिना किसी पूर्वाग्रह एवं भेदभाव के महिलाओं को भी उनके कार्य का श्रेय दिये जाने की आवश्यकता है ताकि महिलाएँ भी इस क्षेत्र में आकर्षित हों और पुरुषों के बराबर भागीदार बन सकें।