भारत की पारंपरिक जल संरक्षण तकनीकें एक स्थायी जल प्रबंधन का विकल्प प्रदान करती हैं। विश्लेषण करें।
18 Aug, 2017 सामान्य अध्ययन पेपर 1 भूगोलभारत में पारंपरिक जल संरक्षण की तकनीकों का एक लंबा इतिहास रहा है। टांका, बावड़ी, कुंड, जोहड़, चंदेल टैंक, बुंदेला टैंक, पाटा,झालरा इत्यादि कई सदियों से जल को संरक्षित कर रखने के तरीके हैं। आज विभिन्न कारणों से शुद्ध जल की उपलब्धता धीरे-धीरे कम होती जा रही है। ऐसे में जल संरक्षण की इन तकनीकों को पुनः प्रचलन में लाने और इनको प्रोत्साहित करने से कई लाभ अर्जित किये जा सकते हैं।
पारंपरिक तरीकों से जल संरक्षण के लाभ –
कुछ ऐसे पक्ष भी हैं जो इन्हें कम कारगर साबित करते हैं –
अतः हमें क्षेत्र विशेष की ज़रूरतों के आधार पर आधुनिक अथवा पारंपरिक जल संरक्षण के तरीके अपनाने पर ध्यान देना होगा। कुछ कमियों के बावज़ूद जल संग्रहण की पारंपरिक तकनीकें अधिक कारगर सिद्ध हो सकती हैं। शायद यही कारण है कि जल की भीषण कमी से जूझने वाले बुंदेलखंड के लिये मध्य प्रदेश सरकार “खेत-तालाब योजना” और तेलंगाना सरकार, तालाबों और नहरों को जोड़कर बाढ़ के पानी को इनकी और मोड़ने के उद्देश्य वाले “काकतीय मिशन” जैसे पारंपरिक तरीकों पर ही ध्यान दे रही है।