प्रतिस्पर्द्धात्मक संघवाद यद्यपि निवेश और प्रतिभा को आकर्षित करने के संबंध में परिवर्तन का शक्तिशाली एजेंट होता है। परंतु अनिवार्य सेवाओं की डिलीवरी के संबंध में यह अपेक्षाकृत कमज़ोर रहा है। भारतीय राज्यों के संदर्भ में उक्त कथन की व्याख्या कीजिये।
13 Sep, 2018 सामान्य अध्ययन पेपर 2 राजव्यवस्था
उत्तर की रूपरेखा:
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प्रतिस्पर्द्धात्मक संघवाद एक ऐसी अवधारणा है, जिसके अंतर्गत केंद्र, राज्यों के साथ तथा राज्य एक-दूसरे के साथ प्रतिस्पर्द्धा को बढ़ावा देकर अपने संयुक्त प्रयासों से भारत को विकसित करने का कार्य करते हैं। इसके तहत प्रत्येक राज्य विकास के लिये अपनी आवश्यकताओं के अनुसार विशिष्ट नीतियों का निर्माण करता है। औद्योगिक नीति एवं संवर्द्धन विभाग के बिज़नेस रिफॉर्म के संदर्भ में राज्यों के प्रयासों का 98 सूत्रीय आकलन तथा नीति आयोग की स्थापना के साथ प्रतिस्पर्द्धात्मक संघवाद को मूर्तरूप प्रदान करने में सफलता मिली है।
प्रतिस्पर्द्धात्मक संघवाद के फलस्वरूप विभिन्न राज्यों ने तीव्रता से विकास के लिये अपनी नीतियों में परिवर्तन किया है। इस परिवर्तन का महत्त्वपूर्ण कारक "ईज़ ऑफ डूइंग बिज़नेस" को बढ़ावा देना रहा है। इसके लिये भूमि, श्रम, अवसंरचना, आर्थिक पर्यावरण, गवर्नेंस और राजनैतिक स्थिरता आदि क्षेत्रों में सुधार के प्रयास किये गए हैं। इसके उदाहरण हैं:
निवेश को बढ़ावा देने के लिये वाइब्रेंट गुजरात, उत्तर प्रदेश में इन्वेस्टर्स समिट और इसके साथ ही मुम्बई, तमिलनाडु के प्रयासों को देखा जा सकता है।
आंध्र प्रदेश द्वारा भारत के पहले राष्ट्रीय निवेश और विनिर्माण जोन का निर्माण।
भूमि सुधार के उदाहरण गुजरात, महाराष्ट्र, उत्तर प्रदेश हैं।
श्रम सुधार के मामले में गुजरात, कर्नाटक सर्वोच्चता पर हैं।
इन्हीं प्रयासों का परिणाम है कि राज्य अत्यधिक निवेश को आकर्षित करने में सफल रहे हैं।
किंतु प्रतिस्पर्द्धात्मक संघवाद का एक नकारात्मक पहलू भी रहा है। यह अनिवार्य सेवाओं की डिलीवरी के संबंध में पर्याप्त रूप से सफल नहीं हो पाया है। आर्थिक सर्वेक्षण 2016-17 के अनुसार, प्रत्येक भारतीय शहर स्वच्छ पानी और बिजली आपूर्ति, सार्वजनिक परिवहन, शिक्षा, स्वास्थ्य देखभाल तथा सुरक्षा से संबंधित गंभीर चुनौतियों का सामना कर रहा है।
स्वास्थ्य सेवाओं के संदर्भ में गोरखपुर की घटना (जहाँ ऑक्सीज़न की सप्लाई रुकने से अनेक बच्चों की मृत्यु हो गई) विश्व के सर्वाधिक टीबी और कैंसर मरीज़ आदि के रूप में देखा जा सकता है, वहीं खाद्य सुरक्षा के संबंध में 50% से अधिक बच्चों का कुपोषण से ग्रसित होने को उदाहरण के रूप में ले सकते हैं। लगभग 21% जनसंख्या अब भी गरीबी से नीचे जीवन यापन कर रही है। विशाल जनसंख्या तक अब भी स्वच्छ पानी की पहुँच नहीं है।
इस प्रकार कहा जा सकता है कि केंद्र और राज्यों को व्यवसाय के लिये बेहतर वातावरण उपलब्ध कराने के साथ-साथ अनिवार्य सेवाओं की बेहतर डिलीवरी के प्रयास भी करने चाहिये। जिसके लिये उचित नीति निर्माण और बेहतर कार्यान्वयन, राजनैतिक प्रतिबद्धता, पर्याप्त फंड की व्यवस्था, अनुसंधान और विकास, कॉर्पोरेट सामाजिक उत्तरदायित्व का बेहतर प्रयोग आदि प्रयास किये जा सकते हैं। हालाँकि सरकार ने अमृत, स्वच्छ भारत अभियान, नई स्वास्थ्य नीति 2015, प्रधानमंत्री आदर्श ग्राम योजना जैसे प्रयास किये हैं किंतु राज्य स्तर पर उनकी आवश्यकताओं के अनुसार अनिवार्य सेवाओं के लिये नीति निर्माण समय की आवश्यकता है, तभी लोक कल्याणकारी राज्य का सपना पूरा हो सकेगा।