देश को रक्षा उत्पादन के क्षेत्र में आत्म-निर्भर होने की क्या आवश्यकता है ? इसके लिये अब तक किये गए प्रयासों पर चर्चा कीजिये।
04 Aug, 2017 सामान्य अध्ययन पेपर 3 अर्थव्यवस्थाभारतीय रक्षा उद्योग 200 वर्षों से भी अधिक का इतिहास अपने आप में समेटे हुए है। प्रथम आयुध कारखाने की स्थापना 1801 में काशीपुर में की गई थी। वर्तमान में देश भर में फैले 41 आयुध कारखाने,9 रक्षा सार्वजनिक उपक्रम, रक्षा अनुसन्धान एवं विकास संगठन(DRDO) की 50 से अधिक रक्षा प्रयोगशालाएँ देश में रक्षा विनिर्माण की पूरी व्यवस्था का अहम हिस्सा हैं ।
इन सबके बावज़ूद पिछले कई वर्षों से हमारे ज्यादातर प्रमुख रक्षा उपकरणों और हथियार प्रणालियों का या तो आयात किया जाता रहा है या लाइसेंस प्राप्त उत्पादन के तहत आयुध कारखानों अथवा रक्षा सार्वजनिक क्षेत्र उपक्रमों द्वारा उन्हें भारत में ही तैयार किया जाता रहा है। रक्षा-उत्पादों के अत्यधिक आयात को अनुचित समझे जाने के पीछे निम्नलिखित तर्क हैं-
देश में ही रक्षा उपकरणों के स्वदेशी डिजाइन, विकास और विनिर्माण को बढ़ावा देने के लिये सरकार ने अनेक नीतिगत एवं प्रक्रियागत सुधार लागू किये हैं। इनमें लाइसेंसिंग एवं एफडीआई नीति का उदारीकरण, ऑफसेट संबंधित दिशा-निर्देशों को सुव्यवस्थित करना, निर्यात नियंत्रण प्रक्रियाओं को तर्कसंगत बनाना और सार्वजनिक एवं निजी क्षेत्र को समान अवसर देने से संबंधित मसलों को सुलझाना शामिल हैं।
हमारे रक्षा शिपयार्डों ने जहाज़ निर्माण में काफी हद तक स्वदेशीकरण हासिल कर लिया है। अपने स्वयं के अनुसंधान एवं विकास के ज़रिये कुछ प्रमुख प्रणालियों को स्वदेश में ही विकसित करने में भी सफलता पा ली है। इनमें आकाश मिसाइल प्रणाली, उन्नत हल्के हेलीकॉप्टर, हल्के लड़ाकू विमान, पिनाका रॉकेट और विभिन्न प्रकार के राडार जैसे हथियारों को ढूंढ निकालने में सक्षम राडार, युद्ध क्षेत्र की निगरानी करने वाले रडार इत्यादि शामिल हैं। इन प्रणालियों में भी 50 से 60 प्रतिशत स्वदेशीकरण किया जा चुका है।
मेक इन इंडिया जैसे अभियानों के तहत रक्षा उत्पादन में हम आत्मनिर्भरता की दिशा में अपनी यात्रा के निर्णायक और महत्त्वपूर्ण चरण में हैं। इतिहास साक्षी है कि सैन्य शक्ति ही महाशक्ति के रूप में किसी भी राष्ट्र के उत्थान की कुंजी है।