1991 के आर्थिक सुधारों के बाद 25 वर्षों का समय बीत चुका है। भारत की आर्थिक नीति में हुए इस परिवर्तन की समीक्षा करें।
उत्तर :
उत्तर की रूपरेखा –
- 1991 के दौरान भारत की आर्थिक परिस्थितियों का उल्लेख करें।
- आर्थिक सुधारों के सकारात्मक परिणाम लिखें।
- इन सुधारों की सीमाओं को बताएँ।
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संरक्षणवादी नीतियों के प्रभाव और विदेशी पूंजी के प्रति नकारात्मक रुख ने भारत की आर्थिक कार्यकुशलता एवं प्रतिस्पर्द्धात्मकता को प्रतिकूल रूप से प्रभावित किया और देश के आर्थिक विकास को बाधित किया। लाइसेंस, परमिट और कोटा प्रणाली तथा कठोर श्रम कानूनों के साथ-साथ प्रशासित कीमत नीति ने इंस्पेक्टर राज को जन्म दिया तथा लालफीताशाही और भ्रष्टाचार को बढ़ावा दिया। 1990 के खाड़ी संकट और 1991 के भुगतान संतुलन के गंभीर स्थिति में पहुँच जाने के कारण भारत ने IMF की शरण ली और इसी के साथ संरचनात्मक सुधारों की शर्त पर भारत में आर्थिक उदारीकरण की प्रक्रिया शुरू की गई।
एक ओर इन आर्थिक सुधारों के कई सकारात्मक परिणाम दिखाई पड़े, वहीं दूसरी ओर इसकी कुछ सीमाएँ भी रहीं।
आर्थिक सुधारों के सकारात्मक परिणाम-
- भारत ने अपने सकल घरेलू उत्पाद के आकार और आर्थिक संवृद्धि की दर में उल्लेखनीय वृद्धि की है। क्रय शक्ति समता के आधार पर आज भारत विश्व की तीसरी बड़ी अर्थव्यवस्था बन चुका है। इन 25 वर्षों के दौरान भारत की प्रति व्यक्ति आय में लगभग 15 गुना वृद्धि हुई है।
- आज केवल 5 उद्योगों को छोड़कर अन्य सभी के लिये लाइसेंस की अनिवार्यता को समाप्त कर दिया गया है। केवल 3 क्षेत्रों परमाणु उर्जा, परमाणु खनिज और रेल परिवहन को सार्वजनिक क्षेत्र के लिए आरक्षित रखा गया है। इससे अर्थव्यवस्था में प्रतिस्पर्द्धा को बढ़ावा मिला और इसका लाभ उपभोक्ताओं को वस्तुओं और सेवाओं की बेहतर गुणवत्ता और कम कीमत के रूप में मिला।
- विशेष आर्थिक क्षेत्रों (SEZs) और निर्यात संवर्द्धन क्षेत्रों जैसी निर्यातोन्मुख इकाइयों की स्थापना से वैश्विक निर्यात में भारत की भागीदारी में महत्त्वपूर्ण वृद्धि हुई है।
- विदेशी निवेश 1991 के 74 मिलियन डॉलर से बढ़कर 2014-15 में 35 बिलियन डॉलर हो गया। 2015 में भारत सर्वाधिक ग्रीनफील्ड निवेश प्राप्त करने वाला देश था।
- बेसल-III मानकों को अपनाते हुए भारत ने अपनी बैंकिंग प्रणाली को मज़बूत किया और बैंकों के राष्ट्रीयकरण से आगे बढ़ते हुए बैंकिंग क्षेत्र के विविधीकरण को वित्तीय समावेशन का औज़ार बनाया गया।
सीमाएँ-
- आर्थिक सुधारों के माध्यम से देश की आर्थिक संवृद्धि दर में तो उल्लेखनीय वृद्धि दर्ज़ की गई, परंतु इस ओर ध्यान नहीं दिया गया कि इससे आर्थिक असमानताएँ और बढ़ जाएँगी।
- 1991 में देश की औसत रोज़गार वृद्धि दर लगभग 2% थी जो बाद के वर्षों में घटकर 1% के आसपास रह गई।
- औद्योगिक घरानों और राजनेताओं के गठजोड़ ने “क्रोनी कैपिटलिज्म” को बढ़ावा दिया जिसके कारण छोटे ईमानदार उद्यमी इनसे प्रतिस्पर्द्धा नहीं कर पाए।
- विदेशी निवेश के लिये भारत के कुछ राज्य ही महत्त्वपूर्ण गंतव्य बने रहे। इस प्रवृत्ति ने क्षेत्रीय असमानता को बढ़ावा दिया।
- आर्थिक सुधारों ने देश की कृषि को कोई विशेष लाभ नहीं पहुँचाया। उदारीकरण के बाद सिंचाई आदि पर व्यय कम किया जाने लगा।
- नकदी फसलों पर बल दिए जाने और निर्यातोन्मुखी कृषि को बढ़ावा दिये जाने के कारण देश में खाद्यान्न की कीमतों पर दबाव बढ़ा।