शुष्क कृषि से आप क्या समझते हैं? इसकी विशेषताओं और महत्त्व पर चर्चा करें। शुष्क कृषि के समक्ष आने वाली समस्याओं पर प्रकाश डालें।
उत्तर :
उत्तर की रूपरेखा-
- शुष्क कृषि की परिभाषा लिखें।
- शुष्क कृषि की विशेषताएँ लिखें।
- इसके महत्त्व को लिखें।
- शुष्क कृषि के सामने मौजूद चुनौतियों को लिखें।
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शुष्क एवं अर्द्ध-शुष्क भाग, जहाँ औसत वार्षिक वर्षा 75 सेमी. से कम होती है, वहाँ की जाने वाली खेती शुष्क कृषि कहलाती है। भारत के प्रायद्वीपीय पठार के वृष्टिछाया प्रदेश में शुष्क कृषि की जाती है। पंजाब से लेकर तमिलनाडु तक शुष्क कृषि की एक सतत् पेटी है, जिसमें पंजाब, हरियाणा, दक्षिणी-पश्चिमी उत्तर प्रदेश, राजस्थान, गुजरात, पश्चिमी मध्य प्रदेश व महाराष्ट्र के आंतरिक भाग, कर्नाटक के पठारी भाग, तेलंगाना व रायलसीमा तथा तटीय भाग को छोड़कर पूरा तमिलनाडु इसमें शामिल है।
शुष्क कृषि की विशेषताएँ
- यह उन इलाकों में की जाने वाली खेती है, जहाँ वर्ष में लगभग 8 माह आर्द्रता की कमी बनी रहती है। राजस्थान के जैसलमेर और बाड़मेर क्षेत्र 20 सेमी. से भी कम वार्षिक वर्षा प्राप्त करते हैं। इन इलाकों में जल अभाव एक स्थायी समस्या है।
- शुष्क कृषि वाले क्षेत्रों में सिंचाई व्यवस्था की कमी के चलते यहाँ फसलों के लिये वर्षा पर ही निर्भर रहना पड़ता है।
- शुष्क कृषि वाले इलाकों में मुख्य रूप से छोटे किसान रहते हैं, जो स्वयं की आवश्यकता पूर्ति के लिये ही कृषि उत्पादन करते हैं। इन किसानों की आर्थिक दशा अच्छी नहीं होती।
महत्त्व
- भारत जैसे देश में दालें प्रोटीन का महत्त्वपूर्ण स्रोत है। शुष्क कृषि प्रदेशों में ही देश की लगभग 85% दालें उपजाई जाती हैं।
- देश का लगभग 75% तिलहन, 80% मक्का और 95% ज्वार शुष्क कृषि के माध्यम से ही पैदा होता है।
शुष्क कृषि के समक्ष समस्याएँ
- शुष्क कृषि वाले इलाकों में वर्षा अनिश्चित,अनियमित व परिवर्तनशील होती है, जिससे किसानों को कठिनाइयों का सामना करना पड़ता है।
- अधिकांश क्षेत्रों की मृदा में ह्यूमस व अन्य पोषक तत्त्वों की कमी होती है, जिससे मृदा की उर्वरता कम होती है।
- इन इलाकों में वायु द्वारा मृदा अपरदन का खतरा सदा ही बना रहता है।
- कुछ इलाकों में मृदा उपजाऊ है, परंतु सिंचाई व्यवस्था की कमी के कारण कृषि उत्पादन में वृद्धि करना कठिन है।
बदलती जलवायवीय परिस्थितियों में शुष्क कृषि में विकास की बड़ी संभावनाएँ हैं। इनका लाभ उठाने के लिये इस क्षेत्र में पर्याप्त अनुसंधान की आवश्यकता है । सिंचाई की उचित सुविधाओं, मृदा अपरदन पर नियंत्रण, खाद के नियंत्रित उपयोग और फसलों के विविधीकरण आदि के द्वारा शुष्क कृषि से भी उत्पादन में वृद्धि किया जाना संभव है।