जेनेरिक दवाओं से क्या तात्पर्य है? भारत में स्वास्थ्य सुविधाओं की पहुँच को समावेशी बनाने के लिये किन मानदंडों को अपनाने की आवश्यकता है? अपना मत प्रकट करें।
उत्तर :
उत्तर की रूपरेखा-
- जेनेरिक दवाएँ क्या होती हैं, समझाएँ।
- स्वास्थ्य सुविधाओं को समावेशी बनाने के लिये किये जा सकने वाले उपाय लिखें।
- निष्कर्ष
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किसी बीमारी के इलाज के लिये गहन अनुसंधान के बाद एक रासायनिक सॉल्ट तैयार किया जाता है, जिसकी उपलब्धता को आसान बनाने के लिये उसे दवा के रूप में तैयार किया जाता है। दवा कंपनियाँ इस सॉल्ट को अलग-अलग नामों और कीमतों पर बेचती हैं। इस सॉल्ट का नाम उसके रासायनिक संघटन ( कंपोजिशन) तथा बीमारी के आधार पर एक विशेष समिति के द्वारा रखा जाता है। किसी सॉल्ट का जेनेरिक नाम पूरे विश्व में एक ही होता है।
जेनेरिक दवाएँ सस्ती होती हैं। ब्रांडेड दवा और उसी सॉल्ट की जेनेरिक दवा की कीमत में पाँच से दस गुना का अंतर होता है। जहाँ पेटेंट प्राप्त ब्रांडेड दवाओं की कीमत कंपनियाँ स्वयं तय करती हैं, वहीं जेनेरिक दवाओं की कीमत के निर्धारण में सरकार का हस्तक्षेप होता है। विश्व स्वास्थ्य संगठन के अनुसार यदि चिकित्सक मरीज़ों को जेनेरिक दवा की सलाह दें, तो विकसित देशों में स्वास्थ्य पर खर्च 70% तक तथा विकासशील देशों में यह और भी कम हो सकता है। भारत जैसे देश में जहाँ दवाएँ कीमतों में वृद्धि के कारण गरीबों की पहुँच से बाहर हो जाती हैं, वहाँ जेनेरिक दवाओं का महत्त्व अत्यधिक बढ़ जाता है।
भारत में स्वास्थ्य सेवाओं को समावेशी बनाने के लिये उपाय-
- ग्रामीण भारत तक स्वास्थ्य सुविधाओं की पहुँच बढ़ाने के लिये चिकित्सा क्षेत्र की अवसंरचना में निवेश करना होगा। गाँवों में न केवल स्वास्थ्य केंद्रों के निर्माण को गति देने की ज़रूरत है, बल्कि ग्रामीण क्षेत्रों में काम करने के लिये समर्पित चिकित्सकीय मानव-संसाधन की भी आवश्यकता है।
- शहरों में उपलब्ध स्वास्थ्य सुविधाओं का लाभ ग्रामीण जनता उठा पाए इसके लिये ग्रामीण और शहरी क्षेत्रों को अच्छी सुगम्य सड़कों और रेल मार्गों से जोड़ना होगा।
- जनसंख्या के अनुपात में चिकित्सकों की भारी कमी को दूर करने के लिये नए मेडिकल कॉलेज खोले जाएँ तथा मौजूदा मेडिकल कॉलेजों में सीटों की संख्या बढ़ाई जाए।
- भारत में ज़्यादातर आबादी द्वारा स्वास्थ्य पर किया जाने वाला खर्च उनकी क्षमता से बाहर या ‘आउट ऑफ पॉकेट एक्सपेंडिचर’ के रूप में होता है। इस स्थिति पर नियंत्रण स्थापित करने के लिये जेनेरिक दवाओं के प्रचलन को अनिवार्य बनाने के साथ-साथ स्टेंट जैसे अन्य जीवन रक्षक चिकित्सा उपकरणों की कीमतों को नियंत्रित किया जाना चाहिये।
- टेलीमेडिसिन के द्वारा बेहतर स्वास्थ्य सुविधाओं और चिकित्सकीय परामर्श को दुर्गम क्षेत्रों तक पहुँचाया जा सकता है।
- स्वास्थ्य के क्षेत्र में निजी क्षेत्र को प्रोत्साहन से सुविधाओं की गुणवत्ता में वृद्धि तो संभव है, लेकिन इसके अपेक्षाकृत महँगे होने के कारण देश के गरीबों की स्वास्थ्य ज़रूरतों को पूरा करने के लिये बेहतर सरकारी प्रयास ही करने होंगे।
- परंपरागत चिकित्सा पद्धतियों जैसे- आयुर्वेद, सिद्ध ,यूनानी व नैचुरोपैथी आदि को भी प्रोत्साहित कर स्वास्थ्य सेवाओं को समावेशी बनाया जा सकता है।
- अच्छे स्वास्थ्य के लिये लोगों को स्वच्छता और प्राथमिक इलाज के बारे में जागरूक करने की भी आवश्यकता है ।
स्वास्थ्य एक मूल मानवाधिकार भी है। भारत की बड़ी आबादी के लिये स्वास्थ्य सुविधाओं तक पहुँच को सुनिश्चित करने के लिये एक ऐसे स्वास्थ्य-तंत्र की ज़रूरत है, जिसकी पहुँच से कोई भी नागरिक बाहर न रह जाए। नई स्वास्थ्य नीति के माध्यम से सरकार द्वारा इन प्रयासों को गति देने का काम जारी है।