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प्रश्न :
सरकार के वित्तीय समावेशन कार्यक्रम वित्तीय साक्षरता के अभाव में अपेक्षित परिणाम प्राप्त नहीं कर पा रहे हैं। टिप्पणी करें। वित्तीय शिक्षा और जागरूकता के लिये आर्थिक सहयोग और विकास संगठन(OECD) की अनुशंसाओं का भी उल्लेख करें।
31 Aug, 2017 सामान्य अध्ययन पेपर 3 अर्थव्यवस्थाउत्तर :
उत्तर की रूपरेखा –
- वित्तीय समावेशन की संक्षिप्त परिभाषा दें।
- वित्तीय समावेशन के कार्यक्रमों के दौरान वित्तीय साक्षरता की कमी के कारण उभरी विसंगतियों को बिंदुवार लिखें।
- वित्तीय शिक्षा हेतु OECD द्वारा जारी अनुशंसाएँ लिखें।
- वित्तीय साक्षरता हेतु भारत में किये गए प्रयासों का उल्लेख कर निष्कर्ष लिखें।
समाज के प्रत्येक व्यक्ति, विशेषकर आर्थिक रूप से कमज़ोर लोगों को संस्थागत तरीके से वित्तीय सेवाएँ उपलब्ध करवाना ही वित्तीय समावेशन कहलाता है। इसमें औपचारिक बैंकिंग व अन्य वित्तीय संस्थाओं के माध्यम से विभिन्न वित्तीय उत्पाद तथा सेवाएँ पारदर्शी तरीके से उपलब्ध कराने पर ज़ोर दिया जाता है। वित्तीय मुख्य धारा से जोड़ने का सबसे सहज तरीका बैंक में खाता खोलना है। वित्तीय समावेशन में नो फ्रिल बैंकिंग अर्थात् आसान बैंकिंग पर ज़ोर दिया जाता है। लोगों के बैंक खाते खोलने के उद्देश्य से एक महत्त्वाकांक्षी प्रयास के रूप में “जनधन योजना” शुरू की गई थी। बहुत ही कम समय में इसने करोड़ों लोगों को बैंक खातों के माध्यम से औपचारिक बैंकिंग से जोड़ा था। वर्तमान में जनधन योजना सहित, वित्तीय समावेशन के अन्य प्रयासों में निम्नलखित प्रवृत्तियाँ देखने को मिली हैं-
जनधन योजना में खुले बहुत से खातों को उनकी निष्क्रियता के कारण फ्रीज़ कर दिया गया है। इन खातों के परिचालन खर्च का अनावश्यक दबाव बैंकों पर था।- एक आँकड़े के अनुसार कुल लाभार्थियों में से मात्र 33% लाभार्थियों ने ही रुपे कार्ड का इस्तेमाल किया।
- मूल रूप से नकद आधारित अर्थव्यवस्था होने के कारण लोगों का डिजिटल भुगतान विकल्पों की ओर कम रुझान बना हुआ है।
- वित्तीय निरक्षरता और सुरक्षा संबंधी चिंताओं के कारण डिजिटल आर्थिक गतिवधियों को चलन में लाना एक कठिन कार्य है।
- वित्तीय ज्ञान की कमी के कारण कुछ ग्राहक बिना सोचे-समझे बीमा पालिसी इत्यादि ले लेते हैं और कुछ समय बाद प्रीमियम न भर पाने की स्थिति में उसे बीच में ही छोड़ देते हैं। ऐसी प्रवृत्तियों से लोगों को बड़ा आर्थिक नुकसान होता है।
वित्त बाज़ार की बढ़ती हुई जटिलताओं और बाज़ार तथा आम नागरिकों के बीच सूचनाओं की विषमता के कारण लोगों के लिये उचित वित्तीय विकल्प का चयन करना मुश्किल होता जा रहा है। इस वजह से हाल के वर्षों में वित्तीय साक्षरता की आवश्यकता महसूस की जा रही है। OECD ने “वित्तीय शिक्षा और जागरूकता के लिये सिद्धांतों और सद्कार्यों हेतु अनुशंसाएँ” जारी की हैं। इन अनुशंसाओं का उद्देश्य विकसित और विकासशील दोनों प्रकार के देशों के लिये प्रभावी वित्तीय साक्षरता कार्यक्रमों का निर्माण और उनके क्रियान्वयन में मदद करना है। OECD की कुछ महत्त्वपूर्ण अनुशंसाएँ निम्नलिखित हैं –
- सरकार तथा संबद्ध सहयोगियों को भेदभाव रहित, उचित व सामंजस्यपूर्ण वित्तीय शिक्षा को बढ़ावा देना चाहिये।
- वित्तीय शिक्षा की शुरुआत विद्यालय स्तर से ही हो जानी चाहिये, ताकि लोग समय रहते इसके बारे में जागरूक हो सकें।
- वित्तीय शिक्षा को व्यावसायिक परामर्शों से अलग होना चाहिये, इसके लिये वित्तीय संस्थानों के कर्मचारियों के लिये एक आचार-संहिता का निर्माण किया जाना चाहिये।
- विशेष समूहों की वित्तीय क्षमता का निर्माण करने वाले कार्यक्रम अलग से चलाए जाने चाहिये।
- राष्ट्रीय अभियानों, निःशुल्क सूचना सेवाओं और वेबसाइट इत्यादि के माध्यम से वित्तीय जालसाज़ी के लिये चेतावनी प्रणाली का विकास किया जाना चाहिये।
उपरोक्त अनुशंसाओं पर कार्यवाही करते हुए भारत सरकार व रिज़र्व बैंक ने कुछ कदम अवश्य उठाए हैं, जैसे-अंतर-स्नातक छात्रों में बैंकिंग क्षेत्र व रिज़र्व बैंक के बारे में जागरूकता पैदा करने के लिये “आर.बी.आई. युवा विद्वत पुरस्कार” (RBI young Scholars Award) द्वारा स्कॉलरशिप प्रदान की जाती है। लोगों को डिजिटल लेन-देन समेत अन्य वित्तीय जानकारी देने के लिये “वित्तीय साक्षरता अभियान” शुरू किया गया है। रिज़र्व बैंक ने किसानों, लघु उद्यमियों, स्कूली बच्चों, स्वयं सहायता समूहों और वरिष्ठ नागरिकों के लिये उनकी ज़रूरतों के हिसाब से वित्तीय साक्षरता सामग्री भी तैयार की है।
वित्तीय साक्षरता वित्तीय समावेशन और अंततः वित्तीय स्थायित्व प्रदान करने के लिये अत्यंत महत्त्वपूर्ण है। आज भी देश का एक बड़ा हिस्सा वित्तीय सेवाओं से वंचित है, इसलिये इस दिशा में और भी गंभीर प्रयास किये जाने ज़रूरी हैं।
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