उच्च उत्पादक, परंतु असंवहनीय भारतीय कृषि को संवहनीय कृषि में रूपांतरित करने के प्रयास किये जा रहे हैं। इन प्रयासों की सफलता सुनिश्चित करने के लिये कौन से कदम उठाए जा सकते हैं ?
21 Aug, 2017 सामान्य अध्ययन पेपर 3 अर्थव्यवस्थाबढ़ती आबादी की खाद्य आवश्यकताएँ पूरी करने के लिये भारतीय कृषि जब नए परिवर्तनों से गुजरी, तब एक ओर उसकी उत्पादकता में उल्लेखनीय वृद्धि दर्ज की गई तो दूसरी ओर भारतीय कृषि में असंवहनीयता के लक्षण भी नज़र आने लगे। हरित क्रांति के दौरान उच्च उत्पादकता(HYV) वाले बीजों, रासायनिक उर्वरकों, सिंचाई के लिये बिजली के पंप आदि के अनियंत्रित इस्तेमाल ने कई तरह की समस्याओं को जन्म दिया, जैसे-
मिट्टी की उर्वरता में कमी।
भू-जल स्तर का गिर जाना।
रासायनिक खादों और कीटनाशकों द्वारा विभिन्न जल स्रोतों का प्रदूषित होना।
छोटे व सीमांत किसानों के लिये कृषि लागत का बढ़ना तथा कृषि से प्राप्त आय में क्षेत्रीय विषमता की प्रवृत्ति का जन्म लेना आदि।
इन सब कमियों को दूर करने के लिये कृषि को संवहनीय बनाना एक अपरिहार्य कदम होगा। इसके लिये प्रयास शुरू किये जा चुके हैं और इसकी सफलता को सुनिश्चित करने लिये निम्नलिखित कदम उठाए जा सकते हैं-
दूसरी हरित क्रांति में जैविक खेती, जैविक खादों आदि के प्रयोग पर ज़ोर दिया गया है। परंतु जैविक कृषि से संबद्ध यह क्षेत्र वित्त की कमी से जूझ रहा है। इसके विकास के लिये अवसंरचनात्मक सुविधाओं के साथ-साथ अनुसंधान पर भी विशेष ध्यान दिये जाने की ज़रूरत है।
ड्रिप और स्प्रिंकलर सिंचाई द्वारा न केवल मृदा के लवणीकरण को रोका जा सकता है, बल्कि जल के उपभोग को सीमित कर उसके संरक्षण में सहयोग दिया जा सकता है।
मानसून की अनियमितता को देखते हुए जल संग्रहण के पारंपरिक साधनों के इस्तेमाल पर ज़ोर दिया जाना चाहिये। जल संग्रहण के पारंपरिक साधन न केवल सफल हैं, बल्कि पर्यावरण-हितैषी भी हैं।
मृदा की पोषण स्थिति के अनुसार ही उचित मात्रा में खाद का प्रयोग किया जाना चाहिये। इस दिशा में मृदा स्वास्थ्य कार्ड योजना एक अनुपम प्रयास है।
सूचना प्रौद्योगिकी के माध्यम से जैविक खेती से संबंधित समस्त जानकारी किसानों को मुहैया कराई जानी चाहिये। इसमें विभिन्न कृषि विश्वविद्यालय और क्षेत्रीय कृषि महाविद्यालय भी महत्त्वपूर्ण भूमिका निभा सकते हैं।
परंपरागत कृषि विकास योजना के उद्देश्यों की प्राप्ति के लिये गंभीर प्रयास किये जाने चाहिये, ताकि कीटनाशक मुक्त उत्पादन के साथ-साथ वाणिज्यिक जैविक उत्पादों को बढ़ावा दिया जा सके।
आने वाले कुछ दशकों में भारत विश्व में सबसे अधिक आबादी वाला देश बन जाएगा। उस समय भारत के सामने दोहरी चुनौती होगी। इतनी बड़ी आबादी की खाद्य सुरक्षा को सुनिश्चित करने के साथ-साथ मानव स्वास्थ्य और पर्यावरण को न्यूनतम नुकसान पहुँचाने वाली कृषि पद्धतियों का विकास हमें जल्द ही करना होगा। इसलिये यह आवश्यक है कि वर्तमान भारतीय कृषि के स्वरूप को संवहनीय कृषि में परिवर्तित कर दिया जाना चाहिये।