आधुनिक उपभोक्ता वैसे तो पॉवरलूम की तरफ ज़्यादा आकर्षित हैं, परंतु हथकरघा (हैंडलूम) का आज भी विशिष्ट स्थान है। हथकरघा उद्योग का महत्त्व बतलाते हुए, इसके विकास हेतु किये जाने वाले प्रयासों पर चर्चा करें।
07 Aug, 2017 सामान्य अध्ययन पेपर 3 अर्थव्यवस्थाप्राचीन काल से ही भारतीय हथकरघा उत्पादों की पहचान उनकी दोषरहित गुणवत्ता से की जाती रही है। इनमें चंदेरी का मलमल, वाराणसी के सिल्क के बेल-बूटेदार वस्त्र, राजस्थान व ओडिशा के बंधेज की रंगाई, मछलीपटनम के छींटदार कपड़े, हैदराबाद के हिमरुस,पंजाब के खेस, मध्य प्रदश की महेश्वरी साड़ियाँ तथा वड़ोदरा की पटोला साड़ियाँ शामिल हैं।
भारत की विशेष सांस्कृतिक पूंजी को संरक्षित करने के अलावा भी यह उद्योग विशेष महत्ता रखता है-
हथकरघा उद्योग के गौरवशाली इतिहास और वर्तमान समय में इसकी प्रासंगिकता को स्वीकार करते हुए सरकार हाथ से बुने कपड़ों और बुनकरों के पुनरुत्थान के लिये प्रतिबद्ध है। सन् 1905 के स्वदेशी आंदोलन की स्मृति में वर्ष 2015 से 7 अगस्त को राष्ट्रीय हथकरघा दिवस घोषित किया गया है।
हथकरघा उद्योग के संरक्षण तथा विकास के लिये किये जा रहे अन्य प्रयास:-
हथकरघा उत्पादन की विकेंद्रित प्रकृति और पर्यावरण पर इसका गैर-प्रदूषणकारी प्रभाव इसे भविष्य का एक पसंदीदा क्षेत्र बनाता है।