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प्रश्न :
पिछले 3 वर्षों में भारत में बाघों की मृत्यु दर में अचानक वृद्धि देखी गई है। इसके कारणों का उल्लेख करते हुए इसे नियंत्रित किये जाने के लिये उपाय सुझाएँ।
02 Sep, 2017 सामान्य अध्ययन पेपर 3 पर्यावरणउत्तर :
उत्तर की रूपरेखा-
- भारत में बाघों की यथास्थिति व हाल में उनकी मृत्यु दर के आँकड़ों का उल्लेख।
- बाघों की मौत के कारणों का बिंदुवार विवरण दें।
- बाघों के अवैध शिकार को रोकने के लिये संभावित उपाय।
विश्व में पाए जाने वाले कुल बाघों में से 60% बाघों का घर भारत है। 2014 की बाघों की राष्ट्रीय गणना में भारत में कुल 2226 बाघ होने की पुष्टि की गई थी। यह 2011 में कुल बाघों की संख्या से 30% अधिक थी। ये आँकड़े पर्यावरण प्रेमियों और इस महत्त्वपूर्ण वन्यजीव के संरक्षण के प्रयास में लगे लोगों के साथ-साथ इसे राष्ट्रीय पशु मानने वाले देश भारत के लिये काफी संतोषजनक थे। परंतु पिछले 3 वर्षों से विभिन्न कारणों से भारत में बाघों की मौत के आँकड़ों में तेज़ी से इज़ाफा हुआ है। जहाँ 2016 में पूरे वर्ष में 76 बाघों की मौत के मामले दर्ज़ किये गए, वहीं 2017 के पहले 6 महीनों में ही कुल 67 बाघों की संदिग्ध मौतों के मामले दर्ज़ किये गए हैं। बाघों की मृत्यु दर में वृद्धि के निम्नलिखित कारण नज़र आते हैं-
- चीन, ताइवान, वियतनाम, कंबोडिया आदि देशों में बाघ के अंगों व खाल की भारी मांग के कारण दक्षिण एशिया क्षेत्र में बाघ के अवैध शिकार को बढ़ावा मिला है। एक आँकड़े के अनुसार वन्यजीव अंगों के अवैध अंतर्राष्ट्रीय बाज़ार में बाघ की खाल की कीमत 22 लाख रुपए तक है। चूँकि भारत में बाघों की संख्या सर्वाधिक है, अतः यहाँ शिकार के मामले ज़्यादा संख्या में दर्ज़ होते हैं।
- अवैध शिकार के अलावा अप्रत्यक्ष मानवीय-हस्तक्षेप, ज़हर दिया जाना , बिजली के तारों से मौत इत्यादि अन्य कारण भी बाघों की मौत के लिये ज़िम्मेदार हैं।
- कुछ राज्यों में केनाइन डिस्टेंपर वायरस के संक्रमण से भी बाघों की मौत हुई है।
इन सभी कारणों में से बाघों की मौत के लिये सर्वाधिक ज़िम्मेदार बाघों का अवैध शिकार है। वन्यजीवों के अवैध अंतर्राष्ट्रीय व्यापार पर निगरानी रखने वाली संस्था TRAFFIC की भारत में स्थित शाखा के अनुसार देश में अगस्त से नवंबर के बीच बाघों के शिकार की घटनाएँ बढ़ जाती हैं। बाघों का सर्वाधिक शिकार उन इलाकों में होता है जहाँ बाघ संरक्षित क्षेत्र दो राज्यों की सीमा पर पड़ते हैं, जैसे- तडोबा-मेलघाट बाघ संरक्षण क्षेत्र महाराष्ट्र से लेकर मध्य प्रदेश की सीमा तक फैले हुए हैं व कॉर्बेट नेशनल पार्क उत्तराखंड व उत्तर प्रदेश की सीमा तक फैला हुआ है।
बाघों के अवैध शिकार को रोकने के लिये संभावित उपाय-
- अंतर्राष्ट्रीय व्यापार की वस्तु होने के कारण बाघों के अवैध शिकार में कई देशों के लोग शामिल होते हैं। इससे निपटने के लिये भारत को अन्य देशों के साथ मिलकर आसूचना (इंटेलिजेंस) आधारित समन्वयात्मक प्रयास करने होंगे।
- बाघ संरक्षण में तकनीक के इस्तेमाल को भी बढ़ाना होगा। उन्नत फेंसिंग के साथ-साथ ड्रोन कैमरों के माध्यम से भी निगरानी की जानी चाहिये।
- बाघों की मौत की जाँच प्रक्रिया बहुत धीमी है। इसमें तेज़ी लाकर जल्द आवश्यक कार्यवाही सुनिश्चित की जानी चाहिये।
- कॉर्बेट नेशनल पार्क की तरह देश के सभी टाइगर रिज़र्व प्रबंधन को शिकारियों को देखते ही गोली मारने के आदेश पारित कर देने चाहिये।
- बाघ संरक्षण के लिये देश की सर्वाधिक महत्त्वपूर्ण संस्था NTCA(National Tiger Conservation Authority) के दिशा निर्देशों का गंभीरता से पालन किया जाना चाहिये। NTCA द्वारा पाया गया है कि कॉर्बेट नेशनल पार्क प्रबंधन ने निर्धारित दिशा-निर्देशों का पालन नहीं किया था।
बाघ न सिर्फ देश का राष्ट्रीय पशु है, बल्कि यह जैव विविधता और पर्यावरण के संतुलन के लिये भी आवश्यक अवयव है। भारत में अभी लगभग 50 टाइगर रिज़र्व बाघ संरक्षण के उद्देश्य से प्रयासरत हैं। निर्धारित नियमों के गंभीरता से पालन और आधुनिक निगरानी तंत्र स्थापित करके इनके संरक्षण को सुनिश्चित किया जा सकता है।
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