उत्तर :
किसी सरकारी या निजी, योजना अथवा कार्यक्रम के समाज पर वांछित या अवांछित प्रभाव की निगरानी और विश्लेषण करने की प्रक्रिया को सामाजिक प्रभाव आकलन कहते हैं।
महत्त्व –
- मूल रूप से सामाजिक प्रभाव आकलन योजनाओं या कार्यक्रमों के परिणामों की जाँच कर प्रशासन की जवाबदेही सुनिश्चित करता है।
- ज़्यादातर योजनाएँ बिना स्थानीय भागीदारी के सरकार मात्र के दृष्टिकोण के आधार पर तैयार की जाती हैं। सामाजिक प्रभाव आकलन ऐसी योजनाओं की कमियों को उजागर करता है।
- प्रभाव आकलन का मूल उद्देश्य एक बेहतर न्यायसंगत तथा पारिस्थितिक रूप से एवं सामाजिक-सांकृतिक और आर्थिक रूप से स्थायी वातावरण का निर्माण करना है । सामाजिक प्रभाव मूल्यांकन सामुदायिक विकास और सशक्तिकरण को बढ़ावा देता है, क्षमता निर्माण करता है और सामाजिक पूंजी में वृद्धि करता है।
- सामाजिक प्रभाव आकलन का लक्ष्य अनपेक्षित या नकारात्मक परिणामों में सुधार करना नहीं, बल्कि बेहतर विकास परिणामों के लिये प्रयास करना है। नकारात्मक प्रभावों के नुकसान को कम करने के बजाए यह देखना ज़्यादा बेहतर है कि सकारात्मक परिणामों की प्राप्ति के लिये समुदायों और हितधारकों की सहायता करने का अधिकतम प्रयास किया गया है या नहीं।
- भारत जैसे विविधतापूर्ण देश में किसी योजना का प्रभाव समुदाय-दर-समुदाय अलग-अलग होता है। ऐसी स्थिति में तो सामाजिक प्रभाव मूल्यांकन का महत्त्व और भी अधिक बढ़ जाता है।
- सामाजिक आकलन प्रभाव यह भी सुनिश्चित करता है कि किसी योजना का लाभ समस्त हितधारकों तक पहुँचा है या नहीं, इस प्रकार यह समावेशी विकास को प्रोत्साहित करता है।
यह भी पाया गया है कि सामाजिक प्रभाव आकलन योजनाओं में देरी के लिये भी ज़िम्मेदार है। व्यापार करने की सुगमता में बाधक बनकर यह निवेश को हतोत्साहित करता है। यह कई बार भ्रामक सूचनाओं के प्रसार द्वारा किसी परियोजना के लिये पहले से ही प्रतिकूल माहौल बना देता है जैसा कि न्यूट्रिनो वेधशाला के मामले में हुआ था। इन सबके बावज़ूद सामाजिक प्रभाव आकलन का महत्त्व कम नहीं होता क्योंकि किसी भी योजना की तरह इसका उद्देश्य भी हितधारकों के लाभ को सुनिश्चित करना है।