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मेन्स प्रैक्टिस प्रश्न

  • प्रश्न :

    देश के विभिन्न भागों में किसानों के हालिया प्रदर्शनों ने सरकारों पर कृषि ऋण माफी का दबाव बनाया है । क्या ऋण माफी कृषि समस्याओं को सुलझाने का उपाय हो सकता है ? चर्चा करें ।

    03 Aug, 2017 सामान्य अध्ययन पेपर 3 अर्थव्यवस्था

    उत्तर :

    देश के किसानों के समक्ष तमाम प्रतिकूल परिस्थितियाँ हैं। इनमें फसल चौपट हो जाना और अत्यधिक उत्पादन होना जैसे एकदम विरोधाभासी हालात शामिल हैं। एक ओर प्राकृतिक आपदाओं का खतरा होता है तो दूसरी ओर किसानों को अपनी उपज का कम मूल्य मिलने की समस्या अक्सर हमारे सामने आती है। कई बार तो उनको उपज के अंतिम मूल्य की तुलना में एक तिहाई से भी कम दाम मिलते हैं। इसकी वज़ह से अक्सर किसान कर्ज़ के बोझ तले दब जाते हैं।

    इस समस्या को सुलझाने के लिये ऋण माफी जैसा कदम लोकप्रिय और तात्कालिक राहत दिलाने वाला तो होता है, परन्तु इस कदम से जुड़ी कुछ अन्य समस्याएँ और कमियाँ भी हैं जो निम्नलिखित हैं :-

    1.  कर्ज़ माफी से ऋण न चुकाने की आदत को बढ़ावा मिलता है और एक अच्छी ऋण संस्कृति पर बुरा असर पड़ता है , दूसरा बैंक इस डिफॉल्ट का अनुमान लगा लेते हैं और उन मदों के लिये कम से कम ऋण देते हैं जहाँ माफी का प्रभाव अधिक होता है। 
    2. किसानों को जहाँ राहत मिलती है, वहीं बैंकों को इसके लिये राज्य सरकार की ओर से हर्जाना मिलता है। इसके लिये राज्य सरकारों को बाजार से ऋण लेना होता है  और जब राज्य बॉण्ड बाज़ार में आते हैं तो बॉण्ड प्रतिफल और ब्याज दर में इजाफा होने की संभावना रहती है। ऋण की लागत में यह इजाफा निवेश को प्रभावित कर सकता है।
    3. ऋण माफी ने विशेष रूप से सार्वजनिक क्षेत्र के बैंकों की गैर-निष्पादित परिसंपत्तियों में वृद्धि की है। इसका राज्य और राष्ट्रीय राजकोषीय घाटे पर बड़ा असर होने की संभावना है।
    4. छोटे और सीमांत किसानों का एक तिहाई वर्ग ही संस्थागत ऋण का उपयोग करता है। अतः ऋण माफी का लाभ कई सीमांत किसानों को नहीं मिलेगा ।

    स्पष्ट है कि कर्ज़ माफी किसानों के लिये सिर्फ आंशिक राहत है और इससे कृषि अर्थव्यवस्था की मुश्किलों को दूर नहीं किया जा सकता । किसानों की सबसे बड़ी समस्या सिर्फ कर्ज नहीं है। अधिक उत्पादन पर उत्पादों का उचित मूल्य न मिल पाना, भंडारण और मंडियों तक पहुँच की पर्याप्त सुविधाओं का अभाव, बाज़ार के जोखिम और वैकल्पिक आजीविका का न होना भी इनके बड़े कारण हैं । अतः कई पहलुओं पर केंद्र और राज्य सरकारों को प्रभावी नीतियाँ बनाने की आवश्यकता है ।

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